कोरोना काल में प्रवासी मजदूर के लिए काम, नीति गोयल ने सैनिटरी पैड्स बांटे, जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुंचाने की व्यवस्था

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 13, 2022 09:54 PM2022-09-13T21:54:45+5:302022-09-13T21:57:35+5:30

निसर्ग साइक्लोन से प्रभावित लोगों के लिए 1000 घरों का भी निर्माण किया गया और जेलों में ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़कर उनकी सहायता करने की भी व्यवस्था की गयी.

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प्रवासी मज़दूरों को उनके गांवों और घरों तक पहुंचाने वाली कुल 282 श्रमिक ट्रेनों में सवार 5 लाख यात्रियों की सहायता की गयी.

Highlightsकोरोना काल में लगभग 5 लाख दिहाड़ी मज़दूर श्रमिक ट्रेनों के माध्यम से अपने घरों की ओर लौटे.डेढ़ लाख दिहाड़ी मज़दूरों को बसों, ट्रेनों और हवाई जहाज़ों से उनके घरों की ओर रवाना करने में पूरी मदद की.

कोरोना काल में लाखों लोग यहां से वहां गए। कई हजार परिवार तबाह हो गया। कोरोना काल में जब देशभर के लोग बहुत ही लाचार और मजबूर अवस्था में थे, तब नीति गोयल ने जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए कमर कसी और अपनी तरफ से जो कुछ भी हो सकता था, वो सबकुछ किया और आज भी कर रही हैं.

 

कोरोना काल में नीति गोयल ने सोशल मीडिया का बख़ूबी इस्तेमाल किया और रेस्टोरेंट्स चलाने के अपने अनुभवों का भी अच्छी तरह से उपयोग किया. उन्होंने जल्द ही 'खाना चाहिए' नामक अभियान की शुरुआत कर लाखों भूखे और ज़रूरतंद लोगों तक गुणवत्तापूर्ण भोजन पहुंचाने की व्यवस्था की जिसके लिए उनकी ख़ूब सराहना हुई.

उन्होंने निस्वार्थ भाव से ग़रीबों की मदद करने का बीड़ा उठाया और लाखों भूखे लोगों के पेट में अनाज पहुंचाया. उनकी ओर से 32 अनाथलयों और 800 सेक्स वर्करों को भी गोद लिया गया. इतनी ही नहीं, निसर्ग साइक्लोन से प्रभावित लोगों के लिए 1000 घरों का भी निर्माण किया गया और जेलों में ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़कर उनकी सहायता करने की भी व्यवस्था की गयी.

कोरोना काल में लगभग 5 लाख दिहाड़ी मज़दूर श्रमिक ट्रेनों के माध्यम से अपने घरों की ओर लौटे. ऐसे समय में नीति गोयल और उनकी टीम की ओर से उनके लिए भोजन और पानी की व्यवस्था की गयी थी. मुम्बई और आसपास के महामर्गों से अपने गांवों की ओर पैदल लौट रहे दिहाड़ी मज़दूरों के लिए ढेरों शिविरों के आयोजन के अलावा दो सामुदायिक रसोई का भी प्रबंधन किया गया था.

इन रसोइयों में सेल्फ़-हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाओं को भोजन तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी. इनके द्वारा तैयार किया गया भोजन आसपास के इलाकों में ज़रूरतमंद लोगों के बीच में बांटा जाता था. दिवंगत उद्योगपति एसके गुप्ता की बेटी और मूलत: चंडीगढ़ से ताल्लुक रखनेवाली नीति गोयल लजीज खान-पान के लिए मशहूर कई रेस्टोरेंट्स चलाती हैं.

उनके द्वारा मुम्बई में चलाये जानेवाले रेस्टोरेंट्स में 'कैबा', 'ओस्ताद्स', 'मद्रास डायरीज़' और 'मद्रास एक्सप्रेस' का शुमार है. अलीबाग में यादग़ार ढंग से छुट्टियां बिताने को लेकर बनाया गया उनका स्टेकेशन 'अमोर स्टेज़' भी काफ़ी लोकप्रिय है. ग़ौरतलब है कि 2019 में पेरिस के आइफ़िल टावर में हुए एक भव्य समारोह के दौरन उन्हें 'रेस्टोरेंट्अर ऑफ़ द ईयर' पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है.

