Herd immunity: हर्ड इम्यूनिटी क्या है, बिना दवाओं के इससे कैसे खत्म हो सकता है कोरोना वायरस, भारत के लिए कितना कारगर ?
By उस्मान | Published: May 6, 2020 04:00 PM2020-05-06T16:00:52+5:302020-05-06T16:09:22+5:30
Coronavirus and Herd immunity: इसमें किसी देश की 60 फ़ीसदी आबादी को पहले वायरस से संक्रमित होना पड़ेगा और बाद में खत्म किया जाएगा
कोरोना वायरस का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। चीन से महामारी बनकर निकले इस घातक वायरस ने 210 से अधिक देशों में 258,850 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। कोविड-19 की चपेट में 3,743,654 लोग आ गए हैं और यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि 1,248,705 लोगों ने इस वायरस को मात भी दी है और सही होकर वापस घर लौट गए हैं।
कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है हालांकि इस बीच इटली ने दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन बनाने का दावा किया है। लेकिन इस खबर में कितनी सच्चाई है और यह वैक्सीन बाजार में कब तक आएगी, इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है। कुल मिलाकर अभी इस वायरस का कहर थमता नहीं दिख रहा है।
दुनियाभर के तमाम डॉक्टर और वैज्ञानिक दिन-रात कोरोना के इलाज में जुटे हैं। पिछले दो महीनों में जितने भी अध्ययनों में दवा बनाने का दावा किया गया है, उससे सिर्फ यह बात मालूम पड़ती है कि कोरोना की कोई भी दवा या वैक्सीन आने में कम से कम एक से पांच साल लग सकते हैं। इस बीच कोरोना का प्रकोप किस लेवल तक जा सकता है, इस बात का अंदाजा तेजी से बढ़ते आंकड़ों को देखकर लगाया जा सकता है।
कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिक दो भागों में बंटे हुए हैं। एक ग्रुप का कहना है कि इस वायरस से बचना है, तो लॉकडाउन जरूरी है। वहीं, दूसरे ग्रुप का कहना है कि लॉकडाउन से इंसानों को आजादी दो, क्योंकि यही एक तरीका है, जिससे कोरोना वायरस से निपटा जा सकता है। यह चीज है हर्ड इम्यूनिटी (Herd immunity)।
कहा जा रहा है कि इससे पूरी दुनिया को कोरोना से निपटने में मदद मिल सकती है। चलिए जानते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी क्या है और यह कोरोना वायरस को खत्म करने में कैसे सहायक हो सकती है?
हर्ड इम्यूनिटी क्या है (What Is Herd Immunity)
हर्ड इम्युनिटी यानी बड़े समूह की मजबूत होती प्रतिरक्षा प्रणाली। हर्ड इम्युनिटी का हिंदी में अनुवाद सामुहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता है। वैसे हर्ड का शाब्दिक अनुवाद झुंड होता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोरोना वायरस को सीमित रूप से फैलने का मौका दिया जाए तो इससे सामाजिक स्तर पर कोविड-19 को लेकर एक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी।
आसान शब्दों में ऐसे समझें, जब दुनिया की बड़ी आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएगी, तब उसमें प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा हो जाएगी। इसके बाद कोरोना वायरस का लोगों पर अधिक असर नहीं होगा। इसका मतलब यह होता है कि जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं, यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं।
इसे एक उदहारण से समझें। मान लीजिए किसी व्यक्ति को संक्रमण हुआ और उसके बाद उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ने वायरस का मुकाबला करने में सक्षम एंटी-बॉडीज तैयार कर लिया। जैसे-जैसे ज्यादा लोग इम्यून होते जाते हैं, वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का खतरा कम होता जाता है। इससे उन लोगों को भी परोक्ष रूप से सुरक्षा मिल जाती है जो ना तो संक्रमित हुए और ना ही उस बीमारी के लिए ‘इम्यून’ हैं।
भारत में कितनी सफल हो सकती है हर्ड इम्यूनिटी
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) के शोधकर्ताओं का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी की तकनीक भारत में कोरोना से लड़ने के लिए कारगर साबित हो सकती है। शोधकर्ता कह रहे हैं कि यह वैज्ञानिक टेक्निक वास्तव में भारत जैसे देश में काम कर सकती है क्योंकि भारत की आबादी में युवाओं की संख्या अधिक है, जिससे उनके अस्पतालों के भर्ती होने का खतरा काफी कम होगा।
आंकडों के अनुसार, जिन देशों में मलेरिया फैल चुका है, वहां कोरोना वायरस का असर या तो बिल्कुल भी नहीं है या फिर बहुत ही कम है। दरअसल, ऐसा इसलिए है, क्योंकि जिस शरीर में मलेरिया एक बार एक्सपोज हो जाता है, उस शरीर में पाथ वे डेवलप होकर जिंक आयनोस्फेयर पैदा हो जाता है, जिससे ये वायरस कमजोर पड़ने लगता है। लेकिन, हर्ड इम्यूनिटी की थ्योरी भारतीय लोगों पर असर करेगी या नहीं, इस बात को अभी साबित नहीं किया गया है।
कितनी कारगर है हर्ड इम्यूनिटी
ऐसा माना जाता है कि किसी समुदाय में कोरोना वायरस खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब उस समुदाय की करीब 60 फीसदी आबादी को कोरोना वायरस संक्रमित कर चुका हो और वे उससे लड़कर इम्युन हो गए हों। कोरोना से निपटने में हर्ड इम्यूनिटी कितनी कारगर साबित हो सकती है, इस बारे एक्सपर्ट्स की राय अलग-अलग है।
कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अभी पूरे यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि जो लोग नए कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और ठीक होने के बाद उनके शरीर में जो एंटीबॉडी बनी हैं, वो उन्हें दोबारा इस वायरस के संक्रमण से बचा पाएंगी भी या नहीं। डब्ल्यूचओ के अनुसार, अब तक मिली सूचनाओं के अनुसार कोविड-19 से पूरी तरह ठीक हुए लोगों में से बहुत कम में ही एंटीबॉडी बन पाई हैं।