अमित शाह के कश्मीर दौरे पर हड़ताल नहीं हुई, क्योंकि हुर्रियत बिखर चुकी है और कई नेता जेलों में हैं
By सुरेश डुग्गर | Published: June 27, 2019 06:38 PM2019-06-27T18:38:06+5:302019-06-27T18:38:06+5:30
यह सच है कि बीते 30 सालों में यह पहला मौका है जब वादी में केंद्र सरकार के किसी बड़े मंत्री या नेता के आने पर किसी भी अलगाववादी संगठन ने बंद का एलान नहीं किया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी के बावजूद घाटी में उम्मीद के विपरीत बुधवार को किसी जगह हड़ताल या बंद नहीं रहा। कड़ी सुरक्षा के बीच जनजीवन सामान्य रहा। हालांकि, डल झील में रहने वालों को कुछ परेशानी जरूर हुई, क्योंकि बुल्वोर्ड रोड सामान्य वाहनों की आवाजाही के लिए बंद था। झील में भी नेहरू पार्क से आगे चार चिनारी तक नौका विहार को बंद रखा गया था। इसे बदलाव की बयार बतलाने वाले इस तथ्य को नजरअंदाज करते थे कि हड़तालों का आहवान करने वाली हुर्रियत बिखर चुकी है तथा उसके अधिकतर नेता जेलों में बंद किए जा चुके हें।
यह सच है कि बीते 30 सालों में यह पहला मौका है जब वादी में केंद्र सरकार के किसी बड़े मंत्री या नेता के आने पर किसी भी अलगाववादी संगठन ने बंद का एलान नहीं किया। वर्ष 1989 में कश्मीर में आतंकी हिंसा का दौर शुरू होने के साथ ही जब भी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृह मंत्री समेत किसी भी प्रमुख राष्ट्रीय नेता का कश्मीर में आना हुआ तो अलगाववादियों और आतंकियों ने हमेशा दौरों का बहिष्कार कर बंद का एलान किया। इस दौरान कर्फ्यू जैसी स्थिति रहती थी। वहीं, अब बदलते हालात के बीच शाह के दौरे के समय किसी भी अलगाववादी ने कहीं भी बंद नहीं किया। यहां तक कि लोगों से जुलूस निकालने तक के लिए नहीं कहा।
पूरी वादी में सामान्य जनजीवन आम दिनों की तरह बहाल रहा। लाल चौक जो अक्सर ऐसे मौके पर सैन्य छावनी में बदल जाता है। इस बार ऐसा नहीं हुआ। दु़कानें खुली हुई थी। सड़कों पर यातायात भी सामान्य रहा। लाल चौक के साथ सटे प्रताप पार्क के सामने स्थित कश्मीरी दस्तकारी की दुकान चलाने वाले जावेद नक्शबंदी ने कहा कि मैं 1995 से लगातार अपनी दुकान पर आ रहा हूं। यह पहला मौका है जब दिल्ली से किसी बड़े मंत्री के कश्मीर दौरे के खिलाफ यहां कोई तनाव नहीं है। हुर्रियत ने भी बंद की कॉल नहीं की है और न ही किसी जगह पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों ने लोगों की आवाजाही को रोका।