दिल्ली हाईकोर्ट ने एयर इंडिया के विनिवेश पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज की, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दाखिल की थी याचिका
By विशाल कुमार | Published: January 6, 2022 12:54 PM2022-01-06T12:54:29+5:302022-01-06T13:00:44+5:30
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर ‘एयर इंडिया’ की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने और अधिकारियों द्वारा इसे दी गई मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की थी।
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने ‘एयर इंडिया’ की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने और अधिकारियों द्वारा इसे दी गई मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की थी।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि याचिका को खारिज किया जाता है। इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी किया जाएगा।
Delhi High Court dismisses BJP MP Subramanian Swamy's petition seeking quashing of Air India disinvestment process and investigation into the role and functioning of the respondent authorities pic.twitter.com/Sblz95XRUJ
— ANI (@ANI) January 6, 2022
बता दें कि, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर ‘एयर इंडिया’ की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने और अधिकारियों द्वारा इसे दी गई मंजूरी पर रोक लगाने की मांग की थी।
स्वामी ने अधिवक्ता सत्य सबरवाल के माध्यम से दायर याचिका में अधिकारियों की भूमिका और कार्यशैली की सीबीआई जांच कराने और इसकी एक विस्तृत रिपोर्ट अदालत के समक्ष पेश करने का भी अनुरोध किया था।
हाईकोर्ट ने इस मामले पर 4 जनवरी को सुनवाई की थी और अपना फैसला 6 जनवरी तक के लिए सुरक्षित रखते हुए कहा था कि दोनों पक्ष 5 जनवरी तक मामले में अपने नोट दाखिल करें।
मामले की सुनवाई के दौरान स्वामी ने तर्क दिया था कि बोली प्रक्रिया असंवैधानिक, दुर्भावनापूर्ण और भ्रष्ट थी और टाटा के पक्ष में धांधली की गई थी।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि अन्य बोलीदाता स्पाइसजेट के मालिक के नेतृत्व वाला एक समूह था। उन्होंने बताया कि मद्रास हाईकोर्ट में एक दिवाला प्रक्रिया चल रही थी जिसने स्पाइसजेट के खिलाफ आदेश पारित किया था और इसलिए वह बोली लगाने की हकदार नहीं थी।
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया था कि सौदे के बारे में कुछ भी गुप्त नहीं था और इस मुद्दे पर अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया जा सकता है।
जबकि टाटा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सफल बोली लगाने वाली 100 फीसदी भारतीय कंपनी है और भ्रष्टाचार के आरोप बिना किसी आधार के हैं।
अक्टूबर में सरकार ने स्वीकार की थी टाटा की बोली
सरकार ने गत अक्टूबर में टाटा संस की एक कंपनी की तरफ से लगाई गई बोली को स्वीकार कर एयर इंडिया के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी। एयर इंडिया के साथ उसकी सस्ती विमान सेवा एयर इंडिया एक्सप्रेस की भी शत-प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री की जाएगी।
साथ ही उसकी ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी एआईएसएटीएस की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी टाटा समूह को दी जाएगी। उस समय सरकार की तरफ से कहा गया था कि इस अधिग्रहण से जुड़ी औपचारिकताओं को दिसंबर के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।
सरकार ने 25 अक्टूबर को 18,000 करोड़ रुपये में एयर इंडिया की बिक्री के लिए टाटा संस के साथ खरीद समझौता किया था। टाटा सौदे के एवज में सरकार को 2,700 करोड़ रुपये नकद देगी और एयरलाइन पर बकाया 15,300 करोड़ रुपये के कर्ज की देनदारी लेगी।
एयर इंडिया वर्ष 2007-08 में इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से ही लगातार घाटे में चल रही थी. पिछले 31 अगस्त को उस पर कुल 61,562 करोड़ रुपये का बकाया था।