भारत की नई सरकार के लिए आर्थिक मोर्चे पर होगी ये बड़ी चुनौती, जानें विशेषज्ञों की राय
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 13, 2019 08:04 AM2019-05-13T08:04:57+5:302019-05-13T08:04:57+5:30
जब भी अर्थव्यवस्था में विस्तार कम होगा, उसका पहला असर रोजगार के अवसर पर पड़ेगा. यहां तो न केवल विस्तार कम हुआ बल्कि विनिर्माण और पूंजीगत सामानों के क्षेत्र में भी गिरावट आई है.
देश के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में इस साल मार्च में 0.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. आर्थिक वृद्धि में अहम योगदान देने वाले औद्योगिक उत्पादन का यह स्तर पिछले 21 माह में सबसे कम रहा है. इसमें भी विनिर्माण क्षेत्र की गिरावट चिंता को और बढ़ाती है. पूंजीगत सामान, टिकाऊ उपभोक्ता और गैर-टिकाऊ उपभोक्ता सामानों के क्षेत्र का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा है.
रोजगार और अर्थव्यवस्था पर इसके संभावित असर के बारे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) के प्रोफेसर एन. आर. भानुमूर्ति से जब औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से रोजगार पर होनेवाले असर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब भी आर्थिक गतिविधियां कमजोर पड़ेंगी, उनका रोजगार पर निश्चित ही असर पड़ेगा. वित्त वर्ष 2018- 19 में आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत से भी कम रह सकती है. जब भी अर्थव्यवस्था में विस्तार कम होगा, उसका पहला असर रोजगार के अवसर पर पड़ेगा. यहां तो न केवल विस्तार कम हुआ बल्कि विनिर्माण और पूंजीगत सामानों के क्षेत्र में भी गिरावट आई है.
इस स्थिति में सुधार के लिए उपाय पर उन्होंने कहा कि आम चुनाव के बाद जो भी सरकार बनेगी, उसके लिए आर्थिक मोर्चे पर उभरती स्थिति को सुधारना सबसे बड़ी चुनौती होगी. घरेलू बैंकिंग क्षेत्र में इस समय जो दबाव की स्थिति है उसे ठीक करने की जरूरत है. बैंकों का फंसा कर्ज, आईएल एंड एफएस का कर्ज संकट बड़ी चुनौती है. क्या यह आम चुनाव का असर है, इस पर उन्होंने कहा कि औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में गिरावट पर आम चुनावों का थोड़ा बहुत असर हो सकता है, लेकिन केवल यही इसकी एकमात्र वजह नहीं है. पिछले पांच महीने से ही इसमें गिरावट का रुख बना हुआ है.
अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति के लिए ये चीजें रहीं जिम्मेदार
भानुमूर्ति ने कहा कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति में तीन बातें मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. पहला- वैश्विक अर्थव्यवस्था में पिछली तिमाही के दौरान नरमी का रुख रहा. कच्चे तेल के दाम में उतार- चढ़ाव के रुख से भी समस्याएं खड़ी हुईं. दूसरा- देश के बैंकिंग क्षेत्र की समस्या लगातार उलझती जा रही है. तीसरी वजह राजकोषीय समायोजन की रही है. राजकोषीय घाटे को तय दायरे में रखने के लिए निवेश खर्च कम हुआ है जबकि किसानों की कर्ज माफी जैसा खपत वाला व्यय बढ़ा है.
विनिर्माण क्षेत्र निवेश पर बढ़ा दबाव
एनआईपीएफपी के प्राध्यापक ने कहा कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम में उतार चढ़ाव पर कंपनियों की नजर है. दूसरा, सार्वजनिक परिवहन में ओला, उबर जैसी सेवाओं के आने का भी थोड़ा बहुत प्रभाव इसमें हो सकता है. इसके अलावा राजकोषीय लक्ष्यों को निर्धारित मानदंडों के भीतर रखने के लिए राजकोषीय सख्ती के चलते विनिर्माण क्षेत्र में निवेश पर दबाव बढ़ा है.