...तो क्या 16 मई 2014 के बाद 11 दिसंबर 2018 नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर लिए साबित होगा यू-टर्न?

By विकास कुमार | Published: December 10, 2018 08:49 PM2018-12-10T20:49:22+5:302018-12-10T20:49:22+5:30

16 मई के बाद कल 11 दिसंबर का दिन नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत बड़ा साबित हो सकता है। ऐसे भी हर चुनाव में मोदी लहर की अग्नि परीक्षा होती है। कल का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंतन का होगा या हर्ष और उल्लास का, इसके लिए हमें नतीजों का इंतजार करना होगा।

After 16 may 2014, 11 december 2018 would be a turning point of Narendra Modi political career | ...तो क्या 16 मई 2014 के बाद 11 दिसंबर 2018 नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर लिए साबित होगा यू-टर्न?

...तो क्या 16 मई 2014 के बाद 11 दिसंबर 2018 नरेंद्र मोदी के राजनीतिक करियर लिए साबित होगा यू-टर्न?

16 मई 2014 का दिन, गुजरात की राजनीति में वर्षों तक अपना परचम लहराने के बाद भाजपा के सबसे ताकतवर नेता का स्वागत करने के लिए दिल्ली बेताब हो रही थी। तभी गुजरात में एक नारा गुंजा जिसकी धमक दिल्ली में भी महसूस की गई। 'अच्छे दिन आ गए' के नारे के साथ नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनावी जीत के भाषण की शुरुआत की थी। देशवासियों को पूरे चुनाव के दौरान अच्छे दिन का सपना दिखाने के बाद नरेन्द्र मोदी के लिए समय था जन आकांक्षाओं के उफान का तुरंत संज्ञान लेने की। 

नरेन्द्र मोदी ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की जोड़ी ने एक के बाद एक चुनाव जीतकर देश के 19 राज्यों में भगवा परचम लहरा दिया। पंचायत चुनाव से लेकर नगर निगम के चुनावों तक को हाईटेक तरीके से लड़ा गया। जिन राज्यों में भारतीय जानता पार्टी वर्षों से वनवास काट रही थी, वहां भी उनकी सरकारें मजबूती के साथ सत्ता में वापस लौटी। 

भाजपा का विस्तारवाद 

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने अपने पुराने सहयोगियों को भी साधना शुरू किया। नीतीश कुमार से गठबंधन कर के अमित शाह ने ये इशारा दिया कि भाजपा उन राज्यों में भी सरकार बनाने से गुरेज नहीं करेगी जहां वो सत्ता में रह चुकी है। इस दौरान पार्टी ने विस्तारवाद की रणनीति अपनाते हुए कई राज्यों में तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी। अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण बना। 

भारतीय जनता पार्टी की विस्तारवाद के रवैये ने इनके सहयोगियों में राजनीतिक असुरक्षा की भावना को भर दिया। शिव सेना और भारतीय जानता पार्टी के रिश्ते दिन-प्रतिदिन बिगड़ते चले गए। विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर टीडीपी भी भाजपा से अलग हो गई। पार्टी के लिए हालात अब बिगड़ रहे थे। इसी बीच गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा का संसदीय चुनाव हारने के बाद विपक्षी पार्टियों को भी इस बात का भरोसा हो गया कि भाजपा को उसके गढ़ में भी हराया जा सकता है। 

कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के बाद अपनी सेक्युलर छवि पर इठला रही भाजपा को तब गहरा झटका लगा जब दोनों के रिश्ते उतने ही तेजी से टूट गए जितने तेजी से बने थे। इसी बीच सरकार को देश में गौ रक्षकों के तांडव और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी खूब लताड़ा जा रहा था। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ये समझने लगी थी कि नरेन्द्र मोदी अमृत मंथन से प्राप्त वो राजनेता है जिन्हें हराना राहुल गांधी के वश में नहीं है। 

लेकिन पांच राज्यों के आये विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल ने पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले राज्यों में पार्टी की हार की स्थिति बनती दिख रही है। जिन राज्यों में बंपर सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में 282 सीटों के जादुई आंकड़े को छुआ था, आज उन राज्यों में हार कर भारतीय जनता पार्टी के मनोबल पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। 

बुआ और बबुआ की चुनौती 

खुद अमित शाह ने इस बात को स्वीकार किया है कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। बिहार में उपेन्द्र कुशवाहा का जाना भी पार्टी के लिए झटका माना जा रहा है। शिव सेना की नाराजगी भी पार्टी के लिए महाराष्ट्र में मुसीबत का सबब बन सकता है। 

इसके बाद हिंदी हार्टलैंड के प्रमुख प्रदेशों से भाजपा की विदाई केंद्रीय नेतृत्व के लिए चिंता का विषय है। खैर, एग्जिट पोल के नतीजों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता। इतना तो तय है कि 16 मई के बाद कल 11 दिसंबर का दिन नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत बड़ा साबित हो सकता है। ऐसे भी हर चुनाव में मोदी लहर की अग्नि परीक्षा होती है। कल का दिन भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंतन का होगा या हर्ष और उल्लास का, इसके लिए हमें नतीजों का इंतजार करना होगा। 

Web Title: After 16 may 2014, 11 december 2018 would be a turning point of Narendra Modi political career