इतना ही नहीं, उनके द्वारा चलाये जानेवाले एक रेस्टोरेंट को दुनिया के 50 सबसे बेहतरीन रेस्टोरेंट में भी शामिल किया गया था. लंदन स्थित लंदन ब्रिज में हुए एक प्रतिष्ठित समारोह में उन्हें 50 सबसे प्रभावशाली भारतीयों में भी शामिल किया गया था. क‌ई रेस्टोरेंट्स चलाने का अनुभव रखनेवाली नीति गोयल के नाम‌ कई उपलब्धियां दर्ज़ हैं मगर एक आंत्रप्योनर होने के अलावा भी उनकी अपनी एक अलग शख़्सियत है.

जब अचानक से घोषित किये गये लॉकडाउन में देशभर में प्रवासी मजदूर भारी मुश्क़िलों का सामना कर रहे थे तो ऐसे में नीति गोयल ने अभिनेता सोनू सूद के साथ मिलकर 'घर भेजो' नामक एक नायाब अभियान की शुरुआत करने का फ़ैसला किया. इस अभियान के माध्यम से उन्होंने तकरीबन डेढ़ लाख दिहाड़ी मज़दूरों को बसों, ट्रेनों और हवाई जहाज़ों से उनके घरों की ओर रवाना करने में पूरी मदद की.

इतना ही नहीं, दोनों ने 'खाना चाहिए' अभियान के ज़रिए शुरुआती दिनों में रोज़ाना 1200 लोगों तक खाना पहुंचाने की शुरुआत की और अब उनकी मदद से बने भोजन का लाभ प्राप्त करनेवालों की कुल संख्या 80 लाख हो गयी है. उनकी ओर से 60,000 ज़रूरतमंद लोगों को राशन किट्स भी बांटे गये.

असहाय लोगों की मदद के मिशन को पूरा करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाये हुए 'खाना चाहिए' अभियान ने सरकार के साथ गठजोड़ किया और श्रमिक ट्रेनों से अपने गांवों की ओर रवाना होनेवाले मजदूरों को उनकी यात्रा के दौरान उन्हें भोजन और पानी की व्यवस्था करने का बीड़ा भी उठाया.

इस तरह से प्रवासी मज़दूरों को उनके गांवों और घरों तक पहुंचाने वाली कुल 282 श्रमिक ट्रेनों में सवार 5 लाख यात्रियों की सहायता की गयी. ज़रूरतमंदों के लिए भोजन की व्यवस्था करते वक्त नीति गोयल और उनकी टीम के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी किफ़ायती दामों में भोजन के लिए ज़रूरी सामाग्री का प्रबंध करना.

ऐसे में उन्होंने ऐसे किसानों तक अपनी पहुंच बनाई जो कोरोना काल में अपनी फ़सलों को बाज़ार में बेच नहीं पा रहे थे. इसे प्रचारित करने में सोशल मीडिया ने काफ़ी मदद‌ की और देखते ही देखते नीति गोयल और उनकी टीम ने वह कार्य संभव कर दिखाया जिससे ज़रिए ज़रूरतमंद किसानों को ख़ासी सहायता प्राप्त हुई.

दूसरे लॉकडाउन के दरमियान मोबाइल एम्बुलेंस सर्विस के माध्यम से लोगों को घर-घर जाकर ऑक्सीज़न पहुंचाने का अभियान चलाया गया, लोगों में राशन किट्स और रोज़मर्रा के जीवन के लिए ज़रूरी अन्य सामान भी बांटे गये. ग़ौरतलब है कि कोरोना काल‌ में नीति गोयल और उनकी टीम ने आवारा कुत्तों और बिल्लियों को भी सहारा देने का काम किया, मुम्बई अग्निशमन विभाग के लोगों के लिए भोजन उपलब्ध कराया, रैम्बो सर्कस ग्रुप के कर्मचारियों और हज़ारों ज़रूरतमंद सेक्स वर्करों की मदद की.

