झारखंड के बाद फिर उठी बिहार के बंटवारे की मांग, मिथिला को राज्य बनाने के लिए हुआ प्रदर्शन
By एस पी सिन्हा | Published: December 4, 2022 04:00 PM2022-12-04T16:00:31+5:302022-12-04T16:04:54+5:30
मिथिला को बिहार से अलग करने और नये राज्य के तौर पर गठित किये जाने की मांग को लेकर मिथिला छात्र यूनियन के द्वारा राजधानी पटना में मार्च निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में मिथिलवासी वासी शामिल हुए। यह मार्च गांधी मैदान से शुरू होकर जेपी गोलंबर से होते हुए राजभवन के लिए निकली।

फोटो- एसपी सिन्हा
पटना:बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद राज्य को एक बार फिर से विभाजित किये जाने की मांग उठने लगी है। एक ओर जहां भोजपुर राज्य की मांग हो रही है, तो वहीं दूसरी ओर अंगिका की मांग भी हो रही है। इस बीच गाहे-बगाहे मगध राज्य की भी मांग उठती रहती है। वहीं अब मिथिला राज्य की मांग ने भी एक बार फिर से जोड़ पकड़ लिया है।
इस मांग को लेकर मिथिला छात्र यूनियन के द्वारा राजधानी पटना में मार्च निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में मिथिलवासी वासी शामिल हुए। यह मार्च गांधी मैदान से शुरू होकर जेपी गोलंबर से होते हुए राजभवन के लिए निकली। इस बीच डाकबंगला के पास तैनात मजिस्ट्रेट और सुरक्षाकर्मियों ने मार्च को रोक दिया। जिसके बाद मार्च में शामिल लोगों ने जोरादार प्रदर्शन किया।
डाकबंगला पर ही प्रदर्शनकरियों और अधिकारियों के बीच बातचीत हुई, जिसके बाद 5 लोगों के प्रतिनिधिमंडल को राजभवन में वार्ता के ले जाने का आश्वासन मिलने के बाद प्रदर्शन समाप्त कर दिया गया। प्रदर्शऩकारियों ने राजभवन में अलग मिथिला राज्य कम गठन की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मिथिला छात्र यूनियन ने कहा है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 में यह प्रावधान है कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहां बोली जाने वाली भाषा एवं संस्कृति के आधार पर होना चाहिये।
इस अधिनियम के अनुरूप 14 राज्य और छह केन्द्र शासित प्रदेश बनाये गये थे। वर्तमान में 28 राज्य और 7 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। मिथिला छात्र यूनियन के मुताबिक ‘मिथिला भू-भाग’ में 22 जिला बिहार में और 7 जिला झारखंड राज्य में बसे हैं। उन सबकी एक भाषा, एक संस्कृति और मिलता-जुलता एक संस्कार है। कुल जनसंख्या तकरीबन 8 करोड़ है। यह भू-भाग राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत अलग राज्य का दर्जा पाने की पात्रता रखता है। इसका दुर्भाग्य है कि अभी तक यह उससे वंचित है।
मिथिला स्टूडेंट यूनियन के अनुसार भौगोलिक, आर्थिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी मिथिला अलग राज्य का दर्जा पाने की योग्यता रखती है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि शासक वर्ग मिथिला की समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर नहीं रहता है। इस कारण स्वतंत्रता के कुछ वर्षों बाद से ही इसका आर्थिक ढांचा धीरे-धीरे नष्ट होने लगा। अब तो करीब-करीब पूरी तरह ध्वस्त ही हो गया है। बाढ़ से कृषि चौपट होती रहती है तो नेताओं की उदासीनता की वजह से उद्योग-धंधे समाप्त हो गये हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए अलग मिथिला राज्य आवश्यक है। मिथिला छात्र यूनियन का स्पष्ट कहना है कि मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए यही एकमात्र विकल्प है।