12वीं में 95 फीसदी अंक लाने वाला सलीम कर रहा दिहाड़ी का काम
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 14, 2019 07:33 AM2019-07-14T07:33:50+5:302019-07-14T07:33:50+5:30
उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर ही परिस्थितियां बेहतर होने की प्रेरणा उसे माता-पिता की मेहनत दे रही थी. बेटे ने 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किए, इससे पूरा परिवार खुश जरूर था, लेकिन परिस्थितियों के आगे पिता निराश हो गए.
12वीं में 95 फीसदी अंक लाने वाला सलीम कर रहा दिहाड़ी का काम परिस्थिति के कारण शिक्षा का मार्ग दुर्गम, आईएएस बनने की जिद नागपुर कहते हैं ना, कि आप में जिद हो तो आप हर एक मुकाम को हासिल कर सकते हैं. बस जरूरत होती है केवल उस दिशा में कदम बढ़ाने और मेहनत करने की.
कुछ इसी तरह की मेहनत इन दिनों कक्षा 12वीं में 95 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाला सलीम कर रहा है. सलीम आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए अपने पिता के साथ दिहाड़ी के काम में जुट गया है. ताकि वह अपने सपने पूरे कर सके. कई ऐसे विद्यार्थी हैं जो कम नंबर आने पर अपने पिता को तरह-तरह के बहाने बताकर मना लेते हैं. लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले सलीम मेहबूब शेख ने मेहनत के बल पर कक्षा 12वीं की परीक्षा में 95.40 प्रतिशत अंक प्राप्त किए.
वह आईएस्एस बनना चाहता है. हिंगना तहसील के सुकली बेलदार गांव के निवासी सलीम शेख की प्राथमिक शिक्षा जिला परिषद की शाला में हुई. छठवीं कक्षा में उसका चयन नवोदय विद्यालय में हुआ. वहीं से उसने 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की. उसके पिता मेहबूब शेख मजदूरी करते हैं. परिवार में कुल छह लोग हैं.
कमाई करने वाला कोई नहीं होने के कारण अकेले पर पूरे परिवार की जवाबदारी है. शिक्षा में सलीम ने गुणवत्ता प्राप्त की, लेकिन वह अपने पिता की आर्थिक स्थिति को भी भलीभांति जानता है.केवल शिक्षकों का मार्गदर्शन, मन की जिद और परिश्रम ही उसकी पूंजी है. इसीलिए ईमानदारी से वह रोज छह घंटे पढ़ाई करता था.
उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर ही परिस्थितियां बेहतर होने की प्रेरणा उसे माता-पिता की मेहनत दे रही थी. बेटे ने 95 प्रतिशत अंक प्राप्त किए, इससे पूरा परिवार खुश जरूर था, लेकिन परिस्थितियों के आगे पिता निराश हो गए.
बेटे में क्षमता है, गुणवत्ता है, बावजूद इसके उसे उच्च शिक्षा देने में वह सक्षम नहीं हैं. इस बात का उन्हें दुख है. परिस्थिति के कारण नहीं चुना व्यावसायिक शिक्षा का मार्ग सलीम ने अपने परिजनों को विश्वास दिलाया है कि एक दिन वह तरक्की जरूर करेगा.
परीक्षा होने के बाद वह अपने पिता के साथ दिहाड़ी का काम करने लगा. पढ़ाई के लिए पैसे खर्च नहीं कर सकेंगे इस विचार से उसने इंजीनियरिंग व मेडिकल का मार्ग नहीं चुना. उसने अब शहर के शिवाजी विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश लिया है. लेकिन गांव से कॉलेज आने के लिए लगने वाला खर्च, किताबें और शैक्षणिक सामग्री का खर्च कहां से पूरा होगा, यह सवाल उसे परेशान कर रहा है.
परिस्थिति और लक्ष्य के बीच संघर्ष सलीम का लक्ष्य यूपीएससी की परीक्षा देकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में शामिल होना है. लेकिन गरीबी लक्ष्य पूरा करने में कहीं बाधा न बन जाए, इसकी चिंता उसे सताने लगी है. परिस्थिति और लक्ष्य के बीच वह संघर्ष कर रहा है. इस मेधावी विद्यार्थी को लक्ष्य पूरा करने के लिए समाज से मदद की उम्मीद है.