बिहार के डॉन और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन कैसे बना 'शाबू-AK 47', तेजाब में जिंदा डलवाता था लोगों को

By पल्लवी कुमारी | Published: March 27, 2019 02:04 PM2019-03-27T14:04:43+5:302019-03-27T14:04:43+5:30

शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था। शहाबुद्दीन पर 40 आपराधिक मामले इसपर दर्ज हैं। फिलहाल शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है।

Mohammad Shahabuddin Inside Story on Acid attack, know about all thing of Shahabuddin | बिहार के डॉन और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन कैसे बना 'शाबू-AK 47', तेजाब में जिंदा डलवाता था लोगों को

बिहार के डॉन और बाहुबली नेता शहाबुद्दीन कैसे बना 'शाबू-AK 47', तेजाब में जिंदा डलवाता था लोगों को

Highlights1986 में हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन पर पहली बार एफआईआर दर्ज हुआ। आज उसी थाने में ये A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर है।शहाबुद्दीन को पूरे सीवान में कोई उसका नाम लेकर नहीं बोलता था...शहाबुद्दीन के लिए एक ही नाम फेमस था साहब।

सितंबर 2016 का महीना सड़कों पर लोग लाइन लगाकर एक काफिले का स्वागत कर रहे थे... जनता जय-जयकार का नारा लगा रही थी। काफिले से कोई सेलिब्रेटी या कोई समाजसेवी नहीं बल्कि 12 सालों बाद जेल से जमानत पर रिहा होकर एक अपराधी गुजर रहा था। नाम था- मोहम्मद शहाबुद्दीन। लेकिन ये सिर्फ एक अपराधी नहीं बल्कि जनता के लिए रॉबिनहुड्ड और बाहुबली नेता था। जेल में जमानत पर रिहा होने के बाद शहाबुद्दीन के साथ 1300 गाड़ियों का काफिला चला था। 

23 साल की उम्र में ही पहली बार 1990 में विधायक बना शहाबुद्दीन

सालों तक जेल में बिताने के बाद इसे आप शहाबुद्दीन का खौफ कह लीजिए या डर टोल टैक्स वाले वाले साइड में खड़े हो गए थे। ये एक छोटी सी घटना ये बताने के लिए काफी है कि मोहम्मद शहाबुद्दीन का बिहार में कैसा दबदबा है? कहा जाता है कि बिहार में आजतक इससे बड़ा कोई डॉन नहीं हुआ। RJD का पूर्व सांसद शहाबुद्दीन बिहार में डर का दूसरा नाम है। 10 मई 1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में जन्मे शहाबुद्दीन 23 साल की उम्र में ही पहली बार 1990 में विधायक बना। जबकि विधायक के लिए कम से कम 25 साल की उम्र होती है। बिहार के सीवान का रहने वाला शहाबुद्दीन चार बार लगातार सांसद और दो बार विधायक रहा। 

शहाबुद्दीन का नाम ही शाबू-AK 47 पड़ गया था

1986 में हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन पर पहली बार एफआईआर दर्ज हुआ। आज उसी थाने में ये A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर है। जिसका मतलब है वैसा अपराधी जिसमें कभी सुधार नहीं हुआ। शहाबुद्दीन कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था। इतना कि इसका नाम ही शाबू-AK 47 पड़ गया। लेकिन वो कांड जिसने पूरे बिहार ही नहीं बल्कि देश को भी हिला दिया। शहाबुद्दीन के खौफनाक आतंक का सच जब लोगों ने सुना तो उनके रूह कांप गए। ये वहीं कांड है, जिसमें शहाबुद्दीन को सुप्रीम कोर्ट ने भी उम्रकैद की सजा सुनाई है।

सीवान के एसिट अटैक की पूरी कहानी 

सीवान में प्रतापपुर जो शहाबुद्दीन का पैतृक घर है। इस वक्त तक सीवान में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। हाल ये था कि या तो उसकी बात सुनिए नहीं तो पीटये या मारे जाओ। खौफ इतना है कि शहाबुद्दीन को पूरे सीवान में कोई उसका नाम लेकर नहीं बोलता था...शहाबुद्दीन के लिए एक ही नाम फेमस था साहब। मौटे तौर पर ये कहना गलत नहीं होगा कि सीवान में शहाबुद्दीन की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था। 

ये घटना है 16 अगस्त 2004 की है। हर रोज की तरह शहाबुद्दीन के गुंडे सीवान में रंगदारी वसूल करने निकलते हैं। चंदाबाबू सीवान के स्थानीय निवासी थे, जिनके चार बेटे और एक बेटी थी। चार बेटे में से एक बेटा उनका अपाहिज था। तीनों बेटे काम पर लगे हुए थे। चंदा बाबू के दो दुकान थे। 16 अगस्त 2004 को शहाबुद्दीन के गुंडे चंदाबाबू के दुकान पर वसूली के लिए पहुंचते हैं और रंगदारी के लिए एक दुकान से 2 लाख की वसूली मांगते हैं। 

