रोमांचकारी क्षणों का चश्मदीद गवाह क्रिकेट का मक्का 'लॉर्ड्स'

क्रिकेट से जुड़े हर व्यक्ति के सपनों में लॉर्ड्स रहता है, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं वे वहां खेलना चाहते हैं और यादगार प्रदर्शन करना चाहते हैं और जो वहां खेल नहीं पाए वे वहां कोई अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शन देखना चाहते हैं, और जो देख भी नहीं पाते वे उस मैदान को तो देखना चाहते ही हैं।

By राजेन्द्र सिंह गुसाईं | Published: July 13, 2019 08:12 PM2019-07-13T20:12:35+5:302019-07-13T20:12:35+5:30

Cricket's Mecca 'Lords', Baayis gaz ki duniya by Suryaprakash Chaturvedi | रोमांचकारी क्षणों का चश्मदीद गवाह क्रिकेट का मक्का 'लॉर्ड्स'

रोमांचकारी क्षणों का चश्मदीद गवाह क्रिकेट का मक्का 'लॉर्ड्स'

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किताब का नाम – बाईस गज की दुनिया 
लेखक – सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी 
विधा – संस्मरण 
प्रकाशन – राजकमल प्रकाशन 
कीमत – 350/- रुपये – हार्डबाउंड 

पुस्तक अंश- 

क्रिकेट का मक्का लॉर्ड्स

अपने ऐतिहासिक गौरव एवं ऐतिहासिक अतीत के कारण लॉर्ड्स के मैदान को क्रिकेट का मक्का कहा जाता है। यह ठीक उसी तरह है जिस तरह ‘विसडन’ को क्रिकेट की बाइबल माना जाता है। विडम्बना देखिए कि 40 साल तक स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर अंग्रेजी साहित्य व भाषा पढ़ाने और बचपन से क्रिकेट खेलने, देखने व उस पर लिखने के शौक के बावजूद मैं 2002 के पहले इंग्लैंड नहीं जा पाया। जब गया तब तक सेवानिवृत्त हो चुका था। यानी जब तक सक्रियता से पठन-पाठन करता रहा तब तक कभी उस देश व वहां के साहित्यकारों व खिलाड़ियों के बारे में वहां जाकर देखने व लोगों से मिलने का मौका नहीं मिला जिस देश से मेरा जीवन्त सम्पर्क रहा था। 2002 में बेटी प्रीति के पास अमेरिका जाने का योग बना। तभी मैंने तय किया कि इंग्लैंड होकर अमेरिका जाया जाए ताकि मैं लन्दन में लॉर्ड्स व अन्य स्थान भी देख सकूं।

प्रभाष जी अक्सर यही कहते थे कि मैं और रज्जू बाबू यानी राजेन्द्र माथुर अंग्रेजी के प्राध्यापक होने के बावजूद कभी इंग्लैंड नहीं गए जबकि वे खुद हम दोनों के काफी पहले इंग्लैंड हो आए। खैर बाद में तो रज्जू बाबू भी हो आए और मैं भी हो आया। मार्बल आर्क के पास स्थित ‘मैरियट’ में प्रीति ने हमारे व अपने ठहरने का इन्तजाम किया। बकिंघम पैलेस, वेस्टमिन्स्टर ऐबे, लॉर्ड्स और मदाम तुसात का मोम संग्रहालय हमारी प्राथमिकता में था। लॉर्ड्स के लिए हमने शाम का समय चुना ताकि इतमीनान से देख सकें। मुख्य द्वार के भीतर जाते ही उनका स्वागत कक्ष व दफ्तर है। स्वागत कक्ष में क्रिकेट खिलाड़ियों की कुछ तस्वीरें हैं पर अधिकतर उन्हीं खिलाड़ियों की तस्वीरें हैं जिन्होंने लॉर्ड्स पर अच्छा व उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है।

