World IBD Day: आंत में सूजन, कब्ज, मल में खून हैं आईबीडी के लक्षण, बीमारी से छुटकारा पाने के लिए खायें ये चीजें
By उस्मान | Published: May 19, 2020 09:31 AM2020-05-19T09:31:04+5:302020-05-19T09:37:25+5:30
बेशक इसके लक्षण बहुत आम हैं लेकिन इन्हें गंभीरता से नहीं लेना आपको भारी पड़ सकता है
World IBD Day: हर साल 19 मई को इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) मनाया जाता है। यह आंतों में होने वाली कई बीमारियों का एक समूह है। विश्व जठरांत्र विज्ञान संगठन के अनुसार यह बीमारी अज्ञात कारणों से उत्पन्न होने वाली दीर्घकालिक प्रदाहक आंत संबंधी स्थितियों का एक समूह है। आईबीडी के अंतर्गत दो मुख्य श्रेणियां- ‘क्रोन्स बीमारी’ (सीडी) और ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ (यूसी) आती हैं।
आईबीडी के लक्षण (Symptoms of IBD)
पाचन तंत्र में सूजन, दस्त, कब्ज, दर्द या मल के साथ रक्त आने जैसी स्थिति इस बीमारी के लक्षण हैं। अगर आपको इस तरह के लक्षण महसूस होते हैं, तो आपको उन्हें गंभीरता से लेना चाहिए और तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अधिकतर लोग इन लक्षणों को गंभीरता से नहीं लेते हैं जिससे मरीज की हालत खराब होती रहती है और बाद में काफी देर हो जाती है।
खराब जीवनशैली है बड़ा कारण (Causes of IBD)
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में जठरांत्र विज्ञान के प्रोफेसर डॉ। विनीत आहूजा ने कहा कि 20 से 29 और 30 से 39 साल तक की उम्र के लोग अपनी निष्क्रिय जीवनशैली और बीमारी के बारे में जागरूकता न होने की वजह से आईबीडी से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘एशिया में फिलहाल इस बीमारी का सर्वाधिक भार है और वह भी 20 से 29 और 30 से 39 साल की उम्र तक की युवा आबादी में। वे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं क्योंकि जागरूकता के अभाव में इसका निदान देर से होता है और इसे आम तौर पर पेट की दस्त जैसी सामान्य समस्या माना जाता है।’’
आईबीडी मरीजों का डाइट प्लान (Food and diet plan for IBD)
ऐसे मरीजों को अपनी डाइट में फल, सब्जियां, मांस, डेयरी उत्पाद, डाइटरी फाइबर आदि चीजों को शामिल करना चाहिए। अगर आप क्रोन्स बीमारी बीमारी से पीड़ित हैं तो आपको फल और सब्जियों का सेवन बढ़ाना चाहिए और मांस खाना छोड़ देना चाहिए। इसी तरह गर आप अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित हैं तो आपको मांस और डेयरी उत्पाद छोड़ देने चाहिए और फल-सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
भारत में आईबीडी (IBD in India)
विशेषज्ञों ने कहा कि मौजूदा स्थिति यह है कि भारत में आईबीडी के असल रोगियों की संख्या पता ही नहीं है क्योंकि इस बीमारी से संबंधित आंकड़ों की कोई उचित प्रणाली नहीं है। देश में न ही कोई ऐसी व्यवस्था है जिससे मरीजों को गलत इलाज की वजह से गंभीर स्थिति में जाने से रोका जा सके। उनका यह भी कहना है कि देश में इस बीमारी के बारे में जागरूकता का घोर अभाव है।
भारत में आईबीडी के इलाज में होती है देरी
एआईजी हैदराबाद की जानी-मानी उदर रोग विशेषज्ञ डॉ। रूपा बनर्जी ने कहा, ‘‘आईबीडी पर भारत के लिए तत्काल मानक दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। विश्व के इस हिस्से में यह समस्या बढ़ रही है और हम इसके रोगियों की असल संख्या के बारे में नहीं जानते।’’
उन्होंने कहा कि भारत में अभी बीमारी के निदान में काफी विलंब होता है। बनर्जी ने कहा, ‘‘प्रत्येक रोगी औसतन दो साल तक कम से कम पांच-छह डॉक्टरों के पास जाता है और तब उसे पता चलता है कि उसे आईबीडी है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और फिर उसे इसे नियंत्रण में रखने के लिए महंगी दवाएं खानी पड़ती हैं।’’
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)