2019 विश्व कप चैंपियन बनने के बावजूद उपेक्षित महसूस कर रहे दिव्यांग क्रिकेटर

भारत ने इंग्लैंड को 36 रन से  हराकर विश्व विजेता बना था. दिव्यांग क्रिकेटरों ने कहा कि हमारे लिए कुछ नहीं किया गया.

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 20, 2021 08:39 PM2021-02-20T20:39:59+5:302021-02-20T20:40:50+5:30

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नागपुर के गुरुदास राऊत तथा पालघर के रविंद्र संते ही ऐसे दिव्यांग क्रिकेटर हैं जो क्रमश: वायुसेना और मध्य रेलवे में सेवारत हैं. (file photo)

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Highlightsबीसीसीआई ने विजेता टीम के हर सदस्य को तीन-तीन लाख रुपए अवश्य दिए.विश्व चैंपियन बनना मील का पत्थर साबित हुआ है लेकिन फिर भी काफी कुछ करना बाकी है.केणी ने कहा कि दिव्यांग क्रिकेटरों की मुख्य समस्या रोजगार है.

नीलेश देशपांडे 

नागपुरः वर्ष 2019 की विश्व कप चैंपियन टीम के सदस्य होने के बावजूद भारत के दिव्यांग क्रिकेटर उपेक्षित हैं. समाज और सरकार से खुद को वे कटा हुआ महसूस कर रहे हैं.

मुंबई के विक्रांत केणी भारत की विश्व चैंपियन टीम के कप्तान थे. कोशिश प्रीमियर लीग राष्ट्रीय टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट के सिलसिले में नागपुर आए केणी ने लोकमत समाचार के साथ बातचीत में इस बात पर अफसोस जताया कि राज्य और केंद्र सरकार दिव्यांग क्रिकेटरों की उपलब्धियों का संज्ञान नहीं ले रही है और उन्हें कोई आर्थिक सहयोग नहीं दिया जा रहा.

उन्होंने कहा, ''विश्व कप जीत लेने के बावजूद सरकार ने हमें वंचित ही रखा. हालांकि, बीसीसीआई ने विजेता टीम के हर सदस्य को तीन-तीन लाख रुपए अवश्य दिए. केणी ने कहा कि दिव्यांग क्रिकेटरों के साथ भी वैसा ही सुलूक किया जाए जैसा सामान्य क्रिकेटरों के साथ किया जाता है.

उन्होंने कहा, ''विश्व चैंपियन बन जाने के बाद लोग हमें पहचानने लगे हैं. हम जैसे क्रिकेटरों को मुख्यधारा में लाने में भारत का विश्व चैंपियन बनना मील का पत्थर साबित हुआ है लेकिन फिर भी काफी कुछ करना बाकी है. '' केणी ने कहा कि वैसे भी हमारी चुनौतियां कम नहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि हमें बुनियादी सुविधाएं मुहैया हों ताकि हमारे स्तर के क्रिकेट का कल उज्ज्वल हो.

केणी ने कहा कि दिव्यांग क्रिकेटरों की मुख्य समस्या रोजगार है. विश्व चैंपियन टीम के कुछ ही खिलाडि़यों को रोजगार उपलब्ध हो सका है. नागपुर के गुरुदास राऊत तथा पालघर के रविंद्र संते ही ऐसे दिव्यांग क्रिकेटर हैं जो क्रमश: वायुसेना और मध्य रेलवे में सेवारत हैं.

केणी एक निजी फर्म में सेवारत हैं. केणी ने न सिर्फ दिव्यांग क्रिकेटर बल्कि अन्य खेलों के दिव्यांग खिलाडि़यों के लिए सरकारी सेवाओं में विशेष कोटा रखने की मांग की. बॉक्स हमारा लक्ष्य केवल चैंपियन बनना और देश का सम्मान बढ़ाना था और इसके लिए हमने काफी मशक्कत की लेकिन हकीकत यही है कि आज भी दिव्यांग क्रिकेटर बुनियादी सुविधाएं और रोजगार के लिए तरस रहे हैं.

रविंद्र संते भारतीय महिला क्रिकेट टीम विश्व कप में उपविजेता थी लेकिन इसके बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने टीम की सदस्यों को 50-50 लाख रुपए दिए लेकिन दिव्यांग क्रिकेटरों को कुछ नहीं मिला. मैं केवल इतना सूचित करना चाहूंगा कि सभी क्रिकेटरों के साथ समान बर्ताव किया जाए.

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