गांधी की सलाह पर सावरकर ने अंग्रेजों को दया याचिका लिखी थी: जावेद अख्तर ने बताया बकवास
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 15, 2021 03:15 PM2021-10-15T15:15:12+5:302021-10-15T15:29:17+5:30
जावेद अख्तर ने ट्वीट किया- सावरकर ने अंग्रेजों को पहली दया याचिका 1911 ( इसी साल वह कालापानी गए थे) और दूसरी साल 1913 में लिखी थी। गांधीजी तब दक्षिण अफ्रिका में थे और उन्होंने 1915 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था।
बीते दिनों केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने एक बयान में सावरकर के माफीनामे जिक्र करते हुए कहा था कि वीर सावरकर ने गांधीजी के कहने पर अंग्रेजों को दया याचिका लिखी थी। केंद्रीय मंत्री के इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की टिप्पणियां आने लगी। इस बीच फिल्म गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने इसे पूरी तरह बकवास करार दिया है।
जावेद अख्तर ने राजनाथ सिंह के बयान पर पलटवार करते हुए ट्वीट किए और कहा कि जब सावरकर ने पहली दया याचिका 1911 मे ंलिखी उस वक्त गांधी दक्षिण अफ्रिका में थे। और साल 1915 में वे स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिए। राजनाथ के बयान को लेकर जावेद अख्तर ने दो ट्वीट किए। और केंद्रीय मंत्री के बयान को पूरी तरह असत्य बताया।
जावेद अख्तर ने ट्वीट किया- सावरकर ने अंग्रेजों को पहली दया याचिका 1911 ( इसी साल वह कालापानी गए थे) और दूसरी साल 1913 में लिखी थी। गांधीजी तब दक्षिण अफ्रिका में थे और उन्होंने 1915 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था। इसलिए यह पूरी तरह असत्य है कि उन्होंने गांधी जी की वजह से दया की अपील की। बकवास !!
वहीं जावेद अख्तर ने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा- यह दावा करके कि सावरकर ने गांधीजी की सलाह पर ब्रिटिश आकाओं को दया अपील भेजी थी, हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंहजी ने गांधी से कुछ सम्मान उधार लेकर सावरकर को देने की सख्त कोशिश की। लेकिन यह काम नहीं आया।
जावेद अख्तर के इस ट्वीट पर कई यूजर्स अपना विरोध जताया। एक यूजर ने लिखा- जिस साल सावरकर को काले पानी की सजा दी गई, उसी साल कांग्रेस के अध्यक्ष अंग्रेज थे, एक तरफ सावरकर को देश हित के बदले काला पानी मिला और दूसरी तरफ पूरी कांग्रेस अंग्रेजों के पैरों तले दब गई। एक अन्य ने लिखा- सावरकर जी को 27 साल की उम्र में काला पानी यातना का शिकार होना पड़ा था। वे भी एक इंसान थे। सभी इंसान सहन कर सकते हैं लेकिन एक हद तक। यह एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनकी स्थिति को कम नहीं करता है। बीटीडब्ल्यू गांधी और नेहरू को कभी भी काला पानी जैसी कठोर सजा के अधीन नहीं किया गया था।