दुकान पर चंदाबाबू का एक बेटा राजीव बैठा हुआ था। राजीव बोलता है कि 2 लाख तो है नहीं 30 से 40 हजार है यही ले लीजिए...राजीव को ये बात अच्छे से पता थी कि साहब के लोगों को मना करने का क्या मतलब होता है। लेकिन शहाबुद्दीन के गुंडों ने राजीव के साथ मारपीट की, दुकान में तोड़फोड़ की और गल्ले के सारे पैसे लेकर चले गए। 

राजीव को इस बात पर बहुत गुस्सा आया। वहीं से राजीव घर भागकर गया और घर पर रखे एसिड को उठा कर ले आया और उसने शहाबुद्दीन के गुंडों पर जाकर फेंक दिया। इसके कुछ छीटें राजीव के भाई को भी पड़े थे। शहाबुद्दीन के गुंडों को कुछ खासा नुकसान नहीं हुआ। 

जेल में सिर्फ नाम के लिए बंद थे शहाबुद्दीन

जब ये पूरा कांड हो गया तो शहाबुद्दीन के लोग वापस जाते हैं। शहाबुद्दीन उस वक्त सीवान के जेल में ही बंद थे। कहते हैं कि वो जेल में बंद सिर्फ नाम के लिए था। जेल में शहाबुद्दीन अपना दरबार लगाता था और जेल से जब मन हुआ बाहर ठहलने के लिए भी निकल जाता था और ये सच था... क्योंकि सीवान में उसका बोलबाल था और उस वक्त वो सीवान का सांसद भी था। शहाबुद्दीन के गुंडे जब इस खबर को लेकर शहाबुद्दीन के पास पहुंचते हैं तो एक बदले की कार्यवाही शुरू होती है। 

चंदाबाबू के दोनों बेटों को किया जाता है अगवा

शहाबुद्दीन के कहने पर राजीव और उसके भाई सतीश, जो दोनों अपने दुकान पर काम कर रहे होते हैं, उनको अगवा किया जाता है और प्रतापुर ले आते हैं। प्रतापपुर वहीं, जहां शहाबुद्दीन का परिवार रहता था। इन दोनों भाईयों के अलावा राजीव के तीसरे भाई गीरीश को भी अगवा किया जाता है। उसके बाद तीनों को प्रतापुर में दिनभर रखा जाता है। 

2004 में अगस्त की रात भी शहाबुद्दीन जेल से बाहर आता है और फरमान सुनाता है और उस फरमान के तहत दो भाईयों को पेड़ से लटकाया जाता है...और उनको लटकाने के बाद बहुत बड़े-बड़े डब्बों में तेजाब भरकर लाया जाता है और तेजाब लाने के बाद सतीश और गरीश जो दोनों भाईय हैं, उसको तेजाब के डब्बे में बार-बार डुबाया जाता है... निकाला जाता है। चश्मदीद बताते हैं कि तेजाब से नहलाने के बाद शरीर में हड्डी के सिवा कुछ नहीं बचा था...उसके बाद उन हड्डियों के भी टूकड़े किए गए और उन्हें किहीं फिकवा दिया गया। 

जो तीसरा भाईया था राजीव इत्तेफाक से वह बच गया। उसको वहां बांध कर रखा गया था। प्लानिंग थी इसको भी मारने की। लेकिन किस्मत का खेल था कि वह प्रतापपुर से किसी अनाज के ट्रक में छिपकर निकल गया और यूपी पहुंच गया। लेकिन उस वक्त के मीडियो रिपोर्ट्स की मानें तो ये सारी घटना राजीव ने अपनी आंखों से देखी थी। उसने देखा था कि किस तरह उस रात शहाबुद्दीन के सामने उसके दो भाईयों को तेजाब से नहलाकर मारा गया था। ये घटना पूरे देश मे एसिड बाथ डबल मर्डर के नाम से फेमस हुआ। 

