जीएसटी लागू होने के बाद क्यों नहीं कम हुए चीजों के दाम? क्या डेढ़ साल में किसी एक चीज की भी MRP हुई कम?

By विकास कुमार | Published: December 19, 2018 04:58 PM2018-12-19T16:58:04+5:302018-12-19T17:13:45+5:30

दूध, सब्जी, दही, शहद, फल, नमक, समाचार पत्र, काजल, अंडा, चिकन और चूड़ियाँ। क्या ये वस्तुएं जीएसटी लागू होने के बाद सस्ती हुई हैं ? रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले इन वस्तुओं के एमआरपी की तुलना अगर जीएसटी लागू होने से पहले की जाए तो किसी भी प्रकार का अंतर नहीं दिखेगा।

GST has no impact on daily usages goods, Narendra Modi claims seems to be failed | जीएसटी लागू होने के बाद क्यों नहीं कम हुए चीजों के दाम? क्या डेढ़ साल में किसी एक चीज की भी MRP हुई कम?

जीएसटी लागू होने के बाद क्यों नहीं कम हुए चीजों के दाम? क्या डेढ़ साल में किसी एक चीज की भी MRP हुई कम?

वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी की ताजा घोषणा के बाद भारत की इस महत्वाकांक्षी कर प्रणाली पर चर्चा शुरू हो गयी है। पीएम मोदी ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा कि जीएसटी के तहत चुनिंदा वस्तुएँ 28 प्रतिशत कर दायरे में रह जाएंगे। पीएम मोदी ने आश्वासन दिया कि ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर अधिकतम 18 प्रतिशत तक टैक्स लगेगा। जीएसटी के तहत 1200 से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं पर शून्य, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की दर से टैक्स लगता है। जीएसटी एक जुलाई 2017 से पूरे देश में लागू हुआ। जीएसटी के लागू होने के साथ ही देश में लगने वाले सभी अप्रत्यक्ष कर खत्म हो गये। 

1991 के बाद भारत में सरकार और अर्थशास्त्रियों ने आम जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर जीरो टैक्स के अलावा देश के टैक्स सिस्टम को लचीला बनाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। विकसित देशों में 'वन नेशन वन टैक्स' की परिकल्पनाओं को साकार कर लिया गया था, इसलिए विकासशील देशों में भी इस तरह के टैक्स सिस्टम की मांग उठने लगी थी।

यूपीए के शासनकाल में पी चिदम्बरम ने संसद को पहली बार जीएसटी से अवगत कराया। लेकिन उस समय आपसी सहमति नहीं बन पाने के कारण इसे टाल दिया गया। 

नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जीएसटी को लागू करने में तत्परता दिखाई। ऐसा दावा किया गया कि जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था में चार-चांद लगा देगा। खैर, अभी तो ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना तय है कि अभी तक वस्तुओं की कीमतों को लेकर सरकार पशोपेश में है। 1 जुलाई 2017 से देश में जीएसटी लागू है, लेकिन पिछले 18 महीने में टैक्स स्लैब में इतने बदलाव हुए हैं कि खुद अधिकारी भी कंफ्यूज हो जाते हैं। 

जीएसटी और वन नेशन वन टैक्स का दर्शन

वित्त मंत्री <a href='https://www.lokmatnews.in/topics/arun-jaitley/'>अरुण जेटली</a> जीएसटी काउंसिल की एक बैठक में। (फाइल फोटो)
वित्त मंत्री अरुण जेटली जीएसटी काउंसिल की एक बैठक में। (फाइल फोटो)
जीएसटी को 'वन नेशन वन टैक्स' कहना अपने आप में सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा है। 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के स्लैब बन जाने के बाद वन टैक्स का सिस्टम ध्वस्त हो चुका है। जीएसटी से पहले हमारे देश में 17 प्रकार के टैक्स होते थे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं की कीमत में किसी भी प्रकार की कमी हुई है ? क्या आप जीएसटी लागू होने से पहले और लागू होने के बाद वस्तुओं के एमआरपी में किसी भी प्रकार का बदलाव महसूस कर रहे हैं। 

बात करते हैं उन वस्तुओं के बारे में जिनपर जीएसटी के तहत जीरो प्रतिशत टैक्स स्लैब में डाला गया है। दूध, सब्जी, दही, शहद, फल, नमक, समाचार पत्र, काजल, अंडा, चिकन और चूड़ियाँ। क्या ये वस्तुएं जीएसटी लागू होने के बाद सस्ती हुई हैं। रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले इन वस्तुओं के एमआरपी की तुलना अगर जीएसटी लागू होने से पहले की जाए तो किसी भी प्रकार का अंतर नहीं दिखेगा। महंगा निकल सकता है लेकिन सस्ता होने का सवाल ही नहीं है।

अपने रोजाना के शॉपिंग अनुभवों पर अगर ध्यान से नजर डाला जाए तो स्थितियां हमारे सामने स्पष्ट हो जायेंगी। ड्राई फ्रूट्स 5 प्रतिशत टैक्स स्लैब में है, क्या आप पहले से काजू और बादाम  सस्ता खरीद पा रहे हैं ? 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि सरकार 99 प्रतिशत वस्तुओं को जीएसटी के 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब के भीतर लाने पर काम कर रही है। और एक बार फिर से 25 से 30 वस्तुओं पर सरकार टैक्स स्लैब कम करने जा रही है। इनमें टीवी, फ्रीज और वाशिंग मशीन जैसी वस्तुएं शामिल हैं। सरकार को ये सोचना चाहिए कि आम आदमी के जीवन में बुनियादी वस्तुओं की ज्यादा अहमियत होती है। 

भारत की अर्थव्यवस्था हमेशा से बाजार आधारित रही है। लोग एक ही बार में अपने घर का राशन लेना पसंद करते हैं, ताकि कुछ पैसों की बचत हो सके। छोटा बचत ही सही, लेकिन हमारी इसी आदत ने हमें वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोरने वाली 2008 की मंदी से निपटने में मदद की थी। 

देश के लोगों की सरकारों से हमेशा से ये शिकायत रही कि बुनियादी वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही है, जो धीरे-धीरे आम आदमी के पहुंच से बाहर होती चली जाएगी। जीएसटी भी इस समस्या का निदान दिख नहीं रहा है।

जीएसटी काउंसिल की शनिवार को अगली बैठक होनी है। संभव है कि इस बैठक में पीएम मोदी के बयान को अमलीजामा पहनाया जाए लेकिन असल सवाल तब भी बरकरार रहेगा कि "वन नेशन वन टैक्स" वाले जीएसटी का लाभ देश के आखिरी आदमी को कब मिलेगा।

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