दूध बेचने वाले से लेकर 'खूनी नेता' तक, पढ़ें यूपी के मिनी सीएम कहे जाने वाले डीपी यादव की पूरी कहानी

By पल्लवी कुमारी | Published: June 14, 2019 08:39 PM2019-06-14T20:39:10+5:302019-06-14T20:39:10+5:30

डीपी यादव की राजनीतिक नईया डूब चुकी है लेकिन डीपी यादव जैसी आपराधिक छवि रखने वाले नेताओं की राजनीति में कमी नहीं है। हमारे मौजूदा संसद में भी 50 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं, जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड रहा है। 

D P Yadav History and story criminal profile and political career | दूध बेचने वाले से लेकर 'खूनी नेता' तक, पढ़ें यूपी के मिनी सीएम कहे जाने वाले डीपी यादव की पूरी कहानी

दूध बेचने वाले से लेकर 'खूनी नेता' तक, पढ़ें यूपी के मिनी सीएम कहे जाने वाले डीपी यादव की पूरी कहानी

Highlightsडीपी यादव फिलहाल जेल में बंद हैं। आपराधिक छवि की वजह से एक-एक कर सभी राजनीति पार्टियों ने भी उनसे दूरी बना ली है। अपराध और राजनीति से इतर डीपी यादव यूपी के सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं। डीपी यादव की घोषित संपत्ति 26 से 30 करोड़ रुपये है।

''जेब में ‘चवन्नी’ नहीं और इरादा ‘चीनी-मिल’ मालिक बनने का...! बार-बार क्यों लेती है जिंदगी इम्तिहान? जीने से पहले ही कोई ठोक-बजाकर देख ले'' ये लाइन माफिया डॉन, बाहुबली नेता और पश्चिमी यूपी का बेताज बादशाह,  मिनी सीएम,  जैसे नाम से जाने जाने वाले डीपी यादव की है। इनका पूरा नाम धर्मपाल यादव है। डीपी यादव फिलहाल हत्या की जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं लेकिन इनकी कहानी काफी दिलचस्प है। एक दूध बेचने वाले किसान के घर में पैदा होने वाला आम आदमी यूपी की सियासत का जाना-मान नाम बन जाता है। 

70  वर्षीय डीपी यादव का जन्म 25 जुलाई 1948 को जिला बुलंदशहर के एक छोटे से गांव सर्फाबाद में हुआ। सर्फाबाद गांव अब नोएडा में आता है। डीपी यादव सात भाई और तीन बहन हैं।  डीपी यादव के पिता  जगदीश नगर में दूध की डेयरी चलाते थे। गांव में गरीबी और साधन के अभाव में डीपी यादव की शुरुआती पढ़ाई सही से नहीं हो पाई। लेकिन चुनाव आयोग को दिए एफिडेवि के मुताबिक वह ग्रजुएट हैं। 

1970 से लेकर 2000 तक नौ हत्याओं के आरोप 

चार बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके डीपी यादव ने दूध के कारोबार से लेकर चीनी मिल, पेपर मिल, शराब और शराब से जुड़े अन्य कारोबारों में किस्मत आजमाई। कारोबार और राजनीतिक वर्चस्व दोनों को बढ़ाने की धुन में डीपी यादव का जुर्म से गहरा नाता हो गया। 1970 में  डीपी यादव ने अवैध शराब का कारोबार शुरू किया जैसे-जैसे उसका कारोबार फैला, अपराध की दुनिया में उसका ग्राफ भी बढ़ता गया। 1970 से लेकर 2000 तक उसके ऊपर नौ लोगों की हत्या के आरोप लगे

अपनी परिस्थतियों के लिए समाज को जिम्मेदार ठहराते हैं डीपी यादव 

 जुर्म की दुनिया से संबंध के लिए डीपी यादव ने हमेशा समाज और परिस्थियों को जिम्मेदार ठहराया है। जेल में बंद डीपी यादव ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मुझे धर्मपाल यादव से डीपी यादव कर दिया गया। जिंदगी में ज्यों-ज्यों नौजवानी-जिंदादिली पनपी-पली-बढ़ी त्यों-त्यों जमाने ने मेरे नाम के संग-संग 'कांट्रेक्ट-किलर, दबंग-दूधिया, बाहुबली, डॉन, भू-माफिया, सफेदपोश, शराब-माफिया और न मालूम क्या-क्या...धर्मपाल के आगे-पीछे-ऊपर-नीचे, समाज और सत्ता के चंद कथित-ठेकेदारों को, जहां जगह मिली वहीं ‘चिपका’ या ‘जड़’ दिया।'