घटना के वक्त चंदाबाबू नहीं थे सीवान में मौजूद 

इस दौरान चंदाबाबू, लड़कों के पिता किसी काम से पटना गए हुए थे। पटना में उनको खबर मिली की उनके दोनों बेटों को शहाबुद्दीन के आदमियों ने मारा है। उनको ये भी खबर नहीं थी कि उनका तीसरा बेटा राजीव जिंदा है... ये उनको बाद में पता चला कि वो जिंदा था। इसके बाद शहाबुद्दीन के डर से चंदाबाबू अपने आपहिज बेटे, बेटी और पत्नी को लेकर पटना शिफ्ट हो जाते हैं... उसके बाद उन्होंने पटना के कोई ऐसे मंत्री और अधिकारियों को नहीं छोड़ा जिससे उन्होंने ने मदद ना मांगी हो। लेकिन शहाबुद्दीन के खिलाफ जाने के लिए कोई तैयार नहीं था। 

मामले पर कुछ कार्रवाई ना होने की वजह एकदम साफ था आरजेडी की सरकार। लालू यादव के खासमखास शहाबुद्दीन का कोई बाला भी बाका नहीं कर सकता था। 2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि लालू की सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को पनाह दे रही थी। सरकार की छाया में वह खुद ही कानून बन गया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में  शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई

चंदाबाबू ने लेकिन हार नहीं मानी। बिहार में सत्ता बदलने का चंदाबाबू का फायदा मिला। नीतीश कुमार की सरकार में बिहार के डीजीपी ने शहाबुद्दीन के खिलाफ सारे केस खोले...उसमें ये तेजाब कांड का भी नाम आया...क्योंकि इसका गवाह जिंदा था तो उसकी गवाही हुई। मामले की जांच CID को सौंपी गई। तब जाकर 2005 में शहाबुद्दीन के सांसद रहते बिहार पुलिस की एक टीम दिल्ली आती है और शहाबुद्दीन को उसके सरकारी निवास से गिरफ्तार किया जाता है और केस आगे बढ़ता है। मुकदमा चलने के बाद और राजीव की गवाही होने के बाद उसको जान से  मारने की लगातार धमकी मिलती है। 

पुलिस सुरक्षा के बीच चंदाबाबू राजीव और अपने पूरे परिवार के साथ सीवान लौटते हैं। 24 घंटे उनके घर के आगे पुलिस पहरा देती है। इसी बीच राजीव की शादी होती है। और उधर पटना हाईकोर्ट इसी मामले में शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाती है। लेकिन शादी के 18वें दिन 16 जून 2014 को सरेआम राजीव की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी जाती है। लेकिन इसे तेजाब केस पर कुछ खासा असर नहीं पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट भी 2018 के अक्टूबर में शहाबुद्दीन के उम्रकैद के सजा को बरकार रखती है। 

इन मामलो में भी शहाबुद्दीन को हो चुकी है सजा 

-छोटेलाल अपहरण कांड - उम्रकैद
-एसपी सिंघल पर गोली चलाने के केस में- 10 साल की सजा
- आर्म्स एक्ट के मामले में- 10 साल की सजा
- जीरादेई थानेदार को धमकाने के मामले में, चोरी के समान के मामले में, माले कार्यालय पर गोली चलाने के मामले में सजा सुनाई गई है। 

डॉक्टर की फीस भी सीवान में तय करता था शहाबुद्दीन

शहाबुद्दीन पर 40 आपराधिक मामले इसपर दर्ज हैं, लेकिन बहुत तो ऐसे हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं है। जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे क्योंकि साहब का ऑर्डर था। रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे, कोई नई कार नहीं खरीदता था, अपनी सैलरी नहीं बताता था, आम लोग पैदल चलते थे और अमीर लोग पुरानी मोटरसाइकिल। लालू राज में सीवान जिले का इससे ज्यादा कोई विकास नहीं हुआ। मीडिया और पत्रकारों की तो वहां एक नहीं चलती थी। 1999 में इसने कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यकर्ता को शहाबुद्दीन ने किडनैप कर लिया था। उस कार्यकर्ता का फिर कभी कुछ पता ही नहीं चला। इसी मामले में 2003 में शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा था। 

शहाबुद्दीन ने कॉलेज से ही अपराध और राजनीति की दुनिया में कदम रखा था। देश में अपराध से आगे बढ़कर राजनीति की दुनिया में कदम रखने वालों की कमी नहीं है और शहाबुद्दीन ने भी अपने लिए यही रास्ता चुना। जीरादेई विधानसभा सीट से 1990 और 1995 में जीत हासिल कर शहाबुद्दीन विधायक बना। 1996 में लोकसभा सीट से जीता। 1996 से 2008 तक वो लगातार चार बार सांसद रहा। 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। शहाबुद्दीन अभी भी जेल में बंद है। लेकिन जनता में उसकी फैन फॉलोविंग अभी भी बनी हुई है। 

Web Title: Mohammad Shahabuddin Inside Story on Acid attack, know about all thing of Shahabuddin

क्राइम अलर्ट से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे