अंडर-19 टीम का ये खिलाड़ी कभी भूखे पेट टेंट में सोया तो कभी बेचे गोल-गप्पे, अब टीम इंडिया को बनाया एशिया का चैंपियन

यशस्वी जायसवाल ने फाइनल में शानदार पारी खेलकर अपनी टीम को विजेता बनाने में अहम भूमिका निभाई।

By सुमित राय | Published: October 8, 2018 05:31 PM2018-10-08T17:31:35+5:302018-10-08T17:31:35+5:30

Struggling story of new Star of Under 19 Indian Cricket team Yashasvi Jaiswal | अंडर-19 टीम का ये खिलाड़ी कभी भूखे पेट टेंट में सोया तो कभी बेचे गोल-गप्पे, अब टीम इंडिया को बनाया एशिया का चैंपियन

यशस्वी जायसवाल ने अंडर-19 एशिया कप के फाइनल में 85 रनों की पारी खेली।

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नई दिल्ली, 8 अक्टूबर। यशस्वी जायसवाल (85) की बेहतरीन बल्लेबाजी और फिर हर्ष त्यागी (6 विकेट) की घातक गेंदबाजी की बदौलत भारत ने श्रीलंका को हराकर अंडर-19 एशिया कप का खिताब अपने नाम कर लिया। यशस्वी जायसवाल ने फाइनल में शानदार पारी खेलकर अपनी टीम को विजेता बनाने में अहम भूमिका निभाई और पूरे टूर्नामेंट में शानदार फॉर्म में नजर आए।

आसान नहीं था यशस्वी जायसवाल का सफर

यशस्वी जायसवाल का भारतीय टीम तक का सफर आसान नहीं रहा है। काफी मुश्किलों का सामना करने के बाद उन्होंने टीम इंडिया में जगह बनाई।  भारतीय टीम में पहुंचने के लिए यशस्वी को कभी भूखे पेट सोना पड़ा तो कभी उनको टेंट में रात गुजारनी पड़ी। यहीं नहीं यशस्वी को कई बार अपने खर्चे चलाने के लिए गोल-गप्पे भी बेचने पड़े।

उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं यशस्वी जायसवाल

यशस्वी उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं और उनके पिता वहीं एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। यशस्वी महज 11 साल की उम्र में क्रिकेटर बनने के लिए अपने चाचा के पास मुंबई आ गए और आजाद मैदान में मुस्लिम यूनाइटेड क्लब ज्वाइन कर ली।

क्रिकेट खेलने के साथ-साथ किया काम

यशस्वी इसके साथ ही काल्बादेवी डेयरी में काम भी करने लगे और वहीं रहने लगे। यशस्वी ने बताया कि पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता।

मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के टेंट में गुजारी रात

मुंबई में यशस्वी के चाचा का घर इतना बड़ा नहीं था कि वो उसे साथ रख सकें। इसलिए उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से अनुरोध किया कि वो यशस्वी को टेंट में रहने की इजाजत दें। इसके बाद अगले तीन साल तक यशस्वी आजाद मैदान के गार्ड के साथ टेंट में रहे।

खर्च निकालने के लिए कई बार बेचे गोल-गप्पे

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उनके पिता कई बार कम पैसे भेजते थे। अपना खर्चा निकालने के लिए यशस्वी ने रामलीला के समय आजाद मैदान पर गोल-गप्पे भी बेचे, लेकिन इसके बावजूद कई बार रात को उन्हें भूखा भी सोना पड़ता था।

साथी खिलाड़ियों के छुपकर करते थे काम

यशस्वी ने अपने संघर्ष के दिन याद करते हुए कहा कि आजाद मैदान में रामलीला के समय मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी, लेकिन मैं यही दुआ करता था कि मेरी टीम के खिलाड़ी वहां ना आएं। हालांकि कई बार ऐसा होता था कि खिलाड़ी मुझे गोल-गप्पे बेचते देख लेते थे और मुझे बहुत शर्म आती थी।

घर की आती थी बहुत ज्यादा याद

यशस्वी ने कहा कि मैं हमेशा अपनी टीम के अन्य खिलाड़ियों को देखता था, वो घर से खाना लाते थे। लेकिन मुझे ये नसीब नहीं होता था और मुझे घर की बहुत याद आती थी। मैं दिन में इतना व्यस्त रहता था कि कब शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था। लेकिन रात में परिवार की बहुत याद आती थी और कई बार मैं सारी रात रोता था।

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