झारखंड मानव तस्करीः नौकरी के बहाने हजारों आदिवासी बच्चे शिकार?, दिल्ली, मुंबई में नाबालिग बेचने का धंधा
By एस पी सिन्हा | Updated: June 18, 2025 14:49 IST2025-06-18T14:47:46+5:302025-06-18T14:49:57+5:30
Jharkhand human trafficking: तस्करी की शिकार अधिकांश महिलाएं उरांव, मुंडा, संथाल, लुप्तप्राय पहरिया और गोंड जनजातियों की होती हैं। जिनमें अधिकांशतः उरांव और मुंडा समुदाय की होती हैं।

सांकेतिक फोटो
रांचीः झारखंड भारत में मानव तस्करी का केंद्र बन गया है, जहां हर साल हजारों आदिवासी लड़के और लड़कियों, खास तौर पर नाबालिग लड़कियों की तस्करी दिल्ली और उसके बाहर की जाती है। हाल यह है कि आदिवासी बहुल झारखंड राज्य पिछले कुछ दशकों में बच्चों की तस्करी का प्रमुख स्रोत बनकर उभरा है। भोले भाले ग्रामीणों को नौकरी दिलाने का लालच देकर मानव तस्कर उन्हें बड़े शहरों में बेच डालते हैं। झारखंड के मानव तस्करी प्रभावित जिलों में गुमला, गढ़वा, साहिबगंज, दुमका, पाकुड़, पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा), रांची, पलामू, हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा और लोहरदग्गा मुख्य रूप से शामिल हैं। वहीं तस्करी की शिकार अधिकांश महिलाएं उरांव, मुंडा, संथाल, लुप्तप्राय पहरिया और गोंड जनजातियों की होती हैं। जिनमें अधिकांशतः उरांव और मुंडा समुदाय की होती हैं।
पलामू और गढ़वा जिले के अधिकांश नाबालिग बच्चे उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग में बाल श्रम के लिए तस्करी के शिकार होते हैं। झारखंड के बच्चों की तस्करी ज्यादातर दिल्ली की प्लेसमेंट एजेंसी रैकेट के जरिए होती है। ये प्लेसमेंट एजेंसियां आदिवासी बच्चों को दिल्ली, फरीदाबाद, गुड़गांव और नोएडा क्षेत्र के घरों में सप्लाई करती हैं।
ये एजेंसियां ज्यादातर 11-16 आयु वर्ग के बच्चों को निशाना बनाती हैं, जो शोषण के बाद भी मुंह बंद रखते हैं। जबकि झारखंड की बेटियों को कई राज्यों में बेचा जाता है। किसी को घरेलू काम के नाम पर तो किसी को किसी और वजह से। शादी के नाम पर भी बच्चियों का सौदा होता है। शादी के नाम पर बेची गई ल़डकियों को पारो या फिर दासी के नाम से पुकारा जाता है।
इन लड़कियों से जो व्यक्ति शादी करता है सिर्फ वहीं शारीरिक संबंध नहीं बनाता, बल्कि उस घर के ज्यादातर मर्द संबंध बनाते हैं। शादी के नाम पर तस्करी जैसे संवेदनशील मुद्दे पर लंबे समय से कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता बैद्यनाथ कुमार बताते हैं कि झारखंड की युवतियों की तस्करी बड़े पैमाने पर सेक्स वर्कर के रूप में होती है।
इसके साथ ही शादी के नाम पर भी इनकी तस्करी की जाती है। इनका शारीरिक शोषण किया जाता है। इन्हें पारो या दासी के नाम से पुकारा जाता है। उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान मानव तस्करों के चंगुल से कई लड़कियों को बचाया गया था, लेकिन उसके बाद हालात फिर से खराब हुए हैं। राज्य के डीजीपी अनुराग गुप्ता का कहना है कि मानव तस्करी काफी संवेदनशील विषय है।
हालांकि झारखंड में इसे रोकने के लिए एएचटीयू(एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट) बनाई गई है, साथ ही राज्य भर के 300 थानों में महिला हेल्प डेस्क स्थापित की गई हैं। महिला थाना भी राज्य भर के सभी जिलों में बनाए गए हैं। लगातार कार्रवाई भी की जाती है। बावजूद इसके पिछले 8 सालों में झारखंड के विभिन्न जिले से 4,765 नाबालिग लापता हुए थे।
