GDP घटने से इस साल अर्थव्यवस्था को हो सकता है 20 लाख करोड़ का नुकसान, पढ़ें, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एस.सी गर्ग का इंटरव्यू
By भाषा | Published: September 6, 2020 02:39 PM2020-09-06T14:39:33+5:302020-09-06T14:39:33+5:30
दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में जून तिमाही में भारत की जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। जून तिमाही में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है। हालांकि वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार (4 सितंबर) को कहा कि देश में लॉकडाउन को कड़ाई से लागू किये जाने के कारण जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आयी है। लेकिन इसके बाद गतिविधियां बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से जूझ रही देश की अर्थव्यवस्था को पहली तिमाही में तगड़ा झटका लगा है। अप्रैल से जून 2020 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 24 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आई है जिसे देखते हुए इस पूरे वित्त वर्ष में जीडीपी में बड़ी गिरावट का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। जीडीपी में संभावित इस गिरावट का देश और विभिन्न तबकों के लिए क्या मायने हैं, पेश हैं इस बारे में पूर्व केन्द्रीय वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब...।
सवाल: देश की जीडीपी में इस वित्त वर्ष के दौरान बड़ी गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है। देश के लिए, उद्योग धंधों के लिए, नौकरी पेशा व्यक्ति और छोटा-मोटा कारोबार करने वाले व्यक्तियों के लिए इसके क्या मायने हो सकते हैं?
जवाब: देश की जीडीपी में चालू वित्त वर्ष के दौरान 10 से 11 प्रतिशत तक कमी रह सकती है। इसका सीधा सा मतलब है कि देश की आमदनी उतनी ही कम होगी। अर्थव्यवस्था के मुख्य तौर पर तीन हिस्से हैं जिन्हें विभिन्न रूप में आय होती है। पहला- श्रमिक, वेतन भोगी तबका। दूसरा- उद्योगपति (छोटे, बड़े सभी मिलाकर) और तीसरा- सरकार जो टैक्स लेती है। मान लीजिए 100 रुपये की आय है तो इसमें से 60- 65 प्रतिशत श्रमिक, वेतनभोगी तबके को जाता है। 20 से 25 प्रतिशत सरकार को और 15 से 20 प्रतिशत उद्योगपति कमाता है। यदि अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत की गिरावट आती है तो इसी अनुपात में सबकी कमाई कम होगी। अर्थव्यवस्था के मौजूदा आंकड़े के हिसाब 10 प्रतिशत की गिरावट आने पर 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। आमदनी कम होगी तो खर्च भी कम होगा, खर्चा घटने से तमाम गतिविधियों पर असर होगा।
सवाल: जुलाई, अगस्त के दौरान विभिन्न क्षेत्रों के जो आंकड़े आए हैं, वे अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की तरफ इशारा करते हैं। बिजली उपभोग बढ़ा है, जीएसटी संग्रह भी सुधर रहा है, कारों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। इस लिहाज से क्या रहेगी इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की स्थिति?
जवाब: मेरा मानना है कि जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वे अभी सामान्य नहीं हैं बल्कि नीचे ही हैं। पिछले साल के जिन आंकड़ों से इनकी तुलना की जा रही है, वे आंकड़े भी कम थे। बिजली की खपत पिछले साल इस दौरान कम थी और उसके मुकाबले इस साल भी अभी कम ही है। जीएसटी के आंकड़े सामान्य स्तर पर नहीं पहुंचे हैं। सेवा क्षेत्र में भी गिरावट है। इस लिहाज से दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में 12 से 15 प्रतिशत का संकुचन रहेगा। तीसरी तिमाही में यह कुछ सुधरेगा फिर भी चार से पांच प्रतिशत की गिरावट रह सकती है और चौथी तिमाही में कहीं जाकर यह सामान्य हो पाएगा। इस लिहाज से कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020- 21 में जीडीपी में 10 से 11 प्रतिशत की गिरावट रह सकती है।
सवाल: पहली तिमाही में देश की जीडीपी करीब चौथाई प्रतिशत कम हो गई। इतनी बड़ी गिरावट की मुख्य वजह लॉकडाउन को बताया जा रहा है। आपको क्या लगता है कि लॉकडाउन लागू करने की भारत की रणनीति क्या सही नहीं थी?
जवाब: सरकार ने 25 मार्च 2020 को देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया। लोगों को घरों में बंद कर दिया और अर्थव्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई। यह फैसला कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए था। यदि यह देखा जाए कि यह रणनीति सही या गलत थी तो निश्चित रूप से यह रणनीति सही नहीं थी। इससे आर्थिक नुकसान ज्यादा हुआ है। लॉकडाउन से उस समय कोरोना वायरस का प्रसार जरूर धीमा पड़ा लेकिन अर्थव्यवस्था को उससे कहीं ज्यादा नुकसान हुआ। हमें अर्थव्यवस्था को नजरअंदाज किए बिना रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए ताकि वायरस के प्रसार को रोका जा सके।
सवाल : अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी के असर को लेकर अब भी बात की जाती है? आपका क्या मानना है कि डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर है?
जवाब: नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर अस्थायी असर रहा। अर्थव्यवस्था में असंगठित, अनौपचारिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था। इसमें ज्यादातर भुगतान नकद में होता रहा है। करीब 25 से 30 प्रतिशत अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा। लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा और उनमें लेन-देन औपचारिक प्रणाली में परिवर्तित हुआ। इस प्रकार नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा है। मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी का असर अभी भी है। नोटबंदी के बाद के वर्षों में आर्थिक वृद्धि में सुधार आया है।
सवाल: सरकार को आगे क्या कदम उठाने चाहिए, ताकि अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार लाया जा सके?
जवाब: मेरा मानना है कि सरकार को तीन क्षेत्रों में आगे बढ़कर काम करना चाहिए। लॉकडाउन और कारोबाद बंद होने से सूक्ष्म, लघु उद्योगों को बड़ा झटका लगा है। देश में कुल मिलाकर करीब 7.5 करोड़ सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यम (एमएसएमई) हैं। सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए। आत्मनिर्भर भारत के तहत जो योजनाएं पेश की गईं हैं, उनका लाभ 40- 45 लाख को ही मिल रहा है। एमएसएमई में एक बड़ा वर्ग है जो अछूता है, सरकार को उन्हें सीधे अनुदान देना चाहिए। दूसरा वर्ग करीब 10- 12 करोड़ कामगारों का है जिनके पास कोई काम नहीं रहा, उनका रोजगार नहीं रहा, उनकी मदद की जानी चाहिए। तीसरे- सरकार को समग्र अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए। कई क्षेत्रों में नीतिगत समस्याएं आड़े आ रही हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए। पहली तिमाही में पूंजी निवेश में भारी कमी आई है, उस तरफ ध्यान देना चाहिए। भाषा महाबीर नेत्रपाल नेत्रपाल