अवैध ध्वज स्तंभों के खिलाफ भूमि संरक्षण अधिनियम के तहत हो कार्रवाई: अदालत ने केरल सरकार से कहा
By भाषा | Published: November 25, 2021 03:21 PM2021-11-25T15:21:02+5:302021-11-25T15:21:02+5:30
कोच्चि (केरल), 25 नवंबर केरल उच्च न्यायालय ने राज्य भर में लगाए गए अवैध ध्वज स्तंभों को स्वैच्छिक रूप से हटाने के लिए उसके द्वारा दिए गए 10 दिन पूरे होने के बाद बृहस्पतिवार को सरकार को ध्वज स्तंभ लगाने वालों के खिलाफ भूमि संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज करने और उन्हें दंडित करने का निर्देश दिया। केरल में ऐसे 42,337 ध्वज स्तंभ लगे हैं।
उच्च न्यायालय ने सरकार या उसके अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई शुरू करने से पहले राज्य में ऐसे ध्वज स्तंभ लगाने वालों को उन्हें हटाने के लिए 15 नवंबर को 10 दिन का समय दिया था।
राज्य सरकार ने बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन को बताया कि उसने अदालत के 15 नवंबर के आदेश का व्यापक रूप से प्रचार किया गया और अधिकारियों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश भी की कि उसके बाद से कोई ध्वज स्तंभ ना लगाया जाए।
अदालत ने कहा कि अगर सरकार का रुख सही है तो, राज्य के सभी ध्वज स्तंभ प्रथम दृष्टया भूमि संरक्षण अधिनियम के अधीन माने जाने चाहिए और इसके परिणामस्वरूप मुकदमा चलाया जाना चाहिए तथा दंड दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा, ‘‘ अब समय आ गया है कि कानून का शासन हो। अदालत ने सभी को ध्वज स्तंभ हटाने का मौका दिया था। अगर किसी ने उसे हटाया नहीं तो, उन्हें भूमि संरक्षण अधिनियम के अनुरूप हटाना होगा और उसके तहत जुर्माना देना होगा।’’
अदालत ने कहा कि लोग यह दिखाएं कि उन्होंने अनुमति लेकर ध्वज स्तंभ लगाए हैं। केरल उच्च न्यायालय ने राज्य भर में लगे 42,337 ध्वज स्तंभों की संख्या पर चिंता एवं हैरानी जताते हुए 15 नवंबर को को वाम सरकार से कहा था कि दोषियों के खिलाफ प्रत्येक लागू कानून के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए तथा इसमें उनकी राजनीतिक संबद्धता पर ध्यान नहीं दिया जाए।
अदालत ने कहा था कि राज्य में ‘‘कोई और अवैध ध्वज स्तंभ’’ नहीं लगाया जाना चाहिए।
अदालत ने एक नवंबर को राज्य सरकार को एक अंतरिम आदेश में 15 नवंबर तक यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था कि सार्वजनिक जमीन पर अवैध रूप से कोई ध्वज स्तंभ नहीं लगाया जाए। अदालत ने राजनीतिक दलों द्वारा राज्य में अवैध तरीके से झंडा, बैनर लगाने को ‘‘अराजकता’’ करार दिया।
अदालत एक सहकारी समिति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक विशेष राजनीतिक दल अवैध रूप से उसकी जमीन पर झंडे और बैनर लगा रहा है।
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