तीन संस्थानों को मिलेगा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का खर्चा, सरकार ने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए खर्च किए 640 करोड़
By निखिल वर्मा | Published: March 17, 2020 12:52 PM2020-03-17T12:52:24+5:302020-03-17T12:52:24+5:30
राज्यसभा में चर्चा के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से विज्ञान के साथ संस्कृत का ज्ञान जुड़ेगा और देश फिर से विश्वगुरू बनेगा।
राज्यसभा में सोमवार (16 मार्च) को देश में संस्कृत के तीन मानद विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने वाले विधेयक को मंजूरी दी है. श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति और राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान को केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा। लोकसभा में इस विधायक को पिछले साल 12 दिसंबर को पास किया गया था।
राज्यसभा में चर्चा के दौरान कुछ विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि सरकार अन्य भारतीय भाषाओं पर संस्कृत को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं सरकार ने कहा है कि विधेयक का उद्देश्य इन विश्वविद्यालयों के माध्यम से संस्कृत की विरासत को पुनर्जीवित करना है।
चर्चा के दौरान कांग्रेस सदस्य जयराम रमेश ने वैज्ञानिक भाषा और सांस्कृतिक विरासत बताते हुए विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि लेकिन इस भाषा पर कुछ लोगों का एकाधिकार रहा और आम जनों की पहुंच इस भाषा तक नहीं हो पाई जो अफसोसजनक है। उन्होंने कहा कि तमिल, मलयालम, ओडिया भाषा लाखों लोगों के द्वारा बोली जाती है जबकि संस्कृत भाषा बोलने वालों की संख्या देश में महज 15,000 के लगभग है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, जयराम रमेश ने लोकसभा में संस्कृति मंत्री के 3 फरवरी के बयान को कोट करते हुए कहा, सरकार ने संस्कृत की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए 640 करोड़ रुपये खर्च किया जबकि तमिल भाषा के लिए 24 करोड़, तेलगु-कन्नड़ के लिए तीन-तीन करोड़ और मलयालम और उड़िया के लिए शून्य।
विधेयक का बचाव करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, "यह भाषाओं का सवाल नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार सभी भाषाओं की पक्षधर है। उन्होंने कहा, "सरकार संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी 22 भारतीय भाषाओं को मजबूत करने के पक्ष में है। इसके अलावा उन्होंने जोर देकर कहा कि अंग्रेजी भारतीय भाषा नहीं है। उन्होंने कहा कि आज लगभग 5 करोड़ छात्र विभिन्न संस्थानों में संस्कृत पढ़ रहे हैं, और उन्होंने उल्लेख किया कि कई अन्य देशों में भी संस्कृत के लिए संस्थान हैं।
सुब्रमण्यम स्वामी ने दिया नासा का उदाहरण
बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि जो लोग संस्कृत को मृतप्राय भाषा बता रहे हैं, असल में वे खुद बौद्धिक ठहराव की स्थिति झेल रहे हैं जबकि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (आर्टिफिशयल इंटेलिजेन्स) के क्षेत्र में आगे बढ़ने के इच्छुक लोगों के लिए संस्कृत को जानना अनिवार्य बनाया है।