निर्भया केस: 17 साल पहले बना यह नियम दोषियों को बचाव के लिए दे सकता है एक और मौका
By रोहित कुमार पोरवाल | Published: December 13, 2019 11:20 AM2019-12-13T11:20:51+5:302019-12-13T11:20:51+5:30
निर्भया के साथ हैवानियत के मामले में न्याय पाने की प्रक्रिया में सात साल लग चुके हैं और निकट भविष्य में इसके मिलने की उम्मीद पर कैदियों के अंतिम बचाव के लिए बना 17 साल पुराना नियम पानी फेर सकता है।
निर्भया गैंगरेप-हत्याकांड के चारों दोषियों को फांसी देने के लिए दिल्ली के तिहाड़ जेल में तैयारी हो रही है। निर्भया के माता-पिता ने दिल्ली की एक अदालत से दोषियों को जल्द से जल्द फांसी के फंदे पर लटकाने की गुहार लगाई है और इसी बीच अब चारों दोषियों में से एक अक्षय ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की है।
निर्भया के साथ हैवानियत के मामले में न्याय पाने की प्रक्रिया में सात साल लग चुके हैं और निकट भविष्य में इसके मिलने की उम्मीद पर कैदियों के अंतिम बचाव के लिए बना 17 साल पुराना नियम पानी फेर सकता है।
दरअसल, मामले में कार्रवाई कानून के मुताबिक ही चल रही है लेकिन जिस तरह से दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाए जाने की अटकलें चल रही हैं, अगर उन्हें सही भी मान लिया जाए तो भी काफी समय लग सकता है।
क्यूरेटिव पिटीशन दोषियों के पास राहत का अंतिम मौका
दरअसल, 2002 में सुप्रीम कोर्ट में एक दंपति रुपा अशोक हुरा के मामले की सुनवाई हुई थी। उस दौरान यह सवाल उठा था कि क्या शीर्ष अदालत के द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी किसी गुनहगार को उसके बचाव का मौका मिल सकता है? आम तौर पर ऐसे मामले में दोषी पुर्नविचार याचिका दायर करता है लेकिन सवाल यह था कि अगर पुर्नविचार याचिका भी खारिज कर दी जाती है तो दोषी के पास क्या विकल्प बचता है?
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को दुरुस्त करने और उसे गलत क्रियान्वन से बचाने की संभावना के मद्देनजर उपचारात्मक याचिका की धारणा लेकर आया, जिसे अंग्रेजी में क्यूरेटिव पिटीशन कहते हैं। इसमें क्यूरेटिव का मतलब क्योर से ही है, जिसका मतलब उपचार से होता है।
यह याचिका किसी भी दोषी के पास उसके बचाव के लिए अंतिम विकल्प है। सुप्रीम कोर्ट से रिव्यू पिटीशन यानी पुर्नविचार याचिका और राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किए जाने के बाद दोषी के पास क्यूरेटिव पिटीशन का विकल्प होता है।
क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को अदालत को बताना होता है कि वह किस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दे रहा है।
क्यूरेटिव पिटीशन किसी वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा प्रमाणित होना जरूरी होता है। सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायमूर्ति और फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्तियों के पास भी इस याचिका को भेजा जाना जरूरी होता है।
पीठ के ज्यादातर न्यायमूर्ति अगर तय करते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को फिर से फैसला सुना चुके न्यायमूर्तियों के पास भेज दिया जाता है।
वहीं, राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के 14 दिन बाद दोषियों को फांसी देने का नियम है।