विजय दर्डा का ब्लॉग: यह वैज्ञानिकों की उपलब्धि है, उन्हें हमारा सलाम
By विजय दर्डा | Published: April 1, 2019 06:22 AM2019-04-01T06:22:46+5:302019-04-01T06:22:46+5:30
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम 1962 में शुरू हुआ जबकि पाकिस्तान ने 1961 में ही इसकी शुरुआत कर दी थी. आज पाकिस्तान से हम काफी आगे हैं तो इसका कारण यह है कि हमारे यहां केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सभी ने अंतरिक्ष अनुसंधान का बढ़ावा दिया है.
पिछले सप्ताह जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में एक सैटेलाइट को धरती से भेजे गए मिसाइल से मार गिराने की घोषणा की तो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया.
चूंकि ये मौसम चुनावी है इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह आरोप भी चस्पां हो गया कि वैज्ञानिकों की उपलब्धि को राजनीति अपनी चपेट में ले रही है. लोगों ने कहा कि यह घोषणा तो इसरो और डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को करनी चाहिए थी क्योंकि श्रेय उन्हीं को जाता है. सवाल यह भी उठा कि ठीक चुनाव के वक्त ही उपग्रह पर प्रहार क्यों किया गया? यह तो भाजपा सरकार के पहले चार साल में भी हो सकता था!
इसके साथ ही आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो गया. भाजपाई नेता कहने लगे कि वैज्ञानिक तो पहले ही यह काम कर लेते लेकिन कांग्रेस सरकार ने अनुमति नहीं दी. कांग्रेस ने जवाब दिया कि इस परियोजना पर 2012 में यूपीए सरकार के दौरान काम शुरू हो चुका था. मेरी स्पष्ट राय है कि महान वैज्ञानिक उपलब्धियों पर राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए.
बाहर बैठकर यह अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता कि हमारे वैज्ञानिक कितनी मेहनत और समर्पण के साथ अपने काम में लगे रहते हैं. ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी के सदस्य के रूप में मैं करीब पांच साल पहले श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन प्रक्षेपण केंद्र गया था. मैंने वैज्ञानिकों की लगन को अपनी आंखों से देखा है और पूरी शिद्दत से महसूस किया है. एयरकंडीशंड कमरे में भी उनके माथे पर मैंने पसीना देखा है.
उस वक्त मुङो वहां के वैज्ञानिकों ने बताया था कि वे उपग्रह प्रक्षेपण से पहले उसकी प्रतिकृति भगवान वेंकटेश बालाजी को भेंट करने गए तब कुछ लोगों ने आरोप लगा दिया कि वैज्ञानिक धर्म की शरण में क्यों गए? इस तरह की राजनीति से वैज्ञानिकों को निश्चय ही पीड़ा होती है.
वे अपनी आस्था को कैसे छोड़ सकते हैं? अभी श्रेय लेने की जो राजनीति चल रही है क्या उससे हमारे वैज्ञानिक दुखी नहीं होंगे? वे उपलब्धियों को विज्ञान की नजर से देखते हैं, राजनीति की नजर से नहीं!
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम 1962 में शुरू हुआ जबकि पाकिस्तान ने 1961 में ही इसकी शुरुआत कर दी थी. आज पाकिस्तान से हम काफी आगे हैं तो इसका कारण यह है कि हमारे यहां केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सभी ने अंतरिक्ष अनुसंधान का बढ़ावा दिया है.
दुनिया जानती है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शिखर पर देखना चाहते थे. उनके सहयोगी और महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने इसका जिम्मा अपने कंधों पर लिया. 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन हुआ.
बाद में 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना हुई. उसके बाद से उपलब्धियों की श्रृंखला हम स्थापित कर चुके हैं. जाहिर सी बात है कि न केवल नेहरूजी बल्कि सभी प्रधानमंत्रियों ने सहयोग का हाथ हमेशा आगे रखा है.
मैं आपको बताना चाहूंगा कि 30 दिसंबर 1971 को जब अचानक विक्रम साराभाई की मृत्यु हो गई तो सवाल उठा कि इसरो का अगला चेयरमैन कौन? सबकी नजर अमेरिका में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. सतीश धवन पर थी. उनसे संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने तत्काल आने में असमर्थता जताई.
फौरी तौर पर प्रो. एम.जी.के. मेनन को अध्यक्ष बनाया गया. इधर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उद्योगपति जे.आर.डी. टाटा से आग्रह किया कि वे धवन को भारत लौटकर इसरो के चेयरमैन का पद संभालने पर राजी करें.
टाटा ने कोशिश की और धवन राजी हो गए! तो सवाल यह है कि हम क्या इंदिरा गांधी के प्रयासों को भूल सकते हैं? कतई नहीं. इंदिराजी के समय ही 1972 में अंतरिक्ष आयोग का गठन हुआ था, जिसके तहत अब इसरो काम करता है.
इसलिए यह कहना कि फलां सरकार ने कुछ नहीं किया और हमने यह कर दिखाया, उचित नहीं है. सच्चई यह है कि 2007 में जब चीन ने उपग्रह को मार गिराने की क्षमता हासिल की तभी भारत ने इस पर काम शुरू कर दिया था क्योंकि डिफेंस सिस्टम को मजबूत करने के लिए यह क्षमता जरूरी थी.
अब बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस क्षेत्र में भारत तेजी से आगे निकलेगा. यह इस बात का संकेत भी है कि भारत अपनी नीतियों में परिवर्तन कर रहा है. यदि युद्ध शुरू होता है तो भारत दुश्मन के परमाणु हथियारों को पहले ही नष्ट कर सकेगा और हमलों को हवा में ही नाकाम कर देगा. इन सारी उपलब्धियों के लिए मैं वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं. उन्हें मेरा सलाम!