पुत्री से बलात्कार के दोषी पिता की उम्र कैद की सजा हाईकोर्ट ने रखी बरकरार, कोर्ट ने कहा रक्षक ही बन गया भक्षक
By भाषा | Published: March 25, 2020 05:30 PM2020-03-25T17:30:34+5:302020-03-25T17:30:34+5:30
अदालत ने 2017 में अपनी 18 साल की बेटी से बलात्कार के जुर्म में उम्र कैद की सजा के खिलाफ दोषी पिता की अपील खारिज करते हुये उसके कुकृत्यों की भर्त्सना की और कहा कि यह ऐसा गंभीर पाप है जिसमें सबसे अधिक पवित्र रिश्ते को आरोपी ने बेहद विकृत और शर्मनाक कृत्य से तार तार कर दिया है।
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी किशोरवय बेटी से बलात्कार करने वाले वहशी पिता की उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। अदालत ने कहा कि दोषी का अपराध बहुत ही घृणित और जघन्य है क्योंकि पिता तो पुत्री की गरिमा और सम्मान का रक्षक होता है लेकिन यहां तो रक्षक ही भक्षक बन गया।
न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुये कहा कि पिता-पुत्री के पवित्र रिश्ते को वहशियाना तरीके से इस तरह तार तार किया गया है कि इससे मानव चेतना भी शर्मसार हो गयी है। पीठ ने कहा कि इस मामले में तो रक्षक ही भक्षक बन गया।
पीठ ने कहा, ‘‘पिता को अपनी पुत्री का रक्षक माना जाता है। इसमें संदेह नहीं कि बलात्कार का अपराध अपने आप में ही बहुत गंभीर होता है लेकिन जब अपना पिता ही यह अपराध करे तो यह कहीं ज्यादा वीभत्स और घिनौना हो जाता है। पुत्री हमेशा अपने सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिये पिता की ओर से देखती है।’’
अदालत ने 2017 में अपनी 18 साल की बेटी से बलात्कार के जुर्म में उम्र कैद की सजा के खिलाफ दोषी पिता की अपील खारिज करते हुये उसके कुकृत्यों की भर्त्सना की और कहा कि यह ऐसा गंभीर पाप है जिसमें सबसे अधिक पवित्र रिश्ते को आरोपी ने बेहद विकृत और शर्मनाक कृत्य से तार तार कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने बलात्कार के अपराध में उम्रकैद की सजा घटाकर दस साल करने का दोषी का अनुरोध भी ठुकरा दिया। दोषी का तर्क था कि वह 56 साल का है और समाज के बेहद गरीब तबके का सदस्य है और उसके ऊपर अभी दो अविवाहित बेटों की जिम्मेदारी है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि बलात्कार भारतीय समाज का एक ऐसा स्याह पहलू है जो महिला की आत्मा तार तार करने के साथ ही उसके आत्म सम्मान को खत्म कर देता है। अदालत ने कहा कि कभी बेहद खुश रहने वाली महिला अंदर तक कांप जाती है और उसे इस तरह की स्थिति से रूबरू होना पड़ता है जहां कोई और नहीं बल्कि उसका अपना पिता ही उसकी इज्जत लूट लेता है।
पीठ ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ , विशेषकर यौन उत्पीड़न के, अपराधों में तेजी से वृद्धि हो रही है और ऐसी स्थिति में अदालतों के लिये यह जरूरी है कि वह कानून के उद्देश्य पर अमल करें और उसका सम्मान करें क्योंकि बलात्कार या बलात्कार का प्रयास किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि समाज और मानवता के खिलाफ अपराध है।