इनके लापता होने के संबंध में पुलिस के पास शिकायत भी पहुंची थी, लेकिन इनमें से उक्त आठ वर्षों के दौरान मात्र 3,997 लोग बरामद किये गये। सैकड़ों लापता बच्चों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गंभीर है, जहां गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी के कारण बच्चे तस्करों के निशाने पर हैं।
लड़के और लड़कियों को रोजगार के झूठे वादों के साथ महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, गुजरात, और पंजाब में ले जाया जाता है, जहां उनके साथ शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण होता है। तस्करी के शिकार बच्चों में लड़कियां (62 फीसदी) और लड़के (38 फीसदी) दोनों शामिल हैं।
लड़कियों को मुख्य रूप से घरेलू काम, यौन शोषण, और जबरन विवाह के लिए तस्करी की जाती है, जबकि लड़कों को मजदूरी, भिक्षावृत्ति, और कारखानों में काम के लिए ले जाया जाता है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में प्रत्येक साल कभी 5000 से अधिक तो कभी 4000 से अधिक नाबालिग लापता होते हैं। लेकिन प्रत्येक साल 80 और कभी-कभी 100 से ज्यादा नाबालिग ट्रेसलेश रह जाते हैं।
एनसीआरबी के 2021 के आंकड़ों के अनुसार, 123 लोगों को बलपूर्वक काम कराने के लिए अपहरण किया गया था, जबकि चार का शारीरिक शोषण और वेश्यावृत्ति के लिए। वहीं 108 लोगों की मानव तस्करी घरेलू काम के लिए, 9 लोगों की मानव तस्करी बलपूर्वक शादी के लिए की गई थी।
इस तरह आंकड़ों से स्पष्ट है कि राज्य में लापता बच्चों का मामला साल दर साल गंभीर बनता जा रहा है। वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में सबसे ज्यादा 122 बच्चे जमशेदपुर जिले से लापता हुए थे। जबकि गुमला जिला से 52, लोहरदगा से 36, चाईबासा से 39, रांची से 29 और पलामू से 46 बच्चे लापता हुए थे।
इस तरह पूरे राज्य से 694 नाबालिग लापता हुए थे। जिसमें 262 लड़के और 432 लड़कियां थीं। हालांकि बरामद सिर्फ 560 लोगों को किया गया। जबकि 134 लोग ट्रेसलेश ही रह गये। एक अन्य जानकारी के अनुसार, 2017 से वर्ष 2022 तक 1574 लोग तस्करी का शिकार हुए हैं। 5 वर्षों में मानव तस्करी के 656 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें 548 पुरुष और बच्चे हैं, जबकि 1,026 महिलाएं शामिल हैं।
मामले पर 5 वर्षों में 783 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र के मानव तस्करी के शिकार बच्चों की संख्या 332 और 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के युवकों की संख्या 216 थी। जबकि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 717 और 18 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों की संख्या 309 थी।
बता दें कि महिलाओं और बच्चियों को शादी के नाम पर भी बेचा जाता है। हालांकि जागरूकता और मदद के लिए हेमंत सोरेन सरकार के द्वारा 300 महिला हेल्प डेस्क भी बनाए गए हैं। मामले में सीडब्ल्यूसी की सदस्य आरती कुमारी का कहती हैं कि लोगों में जागरूकता की कमी है बच्चे पढ़ाई लिखाई को छोड़कर दूसरी तरफ भटक रहे हैं।
उनका ध्यान सकारात्मक से अधिक नकारात्मक की तरफ जा रहा हैं। बच्चों के माता पिता भी आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं जो जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। प्रशासनिक तंत्र के द्वारा सख्त कदम उठाने की भी जरूरत है।
बहरहाल, बच्चों की तस्करी और बाल मजदूरी झारखंड में अब भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। गरीबी, शिक्षा की कमी और तस्करों का संगठित नेटवर्क इस समस्या को बढ़ा रहा है। प्रशासन की कार्रवाइयों के बावजूद रेस्क्यू बच्चों का दोबारा तस्करी का शिकार होना चिंता का विषय है।