कोविड-19: दिल्ली में अगले दौर का सीरो-सर्वे 15 अक्टूबर से शुरू होगा
By भाषा | Published: October 8, 2020 09:11 AM2020-10-08T09:11:09+5:302020-10-08T09:11:09+5:30
दिल्ली में इससे पहले भी दो बार सीरो-सर्वे हो चुका है
राष्ट्रीय राजधानी में अगले दौर का सीरो-सर्वे अब 15 अक्टूबर से शुरू होगा, जो पहले एक अक्टूबर से होने वाला था। सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी। दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति का आकलन करने और महामारी से निपटने की रणनीति बनाने के लिये पिछला सर्वे एक से सात सितंबर के बीच हुआ था।
लेकिन इसके बाद होने वाले सर्वे में विलंब हुआ। इसमें विलंब होने का कारण यह है कि पिछले महीने किये गये सर्वे के नतीजे 30 सितंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को सौंपे गये थे। एक आधिकारिक सूत्र ने बताया, 'इस महीने का सर्वे अब 15 अक्टूबर से शुरू होगा।'
दिल्ली में संक्रमितों की संख्या 2.95 लाख पार
अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 से 39 और मरीजों की मौत हो जाने से कुल मृतक संख्या बढ़ कर 5,581 हो गई। वहीं, संक्रमण के 2,676 नये मामले सामने आने से संक्रमितों की कुल संख्या बढ़ कर 2.95 लाख हो गई।
सीरो-सर्वे, संक्रामक बीमारियों के संक्रमण की निगरानी करने के लिए कराये जाते हैं। इन्हें एंटीबॉडी सर्वे भी कहते हैं। इसके तहत रक्त के नमूने लिये जाते हैं। इसके तहत किसी भी संक्रामक बीमारी के खिलाफ शरीर में पैदा हुए एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है।
कोरोना वायरस या सार्स-कोवी-2 जैसे वायरस से संक्रमित मामलों में ठीक होने वाले मरीजों में एंटीबॉडी बन जाती है, जो वायरस के खिलाफ शरीर को प्रतिरोधक क्षमता देती है।
सीरो- सर्वे क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकने या जोखिम के स्तर के बारे में वास्तविक डेटा का पता लगाने का एकमात्र तरीका लोगों में एंटीबॉडी की उपस्थिति का परीक्षण करना है।
सीरो सर्वे एक विश्व स्तर पर इस्तेमाल किया और विश्वसनीय मानक है जो एक निश्चित संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी के लेवल को मापता है और आबादी का प्रतिशत डीकोड करता है जो पहले वायरस के संपर्क में रहा है।
दिल्ली के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चला है कि कम से कम 15-20% आबादी पहले ही वायरस की चपेट में आ गई थी। इसका तकनीक का उपयोग इसलिए भी किया जाता है ताकि बड़े पैमाने पर टीकाकरण की जांच की जा सके और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का स्तर देखा जा सके।
कोविड-19 से पहले भी, यह देखने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था कि किसी समुदाय में संक्रमण कितनी दूर तक फैल गया है। दुनिया भर के कई देशों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।