डीपी यादव कहते हैं, आंख के अंधे और कान से बहरे, शीशमहलों में बैठे समाज के चंद ‘ठेकेदारों’ में से किसी को भी एक को ठेठ गरीब आर्य-समाजी किसान का बेटा धर्मपाल कभी नजर नहीं आया, सिवाय मेरे कुछ चाहने वालों को। बाकी सब कुछ मैं अपने शुभचिंतकों और मुझे ईमानदारी और करीब से जानने वालों पर छोड़ता हूं। वे खुद तय करें कि कल का धर्मपाल क्या असल में आज का ‘माफिया’ है! या फिर बीते कल के एक किसान मां-बाप की संतान। 

डीपी यादव के ठेके पर  जहरीली शराब पीकर हरियाण में करीब 350 लोगों मौत हुई

डीपी यादव भले ही अपनी परिस्थतियों के लिए समाज को जिम्मेदार ठहराय लेकिन दौलत और राजनीति के लिए उन्होंने अपराध का सहारा लिया। अवैध शराब के धंधे में डूब चुके डीपी यादव के ही एक ठेके की जहरीली शराब पीकर हरियाण में करीब 350 लोगों मौत हुई। यह घटना 1990 की शुरुआत में घटी थी। इस वक्त तक डीपी यादव पर कई मुकदमे दर्ज हो चुके थे। हरियाणा पुलिस ने डी पी यादव के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की। लेकिन उनको सजा नहीं हो पाई। बच गए वो... क्योंकि अवैध शराब के व्यापार से वो राजनीति के संपर्क में आ चुके थे। इनके पास पैसा था, नेताओं के पास पावर। अपराध और राजनीति का घालमेल होने लगा था। 

राजनीतिक पावर के सहारे डीपी यादव पर कानून का शिकंजा कम होता गया

डीपी यादव का राजनीति में आने का मकदस भी यही था कि वो अपने काले काम भी करता रहे और सुरक्षित भी रहे। 80 के दशक में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने डीपी को गाजियाबाद जिले में कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का अध्यक्ष बना राजनीति की रस पहले ही चखा चुके थे। लेकिन दादरी के विधायक महेंद्र सिंह भाटी उनको पूरी तरह से राजनीति में लाये। डीपी बिसरख से ब्लॉक प्रमुख बने जाति के आधार पर अपना रसूख बढ़ाते गये। धीरे-धीरे डीपी यादव ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से दोस्ती बढ़ाई और सपा का दामन थाम लिया। पार्टी बनने के बाद मुलायम सिंह यादव को धनी लोगों की जरूरत थी। डीपी को मंच चाहिए था और मुलायम को पैसा। तो दोनों का आसानी से मिलन हो गया सपा की साइकिल पर सवार डीपी यादव ने पहली बार 1989 में विधानसभा का चुनाव जीता और मुलायम की सरकार में राज्य मंत्री बनाए गए। 1991 और 1993 में भी वह विधायक रहे। डीपी यादव चार बार विधायक और दो बार सांसद रह चुका है। राजनीति और बाहुबलि छवि की वजह से उसका वर्चस्व बढ़ता गया और उसके खिलाफ आपराधिक मामलों की फाइल एक-एक कर कम होते चली गई।  

2015 में डीपी यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई गई

डीपी यादव ने राजनीति और शौहरत के साठ-गांठ के सहारे केस की फाइलों को दब वा तो ली थी लेकिन वो कहते हैं ना कानून के हाथ लंबे होते हैं और उसके गिरफ्त से अपराधी बच नहीं पाता। डीपी यादव को 1992 में पूर्व विधायक महेन्द्र सिंह भाटी के हत्या के आरोप में 23 साल बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 

महेंद्र भाटी और डीपी यादव दोनों करीबी दोस्त थे। भाटी ने 1991 में बुलंदशहर विधानसभा सीट से डीपी यादव को जनता दल का टिकट भी दिलवाया। यादव को विधायक बनवाने के लिए भाटी ने पूरा जोर लगा दिया था। लेकिन डीपी सत्ता में मजबूत दावेदारी के लिए महेंद्र भाटी से अलग होकर मुलायम के खेमे में चला गया था। महेंद्र भाटी अजीत सिंह के खेमे में थे। डी पी को पूरा इलाका चाहिए था। इसके लिए महेंद्र का सामने से हटना जरूरी था। यही वजह थी कि वो देखते ही देखते भाटी का दुश्मन बन गया था। 