क्रिकेट से जुड़े हर व्यक्ति के सपनों में लॉर्ड्स रहता है, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं वे वहां खेलना चाहते हैं और यादगार प्रदर्शन करना चाहते हैं और जो वहां खेल नहीं पाए वे वहां कोई अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शन देखना चाहते हैं, और जो देख भी नहीं पाते वे उस मैदान को तो देखना चाहते ही हैं। मैं भी चाहता था कि कम से कम इस ऐतिहासिक मैदान को देख तो लूं। मुख्य दरवाजे में प्रवेश करते ही शरीर में सिहरन-सी हुई। मुझे उसकी भव्यता, ऐतिहासिक समृद्धि और गौरवशाली परम्परा का अहसास हुआ। ऐसा लगा कि मेरी बरसों की साध पूरी हो गई। पीछे मुड़कर उस इमारत को भी देखा जहां किसी फ्लैट में राज भाई रहा करते थे। वह लॉर्ड्स के ठीक सामने ही है। 

हमने काउंटर से टिकट लिया और गाइड हमें लॉर्ड्स के म्यूजियम में ले गया। हम लोग एक समूह में गए जिसमें वेस्टइंडीज, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के लोग भी थे। गाइड ने हमें कांच के बड़े डिब्बे में रखी एशेज की राख, पुराने जमाने के बल्ले व गेंद, विश्व कीर्तिमानधारी खिलाड़ियों के फोटो व उनके द्वारा भेंट की गई सामग्री तथा इंग्लैंड के खिलाड़ियों और वहां की काउंटी स्पर्धा का ब्यौरा देते हुए क्रिकेट के इतिहास की जानकारी दी। लॉर्ड्स पर शतक लगाने वाले बल्लेबाजों का उल्लेख करते हुए उसने कहा कि वहां सभी शतकधारियों के चित्र अलग से संगृहित किए गए हैं और मुझे भारतीय जानकर कहा, “आपके तेन्दुलकर ने अभी तक यहां इस मैदान पर एक भी शतक नहीं लगाया है।“ यह सच तो है पर जिस तरीके से उसने कहा उससे मुझे लगा कि जैसे वह तेन्दुलकर के स्तर पर टिप्पणी कर रहा है। यह मुझे अखरा और मैंने उससे तुरन्त प्रतिप्रश्न किया, “हमारे वेंगसरकर ने तो यहां तीन शतक लगाए हैं फिर वेंगसरकर का फोटो यहां क्यों नहीं है?” इस पर शरमाते हुए उसने कहा कि वे उन्हीं चीजों को संग्रहालय में रख पाते हैं जो उन्हें लोग भेंट में देते हैं। मुझे यह भी लगा कि गाइड अपना रटा—रटाया वक्तव्य दे रहा था तथा उसे क्रिकेट की बहुत अच्छी जानकारी नहीं थी। लेकिन यह देखकर अच्छा लगा कि यहां इंग्लैंड की क्रिकेट विरासत व उसके खिलाड़ियों की उपलब्धियों को सलीके से सहेजा गया है। डॉ गे्रस, हॉब्स, जार्डिन, ट्रूमेन, हटन, कंप्टन, विलिस, बोथम, गूच आदि तो हैं ही, ब्रायन लारा और शेन वार्न भी हैं।

