रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्टः अर्थव्यवस्था और बैंकों के लिए घातक हो सकता है ये कदम, जानें बड़ी बातें

By भाषा | Published: December 29, 2018 05:28 AM2018-12-29T05:28:07+5:302018-12-29T05:28:07+5:30

रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। इसके मुताबिक वित्तवर्ष 2017-18 में एटीएम की संख्या एक हजार घटी। जानें रिपोर्ट की बड़ी बातें...

RBI's annual report: These steps can be fatal to the economy, learn big things | रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्टः अर्थव्यवस्था और बैंकों के लिए घातक हो सकता है ये कदम, जानें बड़ी बातें

रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्टः अर्थव्यवस्था और बैंकों के लिए घातक हो सकता है ये कदम, जानें बड़ी बातें

रिजर्व बैंक ने कहा है कि ऊंचे फंसे कर्ज और उसे कवर करने के लिये अपर्याप्त प्रावधान होने के साथ साथ पूंजी संबंधी नियामकीय जरूरतों अथवा जोखिम पूंजी नियमों में किसी भी तरह की रियायत दिया जाना बैंकों के साथ ही समूची अर्थव्यवस्था के लिये घातक हो सकता है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है। बासेल- तीन नियमों में विभिन्न प्रकार के कर्ज के लिये जोखिम प्रावधान की सिफारिश की गई है। ये सिफारिशें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी गई सकल डिफाल्ट दर (सीडीआर) और रिकवरी दर के आधार पर की गई हैं। लेकिन भारत में ये दरें अंतरराष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी ऊंची हैं। रिजर्व बैंक की ‘‘बैंकिंग क्षेत्र में रुझान एवं प्रगति’’ नामक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

रिपोर्ट में चेतावनी देते हुये कहा है कि इस लिहाज से बासेल के जोखिम प्रबंधन नियमों को ही लागू करना हमारे बैंकों की रिण संपत्तियों के वास्तविक जोखिम को कम करके आंक सकता है। इसमें कहा गया है कि फंसे कर्ज के समक्ष जरूरी प्रावधान का मौजूदा स्तर हो सकता है कि संभावित नुकसान को पूरा करने के लिये काफी नहीं हो। ऐसे में संभावित नुकसान को खपाने के लिये पूंजी की पर्याप्तता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। 

रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि इस बात को मानने की आवश्यकता है कि घरेलू बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज के समक्ष उचित प्रावधान और उसके समक्ष उपयुक्त पूंजी स्तर अनुपात की कमी बनी हुई है। हालांकि, दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) और फंसी संपत्तियों के समाधान के लिये रिजर्व बैंक की संशोधित रूपरेखा से इस स्थिति में कुछ सुधार आया है। 

रिपोर्ट में इस बात पर भी गौर किया गया है कि कुछ बैंकरों की तरफ से नियामकीय पूंजी आवश्यकताओं को कम करने पर जोर दिया गया है। वित्त मंत्रालय का एक वर्ग भी इस पर जोर दे रहा है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच यह तनाव का मुद्दा रहा है। इसके चलते ही इसी महीने उर्जित पटेल ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया था। 

एटीएम की संख्या घटी

वित्त वर्ष 2017-18 में देश में एटीएम की संख्या एक हजार (रिपीट एक हजार) कम होकर 2.07 लाख पर आ गयी है। रिजर्व बैंक की शुक्रवार को जारी वार्षिक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गयी। रिपोर्ट में कहा गया कि एटीएम की संख्या कम होने का मुख्य कारण कुछ सार्वजनिक बैंकों द्वारा अपनी शाखाओं की संख्या को तार्किक बनाना है। इसी प्रक्रिया के बीच बैंक की शाखाओं में लगे एटीएम की संख्या इस दौरान 1.09 लाख से कम होकर 1.06 लाख पर आ गयी। हालांकि इस दौरान शाखाओं से इतर लगे एटीएम की संख्या 98,545 से बढ़कर एक लाख पर पहुंच गयी।

रिजर्व बैंक ने आलोच्य वित्त वर्ष में बैंकिंग क्षेत्र के रुझानों पर अपनी ताजा रपट ’ट्रेंड्स एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन 2017-18’ रिपोर्ट में कहा है, ‘‘वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों के एटीएम की संख्या 1.48 लाख से कम होकर 1.45 लाख पर आ गयी।’’ इस दौरान निजी बैंकों के एटीएम की संख्या 58,833 से बढ़कर 60,145 पर पहुंच गयी।

रिपोर्ट में कहा गया कि अप्रैल 2018 से अगस्त 2018 के दौरान एटीएम की संख्या और कम होकर 2.04 लाख पर आ गयी। इसमें छोटे वित्तीय बैंकों और भुगतान बैंकों के एटीएम शामिल नहीं हैं। इसका कारण डिजिटल तरीके के इस्तेमाल में वृद्धि आना है।

इस दौरान प्वायंट ऑफ सेल टर्मिनलों की संख्या में तेजी से वृद्धि दर्ज की गयी। व्हाइट लेवल एटीएम की संख्या भी इस दौरान बढ़कर 15000 के पार हो गयी। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) के जरिये कुल 1,090 अरब रुपये के 91.5 करोड़ लेन देन हुए। यह वित्त वर्ष 2018-19 में की प्रथम छमाही में बढ़कर 157.9 करोड़ लेन देन पर पहुंच गया। इस दौरान यूपीआई के जरिये 2,670 अरब रुपये का लेन-देन हुआ।

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