मोहम्मद जुबैर ने ट्वीट करने के लिए पैसे लेने की बात स्वीकार की है- सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार
By शिवेंद्र राय | Published: July 20, 2022 02:13 PM2022-07-20T14:13:44+5:302022-07-20T14:17:10+5:30
सर्वोच्च न्यायलय में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि अल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर कोई पत्रकार नहीं हैं और वह ट्वीट कर लोगों की भावनाएं भड़काने के लिए पैसे लेते हैं।
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय को सूचित किया है कि अल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किए गए ट्वीट्स के लिए पैसे लेने की बात स्वीकार की है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायलय में पेश अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि मोहम्मद जुबैर ने स्वीकार किया है कि उन्हें एक ट्वीट पोस्ट करने के लिए 12 लाख रुपये और दूसरे के लिए 2 करोड़ रुपये मिले। गरिमा प्रसाद ने दावा किया कि ट्वीट जितना भड़काऊ होगा, उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होगी।
शीर्ष अदालत उत्तर प्रदेश में जुबैर के खिलाफ दर्ज की गई कई प्राथमिकी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बहस के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि जुबैर एक पत्रकार होने का दावा करते हैं लेकिन वास्तव में वह भड़काऊ ट्वीट्स करने के लिए पैसे लेते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में बहस के दौरान गरिमा प्रसाद ने कहा, "आरोपी पत्रकार नहीं हैं। वह खुद को फैक्ट चेकर कहते हैं। लेकिन फैक्ट चेक करने के बजाय वह ऐसे ट्वीट करते हैं जो वायरल हो रहे हैं और जहर फैलाते हैं। उन्हें इन ट्वीट्स के लिए भुगतान किया गया है और उन्हें ज्यादा दुर्भावनापूर्ण ट्वीट्स के लिए अधिक भुगतान किया जाता है।"
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश वकील गरिमा प्रसाद ने न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि मोहम्मद जुबैर उन वीडियो और भाषणों का फायदा उठाते हैं जो सांप्रदायिक विभाजन पैदा कर सकते हैं। गरिमा प्रसाद ने आरोप लगाया और कहा, "वह ऐसे वीडियो का फायदा उठाते हैं, अपने लाखों फॉलोअर्स को ट्वीट करते हैं। फिर वह देश भर के लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए लिखते हैं। इसके बाद सांप्रदायिक तनाव पैदा होता है।"
बता दें कि मोहम्मद जुबैर की तरफ से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ दर्ज सभी छह एफआईआर को रद्द करने और एसआईटी गठन को चुनौती देने की मांग की गई थी। पिछली सुनवाई में सर्वेच्च न्यायालय ने जुबैर को राहत देते हुए कहा था कि यूपी में उनके खिलाफ दर्ज की गई सभी एफआईआर में कोई प्रारंभिक कार्रवाई नहीं की जाएगी।