विकास दुबे एनकाउंटर: कैदी को हथकड़ी लगाने या न लगाने पर छिड़ी बहस, जानें पूरा मामला

By भाषा | Published: July 10, 2020 07:20 PM2020-07-10T19:20:45+5:302020-07-10T19:20:45+5:30

देश की शीर्ष अदालत समय-समय पर विचाराधीन व्यक्ति को हथकड़ी लगाए जाने की प्रक्रिया को लेकर दिशा-निर्देश जारी करती रही है।

Vikas Dubey Encounter: Debate erupted over whether or not to handcuff a prisoner, know the whole matter | विकास दुबे एनकाउंटर: कैदी को हथकड़ी लगाने या न लगाने पर छिड़ी बहस, जानें पूरा मामला

विकास दुबे (फाइल फोटो)

Highlightsअदालत का कहना है कि कोई फरार न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये हथकड़ी लगाया जाना अनिवार्य नहीं है।पुलिस के अनुसार दुबे को उज्जैन से कानपुर लाने के दौरान उसने भौती पहुंचने पर भागने की कोशिश की, जिसके बाद वह मारा गया।

नयी दिल्ली: दुर्दांत अपराधी विकास दुबे की शुक्रवार कथित मुठभेड़ में मौत के बाद अपराधियों को हथकड़ी लगाने या न लगाए जाने को लेकर बहस छिड़ गई है। एक तरफ सवाल है कि पुलिस ने दुबे जैसे बदमाश को हथकड़ी क्यों नहीं लगा रखी थी, तो दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय के वे निर्देश हैं, जिनमें वह हथकड़ी लगाए जाने को ''अमानवीय, अनावश्यक तथा कठोर और मनमाना तरीका करार दे चुका है।

पुलिस कई न्यायिक मंचों पर यह कहते हुए हथकड़ी लगाए जाने का समर्थन करती आई है कि इससे यह सुनिश्चित करने मदद मिलती है कि खूंखार आरोपी या दोषी गिरफ्त से भाग न पाए। शीर्ष अदालत समय-समय पर विचाराधीन व्यक्ति को हथकड़ी लगाए जाने की प्रक्रिया को लेकर दिशा-निर्देश जारी करती रही है।

अदालत का कहना है कि कोई फरार न हो, यह सुनिश्चित करने के लिये हथकड़ी लगाया जाना अनिवार्य नहीं है। पुलिस के अनुसार दुबे को उज्जैन से कानपुर लाया जा रहा था। इस दौरान उसने भौती पहुंचने पर भागने की कोशिश की, जिसके बाद वह मारा गया। इस दौरान पुलिस की एक कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई।

बताया जा रहा है कि दुबे ने इस दुर्घटना में घायल हुए एक पुलिसकर्मी से पिस्तौल छीनी और गोलीबारी करते हुए भागने लगा। इस दौरान गोली लगने से उसकी मौत हो गई। हालांकि उत्तर प्रदेश के विपक्षी दल पुलिस की बताई इस बात पर सवाल उठा रहे हैं।

एक अधिकारी ने कहा कि इस दुर्घटना और सुबह करीब छह बजे हुई गोलीबारी में विशेष कार्य बल के दो पुलिस कर्मियों समेत छह पुलिस कर्मी घायल हुए हैं। इस घटना के साथ ही अपराधियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय हथकड़ी लगाने को लेकर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है।

शीर्ष अदालत ने 1995 में कहा था कि हथकड़ी लगाकर या इस तरह के अन्य तरीके अपनाकर आवाजाही की स्वतंत्रता पर बंदिशें नहीं लगाईं जा सकती। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि न्यायिक स्वीकृति के बिना कैदियों को हथकड़ी लगाना अवैध है।

हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा था कि ऐसे मामलों में जब पुलिस या जेल अधिकारियों को इस बात की पक्की आशंका हो कि कोई कैदी जेल या उसकी गिरफ्त से भाग सकता है तो उस कैदी को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर उसे हथकड़ी लगाने की अनुमति मांगी जा सकती है।

अदालत का कहना है कि मजिस्ट्रेट आग्रह पर विचार करके कैदी को हथकड़ी लगाने की अनुमति दे सकता है। अदालत ने कहा था, '' स्पष्ट रूप से घोषणा की जाती है कि कैदी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के संबंध में उसे हथकड़ी लगाने से छूट का नियम है।

कुछ अपवादों को छोड़कर पुलिस महानिरीक्षक, जेल महानिरीक्षक और कैदी के साथ चल रहे कांस्टेबल को इस नियम का पालन करना चाहिये।'' प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन 1980, मामले में शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां करते हुए कहा कि कई और तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में रखा जा सकता है। अदालत ने कहा था कि हथकड़ी लगाना प्रथम दृष्या, अमानवीय, अनावश्यक, कठोर और मनमाना तरीका है। 

Web Title: Vikas Dubey Encounter: Debate erupted over whether or not to handcuff a prisoner, know the whole matter

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