17 राज्यों ने खत्म किया एपीएमसी का एकाधिकार, पंजाब-हरियाणा में एजेंट राज, कमीशन के रूप में जेब में डाले 13000 करोड़ रुपये

By हरीश गुप्ता | Published: September 24, 2020 07:00 AM2020-09-24T07:00:40+5:302020-09-24T07:06:58+5:30

कृषि पर संसद की एक स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य निगम ने पंजाब और हरियाणा में गेहूं तथा चावल के संपूर्ण उत्पाद में से सिर्फ 26 से लेकर 31 प्रतिशत तक ही प्राप्त किया.

17 states abolish APMC's monopoly, Agent Raj in Punjab-Haryana | 17 राज्यों ने खत्म किया एपीएमसी का एकाधिकार, पंजाब-हरियाणा में एजेंट राज, कमीशन के रूप में जेब में डाले 13000 करोड़ रुपये

फाइल फोटो।

Highlightsलगभग 13000 करोड़ रुपए विभिन्न कृषि उत्पाद बाजार समितियों (एपीएमसी) में कार्यरत 45000 कमीशन एजेंटों (आढ़तियों) की जेब में चले गए. कृषि उत्पाद बाजार समितियां प्रत्येक लेनदेन पर 8.5% कमीशन शुल्क लगाती हैं.

नई दिल्लीः केंद्र की एनडीए-2 सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल (2014-2019) के दौरान भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 7.92 लाख करोड़ रुपए के गेहूं और चावल की सरकारी खरीद की, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा का हिस्सा 1.50 लाख करोड़ रुपए का था. भारतीय खाद्य निगम ने मोदी सरकार के इस कार्यकाल में 2.97 लाख करोड़ का गेहूं, जबकि 4.95 लाख करोड़ रुपए का चावल प्राप्त किया. लेकिन, यह पूरी राशि किसानों तक पहुंची ही नहीं.

कृषि मंत्रालय और खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों से खुलासा होता है कि लगभग 13000 करोड़ रुपए विभिन्न कृषि उत्पाद बाजार समितियों (एपीएमसी) में कार्यरत 45000 कमीशन एजेंटों (आढ़तियों) की जेब में चले गए.

कृषि पर संसद की एक स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य निगम ने पंजाब और हरियाणा में गेहूं तथा चावल के संपूर्ण उत्पाद में से सिर्फ 26 से लेकर 31 प्रतिशत तक ही प्राप्त किया. इसका अर्थ यह है कि कमीशन एजेंटों ने खाद्य निगम से बाहर इन अनाजों की खरीद-बिक्री कर 30000 करोड़ रुपए की कमाई की.

कृषि उत्पाद बाजार समितियां प्रत्येक लेनदेन पर 8.5% कमीशन शुल्क लगाती हैं. पंजाब में 28000 कमीशन एजेंट हैं, जबकि हरियाणा में इनकी संख्या 17000 है. इन दोनों राज्यों में कोई भी किसान कृषि उत्पाद को एपीएमसी के सिवा नहीं बेच सकता.

दिलचस्प रूप से 17 राज्यों ने एपीएमसी और कमीशन एजेंटों का एकाधिकार खत्म कर दिया है, जिनमें महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, केरल एवं कुछ अन्य राज्य शामिल हैं. मुख्यत: यही वजह है कि विपक्ष के न तो महाराष्ट्र के किसी नेता ने और न ही माकपा शासित केरल के किसी नेता ने संसद के दोनों सदनों में कृषि संबंधी तीन विधेयकों के पारित होते समय विरोध किया. बल्कि, राकांपा के प्रफुल्ल पटेल ने राज्यसभा में सिर्फ इतना कहा कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था. 

पंजाब और हरियाणा में विरोध क्यों?

कृषि संबंधी तीन कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा तक सीमित है, क्योंकि वहां नेताओं के रिश्तेदार एवं मित्र कमीशन एजेंट के रूप में काम करते हैं. वे न सिर्फ अनाज मंडियों में राज चलाते हैं, बल्कि अन्य कृषि मंडियों में भी उनकी ही तूती बोलती है. 

Web Title: 17 states abolish APMC's monopoly, Agent Raj in Punjab-Haryana

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