खोरी से पलायन के बाद लोग दर-बदर भटकने को मजबूर, महिलाओं ने कहा-न मायका रहा, न ससुराल

By भाषा | Published: June 18, 2021 03:36 PM2021-06-18T15:36:39+5:302021-06-18T15:36:39+5:30

After migrating from Khori, people were forced to wander from door to door, women said - neither maternal nor in-laws | खोरी से पलायन के बाद लोग दर-बदर भटकने को मजबूर, महिलाओं ने कहा-न मायका रहा, न ससुराल

खोरी से पलायन के बाद लोग दर-बदर भटकने को मजबूर, महिलाओं ने कहा-न मायका रहा, न ससुराल

फरीदाबाद, 18 जून फरीदाबाद-सूरजकुंड रोड पर लक्कड़पुर गांव के करीब खोरी इलाके से पलायन को मजबूर करीब 10 हजार परिवार अब दर-बदर भटकने को मजबूर हैं। ये परिवार कॉलोनी पक्की होने के भ्रम में यहां बसते चले गये लेकिन अब उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद उनके सामने इस इलाके को छोड़कर जाने के अलावा कोई चारा नहीं है।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को खोरी गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में अतिक्रमित करीब 10,000 आवासीय ढांचों को हटाने के लिए हरियाणा सरकार तथा फरीदाबाद नगर निगम को दिए अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा, “ हम अपनी वन भूमि खाली चाहते हैं।”

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने राज्य और नगर निकाय को इस संबंध में उसके सात जून के आदेश पर अमल करने का निर्देश दिया।

स्थानीय सूत्रों का कहना है कि जो लोग आसपास की कॉलोनियों में किराये पर मकान देख रहे हैं उन्हें भी दिक्कत आ रही है क्योंकि मकान मालिकों ने किराये बढ़ा दिये है। कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ये अब दर-बदर भटकने को मजबूर हैं।

खोरी से पलायन करने के लिए मजबूर होने वाले लोगों में बड़ी संख्या बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के दूर दराज के इलाकों के निवासियों की है। यहां रह रहे बुजुर्ग नारायण तिवारी ने बताया कि वह अयोध्या के पास फैजाबाद के मूल निवासी हैं और उनका 14 सदस्यों का परिवार है। तिवारी कहते हैं कि अब उनके पास वापस अपने गांव जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। रोती बिलखती सविता, गुड्डी, आयरा और ऐसी अन्य महिलाओं का कहना था कि वे इस कॉलोनी में बहू बनकर आई थीं और कुछ बेटियां बनकर ब्याही गईं, लेकिन अब न उनका मायका रहा और न ही ससुराल।

एक अन्य बुजुर्ग नवाब खान (60) ने बताया कि उनके पिता 40 वर्ष पूर्व उन्हें यहां लेकर आए थे। वे कारपेट पीस बेचकर गुजर बसर करते थे लेकिन अब छत छिन जाने से दस लोगों का परिवार खुले आसमान के नीचे आ गया है।

राशिद अल्वी (50) बताते हैं कि 71 की जंग के बाद उनका कुनबा बांग्लादेश से भारत आ गया था और यहीं उनका जन्म हुआ है। उन्होंने कहा कि उनके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड, सब कुछ है, लेकिन फिर भी उन्हें हटाया जा रहा है।

जानकार लोग बताते हैं कि चार दशक से भी अधिक समय पहले इस इलाके में पत्थरों की खानें थीं और क्रेशर चलते थे। तब अदालत के एक आदेश पर यहां से प्रदूषण फैलाने वाले क्रेशरों को हटाया गया। आरोप हैं कि बाद में वन विभाग के मालिकाना हक वाली इस जमीन पर भू माफियाओं ने कब्जा करके जमीन बेचना शुरू कर दिया और सस्ती जमीन के चक्कर में लोग यहां अपने घर बनाते चले गए।

लोगों को पक्की कॉलोनी बनाने का भरोसा दिलाकर उनके मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड आदि बनवाये गये और बिजली की भी व्यवस्था की गयी। यहां दिल्ली से बिजली चोरी करके आपूर्ति किये जाने के आरोपों के संबंध में फरीदाबाद के पूर्व मेयर देवेंद्र भड़ाना ने दावा किया कि उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को राजधानी से बिजली चोरी कर खोरी में बेचे जाने के संबंध में पहले शिकायत की थी, परंतु इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया।

स्थानीय लोगों के मुताबिक इलाके में करीब 40 से 50 हजार लोग रहते हैं जिनमें मुस्लिम आबादी अधिक है। यहां कुछ बांग्लादेशियों और रोहिंग्या लोगों के भी चोरी छिपे बसने के आरोप लगते रहे हैं।

इलाके में तोड़फोड़ होने और आबादी को हटाने के बारे में फरीदाबाद नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि यह मामला बरसों से अदालतों में चल रहा है और यहां पहले भी कई बार छोटी मोटी तोडफ़ोड़ की कार्रवाई की गई है। उन्होंने दावा किया कि राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कार्रवाई लटकी रही।

जिला उपायुक्त यशपाल ने बताया कि यहां रहने वाले लोगों को बता दिया गया है कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय हर हाल में लागू होगा, लिहाजा वे खुद अपना घरेलू सामान निकाल लें और प्रशासन ने उनके लिए ट्रांसपोर्ट की निशुल्क व्यवस्था भी की है। उन्होंने बताया कि एक अस्थायी शिविर भी बनाया गया है ताकि लोग दो-चार दिन में यहां से जाने की व्यवस्था कर लें।

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