उत्तर प्रदेशः 86 मेडिकल कॉलेज, नर्सों की कमी से जूझ रहे सरकारी अस्पताल, 6460 पद खाली
By राजेंद्र कुमार | Updated: May 12, 2025 16:58 IST2025-05-12T16:57:40+5:302025-05-12T16:58:53+5:30
सरकार के रिकार्ड के अनुसार प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में नर्सों के 12,485 पद स्वीकृत हैं. इनमें भी महज 6,025 पद पर ही नर्सें काम कर रही हैं.

सांकेतिक फोटो
लखनऊः देश में सबसे अधिक 86 मेडिकल कॉलेज वाला राज्य है उत्तर प्रदेश. इस राज्य में एमबीबीएस की 11,200 सीटें है. जिनमें एमबीबीएस की 5,150 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में और 6050 सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं. इस शानदार रिकार्ड के बाद भी उत्तर प्रदेश के अधिकांश बड़े अस्पताल अस्पताल नर्सों की कमी से जूझ रहे हैं. इसकी वजह है राज्य में नर्सों के स्वीकृत पदों में से करीब करीब 50 प्रतिशत पदों का रिक्त होना. सरकार के रिकार्ड के अनुसार प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में नर्सों के 12,485 पद स्वीकृत हैं. इनमें भी महज 6,025 पद पर ही नर्सें काम कर रही हैं.
कुल 6,460 पद खाली पड़े हैं, यानी नर्सों के 50 प्रतिशत से अधिक पद खाली हैं. इसका खमीयाजा लखनऊ में केजीएमयू, पीजीआई, लोहिया अस्पताल और कैंसर हास्पिटल जैसे बड़े संस्थानों में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
लखनऊ के बाहर सूबे के अन्य जिलों में बने सरकारी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में भी कुछ यही दशा है. कुल मिलाकर राज्य के हर सरकारी अस्पताल में नर्सों की कमी है और जो नर्स अस्पताल में कार्य कर रही हैं उनपर काम का बहुत दबाव है. ऐसे में मरीजों को समुचित इलाज मुहैया कराने में नर्सों को अड़चन आ रही है.
नर्सों की कमी से मरीज परेशान
यह सब जानने हुए भी प्रदेश सरकार इस दिशा में तेजी नहीं दिखा रही है. जबकि राजकीय नर्सेज संघ उत्तर प्रदेश के महामंत्री अशोक कुमार नर्सों के रिक्त पदों को भरने और वर्षों के नर्सों की पदोन्नति ना किए जाने के सवाल को लेकर सूबे के चिकित्सा स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक और प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य पार्थसारथी सेन मिल चुके हैं.
इसके बाद भी सरकारी अस्पतालों में नर्सों की कमी बरकरार है. इस कारण सरकारी अस्पतालों में भर्ती हर मरीज को इलाज का इंतजार करना पड़ रहा है. डॉक्टर मरीजों को दवा, ड्रेसिंग व जांच आदि लिखकर जाते हैं. हर मरीज को समय से दवा देना, बीपी चेक करना, इंजेक्शन लगाना, ग्लूकोज की बोतल समय से बदलाना यह सब नर्सों की जिम्मेदारी है.
काम का दबाव अधिक होने से नर्सों को सभी मरीजों तक पहुंचने में काफी देर लग जाती है. ऐसे में तीमारदारों से लेकर मरीज तक को परेशानी उठानी पड़ती है. कई बार नर्सों को बुलाने के लिए मरीज को काफी देर तक इंतजार करना पड़ जाता है. तो मरीज परिवारीजन अस्पताल की सुविधाओं को लेकर नाराज होते हैं.
राजकीय नर्सेज संघ की मांग
राजकीय नर्सेज संघ उत्तर प्रदेश के महामंत्री अशोक कुमार कहते हैं, अस्पतालों में नर्सों की कमी के कारण यह माहौल बनता है. इसके बाद भी सूबे की सरकार इस बारे में कदम नहीं उठा रही. जबकि सरकार को पता है कि किसी भी सरकारी अस्पताल में नर्सों की मानक के अनुसार तैनाती नहीं है क्योंकि अस्पताल में तय पदों से भी कम पर नर्सों की तैनाती है.
यहीं नही प्रदेश में नर्सिंग की एक ही पढ़ाई कर अलग-अलग चिकित्सा संस्थानों,मेडिकल कॉलेजों, जिला अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों पर काम करने वाली नर्सों के वेतन-भत्तों में बड़ी असमानता है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त नर्सें पीजीआई, केजीएमयू, लोहिया संस्थान की नर्सों से करीब 15 हज़ार रुपए कम वेतन पर काम कर रही हैं.
इन्हें बच्चों की फीस प्रतिपूर्ति, न्यूज़ पेपर भत्ता व इंटरनेट भत्ता आदि तमाम भत्ते नहीं दिये जा रहे हैं. लोक सेवा आयोग से चयनित नर्सें चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग दोनों में काम कर रही हैं. दोनों की योग्यता और चयन का आधार एक होने के बावजूद इनके वेतन-भत्तों में बड़ा अंतर है.
स्वास्थ्य विभाग की नर्सें न सिर्फ़ कम वेतन-भत्तों के साथ काम कर रहीं है बल्कि इन्हें पदोन्नति के लिये 15 से 20 वर्ष का इंतज़ार करना पड़ता है. बहुत सी नर्सें बिना पदोन्नति पाए उसी पद से सेवानिवृत्त हो गई हैं. नर्सों की समस्याओं को लेकर प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य मंत्री से कई बार वार्ता के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
सरकार को चाहिए की समान वेतन भत्ते और सुविधाओं के लिये सख्त कानून बनाए. अशोक कुमार के अनुसार, वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं संविदा कर्मचारियों के भरोसे हैं. बड़ी संख्या में नर्स संविदा व आउटसोर्सिंग पर तैनात हैं. बेहद कम वेतन पर नर्सों की तैनाती की गई है. सरकार संविदा व आउटसोर्सिंग पर नर्सिंग भर्ती बंद करे.
इनके स्थान पर नियमित भर्ती के रास्ते खोले जाएं. किसी भी दशा में सृजित पद खत्म न किया जाए, तब ही अस्पतालों में मरीजों का सही तरीके से इलाज किया जा सकेगा. इस बारे में प्रदेश के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. आरपीएस सुमन का कहना है कि करीब 600 नर्सों की पदोन्नति की गई है और नर्सों की जो भी जायज मांगें और समस्याएं हैं उन्हें दूर किया जा रहा है.
अस्पतालों में नर्सों की तैनाती का मानक
100 बेड पर एक असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट होना चाहिए
200 बेड पर आठ सीनियर नर्सिंग अफसर होने चाहिए
300 बेड पर एक डिप्टी नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट होना चाहिए
500 बेड पर एक चीफ नर्सिंग अफसर होना चाहिए
1000 बेड पर सात असिस्टेंट नर्सिंग सुपरिंटेंडेंट की तैनाती होनी चाहिए