थोक मूल्य सूचकांकः आलू महंगा, प्याज सस्ते, खाद्य, विनिर्मित उत्पाद महंगे होने से अगस्त में मुद्रास्फीति 0.16 प्रतिशत पर
By भाषा | Published: September 14, 2020 01:45 PM2020-09-14T13:45:29+5:302020-09-14T13:45:29+5:30
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी बयान में यह जानकारी दी गई है। इससे पहले पिछले कई महीनों तक थोक मुद्रास्फीति नकारात्मक दायरे यानी शून्य से नीचे रही थी। अप्रैल में यह -1.57 प्रतिशत, मई में -3.37 प्रतिशत, जून में -1.81 प्रतिशत और जुलाई में -0.58 प्रतिशत रही थी।
नई दिल्लीः खाद्य और विनिर्मित उत्पाद महंगे होने से अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 0.16 प्रतिशत पर पहुंच गई।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी बयान में यह जानकारी दी गई है। इससे पहले पिछले कई महीनों तक थोक मुद्रास्फीति नकारात्मक दायरे यानी शून्य से नीचे रही थी। अप्रैल में यह -1.57 प्रतिशत, मई में -3.37 प्रतिशत, जून में -1.81 प्रतिशत और जुलाई में -0.58 प्रतिशत रही थी।
बयान में कहा गया है कि अगस्त में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 0.16 प्रतिशत (अस्थायी) रही है। अगस्त, 2019 में यह 1.17 प्रतिशत थी। अगस्त में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति 3.84 प्रतिशत रही। इस दौरान आलू के दाम 82.93 प्रतिशत बढ़े।
सब्जियों की मुद्रास्फीति 7.03 प्रतिशत रही
सब्जियों की मुद्रास्फीति 7.03 प्रतिशत रही। इस दौरान प्याज हालांकि 34.48 प्रतिशत सस्ता हुआ। समीक्षाधीन महीने में ईंधन और बिजली की मुद्रास्फीति घटकर 9.68 प्रतिशत रह गई। इससे पिछले महीने यानी जुलाई में यह 9.84 प्रतिशत थी।
हालांकि, इस दौरान विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति बढ़कर 1.27 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई में 0.51 प्रतिशत थी। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले महीने मौद्रिक समीक्षा में मुद्रास्फीति के ऊपर की ओर जाने के जोखिम की वजह से नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया था।
आपको बता दें कि भारत में महंगाई दर बाजारों में सामान्य तौर पर कुछ समय के लिए वस्तुओं के दामों में उतार-चढ़ाव महंगाई को दर्शाती है। जब किसी देश में वस्तुओं या सेवाओं की कीमतें सामान्य से अधिक हो जाती हैं तो इस स्थिति को महंगाई (इंफ्लेशन) कहते हैं। वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाने की वजह से परचेजिंग पावर प्रति यूनिट कम हो जाती है।
दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि बाजार में मुद्रा की उपलब्धता और वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी को मापने की एक तरकीब है। भारत में वित्तीय और मौद्रिक नीतियों के कई फैसले सरकार थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर के हिसाब करती है।