बच्चों में कैंसर का चलन खतरे की घंटी, हर साल चपेट में आते हैं तीन लाख मासूम

By भाषा | Published: September 15, 2019 01:52 PM2019-09-15T13:52:13+5:302019-09-15T13:52:13+5:30

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक 60 प्रतिशत कैंसर पीड़ित बच्चों को जिंदगी की जंग में विजयी बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज़ लिम्फोमा, साकोर्मा और एंब्रायोनल ट्यूमर सिर्फ मुश्किल शब्द ही नहीं बल्कि बच्चों को मुश्किल में डाल देने वाले जानलेवा कैंसर के प्रकार हैं, जो बड़ी खामोशी से हंसते खेलते बच्चे को मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं।

The alarm bells of cancer in children, every year three million innocent people are infected | बच्चों में कैंसर का चलन खतरे की घंटी, हर साल चपेट में आते हैं तीन लाख मासूम

बच्चों में कैंसर का चलन खतरे की घंटी, हर साल चपेट में आते हैं तीन लाख मासूम

Highlightsभारत में डॉक्टर कैंसर पीड़ित केवल 30 प्रतिशत बच्चों को ही बचा पाते हैं। कैंसर बड़ी खामोशी से हंसते खेलते बच्चे को मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं।

बच्चों में कैंसर का बढ़ता चलन पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। हर वर्ष तकरीबन तीन लाख बच्चे इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आते हैं, जिनमें से 78 हजार से ज्यादा अकेले भारत में होते हैं। इससे भी ज्यादा दुखदायी तथ्य यह है कि विकसित देशों में जहां लगभग 80 प्रतिशत बच्चे ठीक हो जाते हैं वहीं भारत में डॉक्टर कैंसर पीड़ित केवल 30 प्रतिशत बच्चों को ही बचा पाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक 60 प्रतिशत कैंसर पीड़ित बच्चों को जिंदगी की जंग में विजयी बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज़ लिम्फोमा, साकोर्मा और एंब्रायोनल ट्यूमर सिर्फ मुश्किल शब्द ही नहीं बल्कि बच्चों को मुश्किल में डाल देने वाले जानलेवा कैंसर के प्रकार हैं, जो बड़ी खामोशी से हंसते खेलते बच्चे को मौत के मुंह तक पहुंचा देते हैं।

हालांकि डाक्टरों की यह बात राहत दे सकती है कि जरा सा ध्यान देने से और समय रहते कैंसर की आहट पहचान लेने से ज्यादातर मामलों में इसे ठीक किया जा सकता है। इस क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन ‘कैनकिड’ की संस्थापक पूनम बगई का कहना है कि गांव देहात में कैंसर पीड़ित बच्चों के अस्पताल और आधुनिक चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचने की दर केवल 15 प्रतिशत ही है। खुद कैंसर पर विजय हासिल करने वाली पूनम इस बीमारी की भयावहता और इसके दर्द को भली भांति समझती हैं।

यही वजह है कि उन्होंने 2004 में अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर इस संगठन की स्थापना की और आज देश के 69 अस्पतालों के साथ काम करते हुए वह 42 हजार से ज्यादा बच्चों को उपयुक्त चिकित्सा सहायता और अन्य तमाम तरह की सुविधाएं प्रदान करने में सफल रही हैं। पूनम ने बताया कि उनका संगठन देश भर में कुल 22 राज्यों के 42 शहरों में 69 कैंसर सेंटरों के साथ साझेदारी में काम कर रहा है। 10 राज्यों में परियोजनाएं स्थापित की गई है। पंजाब और महाराष्ट्र सरकार के साथ नॉलेज पार्टनर के रूप में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इस वर्ष ‘कैंसर सर्वाइवर्स’ की तरफ से बच्चों के कैंसर के बारे में जनजागरूकता फैलाने के इरादे से ‘हक की बात’ अभियान’ चलाया, जिसमें सभी हितधारकों, अस्पताल, नर्सों, स्कूल, कॉलेजों और सरकार को शामिल किया गया है।

बच्चों में होने वाले कैंसर के बारे में नोएडा के जेपी अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, सर्जिकल ओन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर नितिन लीखा का कहना है कि वयस्कों और बच्चों में होने वाले कैंसर में कई अंतर है और भारत में कैंसर के कुल मरीजों में बच्चों की संख्या 3 से 5 प्रतिशत है। उनके अनुसार समय पर बीमारी का पता चल जाए तो काफी हद तक कैंसर को मात दी जा सकती है।

उन्होंने बताया कि एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज़ लिम्फोमा आदि बच्चों में होने वाले कैंसर हैं। अभिभावकों को कैंसर से जुड़े प्रारंभिक लक्षणों की जानकारी रखनी चाहिए और बच्चे का शारीरिक, मानसिक विकास सामान्य रूप से न हो रहा हो, कम वजन होने लगे, अचानक रक्त स्राव हो अथवा शरीर के किसी हिस्से में गांठ उभरने लगे तो सचेत हो जाएँ, साथ ही बीमारियों की फैमिली हिस्ट्री पर नज़र रखें, क्योंकि ल्यूकेमिया और ब्रेन ट्यूमर आदि जैसे कैंसर अनुवांशिक कारणों से भी हो सकते हैं।

इस संबंध में एक्शन कैंसर अस्पताल में सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक हेमेटो ऑन्कोलॉजी डॉक्टर ऊष्मा सिंह का कहना है कि बच्चों के कैंसर के संबंध में भारत सहित एशिया के तमाम देश दयनीय स्थिति में हैं। इन देशों में उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी तो है ही, गरीबी और जागरुकता की कमी से हालात और बिगड़ गए हैं। उन्होंने बताया कि जानकारी के अभाव में बच्चों को बीमारी के तीसरे या चौथे चरण में इलाज के लिए लाया जाता है, जिसमें मरीज़ की जान बचा पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में इस बीमारी के जल्दी पता चलने पर बड़े जोखिम से बचा जा सकता है।

Web Title: The alarm bells of cancer in children, every year three million innocent people are infected

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