संग्रहालय से मैंने पांच पाउंड में एक पुराना पोस्टकार्ड खरीदा। उस पर डगलस जार्डिन व कर्नल सी.के. नायडू के चित्र थे और यकीन मानिए कि नायडू साहब के सामने जार्डिन वेटर लग रहे थे। फिर हम लॉर्ड्स के मैदान पर गए। मेरे लिए वह दृश्य बेहद मनोहारी था। सामने कांच की दीवारों से ढका हुआ पे्रस बॉक्स जो हम अक्सर टेलीविजन पर देखते हैं। मैदान की हरी भरी घास। मैंने कुछ घास तोड़कर उसे सूँघते हुए महसूस किया कि यहीं पर 1932 में कर्नल नायडू ने अपना व भारतीय टीम ने अपना टेस्ट खेला होगा। लगा कि अतीत एकदम घास के उस गुच्छे में सिमटकर पास आ गया हो। सच, बेहद भावुक क्षण था। यहीं व इसी मैदान पर कपिल ने 1983 का विश्व कप जीता और यहीं दिलीप वेंगसरकर ने तीन टेस्ट शतक लगाने का वह दुर्लभ गौरव प्राप्त किया जो महान बे्रडमैन को भी नसीब नहीं हुआ। पूरे मैदान का चक्कर लगाया, विकेट के पास जाकर उसे भी नजदीक से देखा तथा एक साथ इतनी प्रैक्टिस पिच देखकर यकीन हुआ कि क्यों यह खेल इंग्लैंड का राष्ट्रीय खेल है। सभी सुविधाएं व जरूरी संयंत्र जिनकी बदौलत खिलाड़ियों को आदर्श खेल—परिस्थिति मिल पाती है। दर्शक दीर्घा व बालकनी आरामदायक व सुविधापूर्ण हैं। पवेलियन के मूल ढांचे को तो यथावत् पुराने गौरव व परम्परा बनाए रखते हुए रखा गया है पर अन्य हिस्सा आधुनिक जरूरतों के हिसाब से बदला गया है। यहां पहले फ्लड लाइट्स नहीं थी। बाजार व मार्केटिंग के दबाव में 1999 के विश्व कप से फ्लड लाइट्स लगाए गए। वरना वहां देर रात तक सूरज की प्राकृतिक रोशनी ही पर्याप्त रहती है। पर बदलते दौर के हिसाब से परम्परा—प्रेमी इंग्लैंडवासियों को भी अपनी सोच बदलनी पड़ी। मैंने देखा कि वहां सब कुछ अनुशासित एवं व्यवस्थित था। हम देखते ही हैं कि दर्शक वहां अनुशासित होकर बैठे रहते हैं व अच्छा स्ट्रोक लगने पर या अच्छे क्षेत्ररक्षण या गेंदबाजी पर सिर्फ तालियाँ बजाते हैं। ओवर समाप्त होने पर ही अपने स्थान से उठते हैं व ओवर के बीच में कभी अपना स्थान नहीं छोड़ते। लॉर्ड्स में प्रवेश—शुल्क के बाद ही अन्दर आने दिया जाता है और यह नियम सख्ती से लागू किया जाता है। इसी धनप्राप्ति से वहां की व्यवस्था की जाती है।

अपनी भव्यता व ऐतिहासिक सम्पन्नता समेटे लॉर्ड्स पर जाकर सुकून व शान्ति का अहसास हुआ। वहां जाकर वैसी ही मानसिक शान्ति व पवित्रता महसूस हुई जैसी कि किसी मन्दिर में जाकर मिलती है। लगा कि इस स्थान में कुछ खास बात है तभी तो यहां आकर सिहरन-सी होती है। लगता है कि जैसे किसी दिव्य स्थान के दर्शन कर लिए। मन, शरीर, दिमाग सभी सन्तुष्ट और हल्के-से लगने लगते हैं। कोई तनाव, शिकवा-शिकायत व ईर्ष्या तथा वैमनस्य पास नहीं रहता। एक क्रिकेट पे्रमी के लिए यह मैदान किसी इबादतगाह से कम नहीं है। जैसा भाव गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाने पर जागता है या मक्का-मदीना की यात्रा पर महसूस होता है अथवा किसी गुरुद्वारे में सुबह या शाम को कीर्तन के समय जागता है या किसी मन्दिर में जाने पर होता है वही लॉर्ड्स पर जाने पर होता है। मुझे भी लगा कि जैसे मैंने कोई तीर्थ कर लिया हो। मेरे लिए लॅार्ड्स तीर्थस्थान ही था। यह मैदान कई उलटफेर, उतार-चढ़ाव व रोमांचकारी क्षणों का चश्मदीद गवाह रहा है और इसने कई कीर्तिमान बनते व टूटते हुए देखे हैं। यहां आना व यहां के बारे में जानना एक भावनात्मक क्षण था।

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