13 सितंबर 1992 को भाटी गाजियाबाद के भंगेल रोड पर रेलवे फाटक बंद होने की वजह से विधायक और उनके साथी फाटक खुलने का इंतजार कर रहे थे। उसी वक्त कुछ हथियारबंद बदमाशों ने उन पर फायरिंग कर दी। महेंद्र सिंह भाटी और उनके साथी उदय प्रकाश की मौत हो गई। सीबीआई के मुताबिक डीपी यादव ने भाटी की हत्या के लिए बदमाशों को गाड़ी उपलब्ध कराई थी, घटना के बाद हत्या में इस्तेमाल की गाड़ी को जला दिया गया। 1992 में हुए इस हत्या कांड में फरवरी, 2015 को यादव को हत्या का दोषी ठहराया गया और मार्च 2015 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।  

डीपी यादव के आपराधिक मामलों की लिस्ट

- पहला आपराधिक मामला 1979 में गाजियाबाद के कविनगर थाने में दर्ज हुआ।
-  नौ हत्या और तीन अटेंम्प्ट टू मर्डर
- अपहरण औऱ फिरौती के मामले
- टाडा और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई
- 1990 हरियाणा में अवैध शराब की सप्लाई का केस, जिसमें 350 लोगों की जान गई। 
-1991 तक 25 आपराधिक मामले दर्ज  

डीपी यादव के बेटे और परिवार वालों का भी जुर्म से गहरा नाता 

जुर्म की दुनिया से सिर्फ डीपी यादव का ही नहीं बल्कि इनके परिवाल वालों का भी नाता है। डीपी यादव जितना अपने किए अपराधों को लेकर चर्चा में नहीं आये उतना अपने बेटे और भतीजे को लेकर विवादों में रहे। डीपी यादव का एक बेटा विकास यादव  और भतीजा विशाल यादव  नीतीश कटारा हत्याकांड में उम्र कैद का सजा काट रहा है। आप ये कह सकते हैं कि नीतीश कटारा हत्याकांड डीपी की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बना। 

नीतीश कटारा और डीपी की बेटी भारती एक-दूसरे को चाहते थे और शादी करना चाहते थे। डीपी यादव के परिवार को इस बात का पता नहीं था। डीपी के बेटे विकास यादव ने भारती और नीतीश को गाजियाबाद में एक फंक्शन में एक साथ देख लिया। विकास की नजर में ये अपराध था, क्योंकि पिताजी ने तो अपराध की परिभाषा ही बदल दी थी।

17 फरवरी 2002 को नीतीश को अगवा करके खुर्जा में उसकी हत्या कर दी गयी। हत्या के दो दिन बाद नीतीश की अधजली लाश के टुकड़े पुलिस ने बरामद किए। पुलिस तफ्तीश में विकास यादव, विशाल यादव और सुखदेव पहलवान को आरोपी बनाया गया। 30 मई 2008 को विशाल, विकास और सुखदेव पहलवान को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। डीपी यादव पर इस केस के गवाहों को डराने और जान से मारने की धमकी का भी आरोप लगा था। 

यूपी के सबसे अमीर नेताओं में एक हैं डीपी यादव 

अपराध और राजनीति से इतर डीपी यादव यूपी के सबसे अमीर नेताओं में से एक हैं। डीपी यादव की घोषित संपत्ति 26 से 30 करोड़ रुपये है। इस बात की चर्चा तब ज्यादा हुई थी, जब डीपी यादव की पत्नी ने यूपी विधानसभा का चुनाव जीता, लेकिन अक्तूबर 2011 में चुनाव खर्च का ब्यौरा न देने की वजह से चुनाव आयोग ने उसकी सदस्यता रद्द कर दी थी। 

डीपी यादव फिलहाल जेल में बंद हैं। आपराधिक छवि की वजह से एक-एक कर सभी राजनीति पार्टियों ने भी उनसे दूरी बना ली है।  2007 में डीपी ने राष्ट्रीय परिवर्तन पार्टी भी बनाई थी। जिसके बाद वो फिर एक बार विधायक बना। 2009 में वह मायावती की बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गया और लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में भी वो हार गया। उसके बाद 2014 में वो संभल से चुनावी मैदान में उतरा लेकिन हार गया। 

डीपी यादव की राजनीतिक नईया डूब चुकी है लेकिन डीपी यादव जैसी आपराधिक छवि रखने वाले नेताओं की राजनीति में कमी नहीं है। हमारे मौजूदा संसद में भी 50 प्रतिशत सांसद ऐसे हैं, जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड रहा है। 

Web Title: D P Yadav History and story criminal profile and political career

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