प्लाज्मा थेरेपी क्या है, इससे कैसे होता है कोरोना का इलाज, कितनी कारगर है थेरेपी, कौन डोनेट कर सकता है प्लाज्मा, खर्च कितना आता है?
By उस्मान | Published: April 25, 2020 10:40 AM2020-04-25T10:40:10+5:302020-04-25T10:40:10+5:30
कोरोना वायरस का भी तक कोई स्थायी इलाज नहीं मिला है लेकिन दुनियाभर में प्लाज्मा थेरेपी के जरिये मरीजों का इलाज हो रहा है, जानिये यह कितनी असरदार है
कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में तबाही मची हुई है और इसका अब तक कोई स्थायी इलाज नहीं है। हालांकि शोधकर्ता पूरी हिम्मत के साथ कोरोना का इलाज खोजने में जुटे हैं।
कोरोना से दुनियाभर में अब तक 197,246 लोगों की मौत हो चुकी है और 2,830,082 लोग इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। अगर बात करें भारत कि तो अब तक 24,447 संक्रमित हुए हैं और 780 लोग दम तोड़ चुके हैं।
बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने हाल ही में कोरोना वायरस के लिए प्लाज्मा ट्रीटमेंट (plasma treatment) के क्लिनिकल ट्रायल के लिए मंजूरी दी है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस थेरेपी से गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ठीक करने में मदद मिलेगी।
दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में मरीज़ों पर प्लाज्मा का ट्रायल शुरू किया गया है। दिल्ली में चार मरीजों का प्लाजमा टेस्ट हुआ और इसके रिजल्ट पॉजिटिव आये हैं। आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि आखिर ये प्लाज्मा थेरेपी है क्या है इसके जरिए कैसे मरीजों को ठीक किया जा सकता है, चलिए जानते हैं-
प्लाज्मा ट्रीटमेंट क्या है (What is plasma treatment)
इन परीक्षण में कोविड-19 की चपेट से बाहर आए मरीजों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर बीमार रोगियों को ठीक करने के लिए दिया जाता है। उन लोगों में पहले से ही एंटीबॉडी मौजूद हैं जो वायरस को दूर भगाते हैं। उनका उपयोग दूसरे रोगी के लिए भी किया जा सकता है। शोधों से पता चलता है कि यह संक्रमित की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
थेरेपी से सिर्फ 3 से 7 दिन में ठीक हो सकता है कोरोना का मरीज
ब्लड प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस के मरीज 3 से 7 दिनों के भीतर सही हो जा रहे हैं। यह खुलासा त्रिवेंद्रम स्थित चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर हेड डॉक्टर देवाशीष गुप्ता ने किया है।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि एक डोनर प्लाज्मा का इस्तेमाल करके दो से पांच मरीजों को ठीक किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि एक मरीज को ठीक करने के लिए लगभग 200-250 मिली प्लाज्मा की आवश्यकता होती है। अध्ययनों के आधार पर अमेरिका और चीन में देखा गया है इस थेरेपी से तीन या सात दिन में मरीज सही हो जाता है।
ठीक हुए मरीज का प्लाज्मा कब ले सकते हैं ?
उन्होंने बताया कि ठीक हुए मरीज और प्लाज्मा लेने के बीच कम से कम 28 दिनों का अंतराल होना चाहिए. हम ठीक हुए रोगियों की सूची बनाकरउनसे संपर्क करेंगे और प्लाज्मा डोनेट करने के लिए उनकी काउंसलिंग करेंगे। फिर इकट्ठे हुए प्लाज्मा को विभिन्न क्लीनिकों में वितरित किया जा सकता है।
कोरोना के किन मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है?
डॉक्टर ने बताया कि जिन मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है उनके लिए भी दिशा-निर्देश हैं। सामान्य तौर पर वायरस से गंभीर रूप से प्रभावित और श्वसन संक्रमण से पीड़ित मरीजों को प्लाज्मा दिया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ ने माना कारगर इलाज
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस थेरेपी को बेहतर माना है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग एक 'बहुत ही मान्य' दृष्टिकोण है, लेकिन परिणाम को अधिकतम करने के लिए समय महत्वपूर्ण है। यह थेरेपी रेबीज और डिप्थीरिया जैसे इन्फेक्शन के खिलाफ प्रभावी साबित हुआ है।
प्लाज्मा थेरेपी की कीमत
हालांकि प्लाज्मा ट्रीटमेंट का नकारात्मक पक्ष यह है कि यह थेरेपी महंगी और सीमित है। एक ठीक हुए मरीज से एक दान से उपचार की केवल दो खुराक मिल सकती है।
अमेरिका और चीन में शुरू हो चुका है प्लाज्मा ट्रीटमेंट
अमेरिका और इंग्लैंड में इसे लेकर इसका परीक्षण शुरू हो चुका है, वहीं चीन दावा कर रहा है कि उसने इस प्लाज्मा थैरेपी से मरीजों को ठीक किया है। फरवरी के मध्य में चीन के 20 ऐसे नागरिकों ने अपने प्लाज्मा दान किए जो कोविड-19 से ठीक हो चुके थे। वुहान में उनके इन प्लाज्मा का उपयोग कई मरीजों पर किया गया, जिन्हें उपचार में मदद भी मिली। ये 20 लोग ऐसे डॉक्टर व नर्से थीं जो वायरस की चपेट में आई थीं।
भारत में कब शुरू होगी प्लाज्मा थेरेपी
भारत में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल शुरू हो चुका है। कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजिवाल ने जानकारी दी थी कि एलएनजेपी में चार मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण सफल रहा और उन्होंने ठीक हुए मरीजों से प्लाज्मा डोनेट करने की भी मांग की थी। इसके अलावा केरल और कर्नाटक सही कई राज्यों में इस थेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है।