चूंकि लॉकडाउन का ऐलान अचानक से कर दिया गया था तो ऐसे में देशभर के प्रवासी मज़दूर मज़बूरीवश जहां-तहां फंस गये थे. ऐसे मुश्किल हालात में नीति गोयल ने मुम्बई, ठाणे, वाशी, दहिसर और नाशिक महामार्गों पर विभिन्न शिविरों का आयोजन कर अपने घरों की ओर पैदल लौट रहे  असहाय लोगों की हरसंभव सहायता की.

मुम्बई में कमाठीपुरा इलाके में 50,000 सेक्स वर्करों में सैनिटरी पैड्स के वितरण से लेकर साइक्लोन में फंसे 70,000 लोगों की जान बचाने तक, नीति गोयल और उसकी टीम द्वारा किये गये सामाजिक कार्यों की सूची काफ़ी लम्बी है. नीति गोयल अच्छी तरह से समझती हैं कि पुरुषों में ड्रग्स का सेवन करने की आदत बहुत हद तक घरेलू हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होती है.

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण  इलाकों में ग्रीन AR की शुरुआत करना घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए उठाया गया सबसे ठोस क़दम था. इसके लिए नीति गोयल की टीम ने उत्तर प्रदेश के कोश्यारी गांव में ज़मीनी स्तर पर काम आरंभ किया. उन्होंने 25 महिलाओं के एक समूह का गठन किया जो घरेलू हिंसा और ड्रग्स के सेवन से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए कार्यरत है. 

इस अभियान के तहत तमाम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों और उन्हें मिलनेवाले लाभ से अच्छी तरह से अवगत कराया जाता है. इतना ही नहीं, ग्रामीण महिलाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इस अभियान के तहत अब 250 गांवों में 1800 महिलाओं की सेना काम कर रही है जो आत्मनिर्भर हैं और ख़ुद की रक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम हैं.

अब दूसरे चरण में नीति गोयल और उनकी टीम इन ग्रामीण महिलाओं के लिए रोज़गार के मौकों का निर्माण करने में जुटी हैं जो आत्मनिर्भर स्वयंभू कहलाएंगी. उल्लेखनीय है कि नीति गोयल का लक्ष्य अगले 5 सालों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार के और 250 गांवों में अपनी पैठ बनाना और वहां की महिलाओं व बच्चों के लिए उल्लेखनीय कार्यों को अंजाम देना है.

उनका उद्देश्य मिर्ज़ापुर जिले के 50 नक्सल प्रभावित गांवों में ग्रीन ग्रुप्स का गठन करना है जिसके माध्यम से युवाओं में ड्रग्स संबंधी समस्याओं, बच्चों में शिक्षा के अभाव, औरतों के साथ घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं को क़ाबू में लाना है. संस्था का लक्ष्य किसानों की समस्याओं को हल कर कृषि उत्पादन को बढ़ाना भी है जिसके लिए उनकी ओर से कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है.

सामाजिक-कार्य में ख़ुद को पूरी तरह से झोंक देनेवाली नीति गोयल कहती हैं, "अगर सिर्फ़ अपने लिए नाम कमाना मेरा उद्देश्य होता तो मैं सिर्फ़ एक आंत्रप्योनर के रूप में काम कर रही होती और अपने तमाम रेस्टोरेंट्स को चला रही होती जिसके लिए मुझे कई बड़े पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

मगर मैं हमेशा से अपने आसपास होनेवाली घटनाओं से परिचित और सामाजिक तौर पर सचेत रहनेवाली शख़्स रही हूं जिसकी झलक मेरे द्वारा किये जानेवाले सामाजिक-कार्यों में साफ़ तौर पर देखी जा सकती है. मैं मरते दम तक ज़रूरतमंद लोगों के लिए काम करना चाहती हूं."

 

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