भारत में एंटीबायोटिक की कमी से हर साल लाखों की मौत, 10189 लोगों पर सिर्फ 1 डॉक्टर
By भाषा | Published: April 16, 2019 11:43 AM2019-04-16T11:43:59+5:302019-04-16T11:43:59+5:30
अमेरिका के 'सेंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिसी' (सीडीडीईपी) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लोगों को बीमारी पर 65 फीसदी खर्च खुद उठाना पड़ता है। यह हर साल 5.7 करोड़ लोगों को गरीबी के गर्त में धकेलता है।
सीडीडीईपी में निदेशक रमणन लक्ष्मीनारायण ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाई के प्रतिरोध से होने वाली मौतों की तुलना में एंटीबायोटिक नहीं मिलने से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में हर साल 57 लाख ऐसे लोगों की मौत होती है, जिन्हें एंटीबायोटिक दवाइयों से बचाया जा सकता था। ये मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। सीडीडीईपी ने यूगांडा, भारत और जर्मनी में सर्वेक्षण और सामग्री का अध्ययन कर उन पहलुओं की पहचान की जिनके चलते मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं मिलती हैं।
10 हजार पर एक डॉक्टर भारत में अनुमानित तौर पर भारत में हर 10189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हर 1000 लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है। इस तरह छह लाख डॉक्टरों की कमी है।
वहीं, देश में हर 483 लोगों पर महज एक नर्स है। यही नहीं, उचित तरीके से प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को जीवन बचाने वाली एंटीबायोटिक दवाइयां नहीं मिल पाती हैं।