रामायण में इस कारण से दारा सिंह को मिला था हनुमान का रोल, बेटे मे सालों बाद किया खुलासा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 10, 2020 07:01 AM2020-04-10T07:01:49+5:302020-04-10T07:01:49+5:30
दारासिंह ने इसके बाद बी.आर. चोपड़ा के महाभारत सीरियल में भी हनुमान की भूमिका निभाई थी. विंदु पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ''पिताजी जब तक जिंदा थे, वही हनुमान का रोल करते थे
दारासिंह के हनुमानजी का चेहरा बन जाने की दिलचस्प कहानी उनके बेटे विंदु दारा सिंह बड़े ही रोचक अंदाज में सुनाते हैं. विंदु बताते हैं, ''यह रामानंद सागर के रामायण सीरियल से भी पहले की बात है. 1976 में डायरेक्टर चंद्रकांत ने एक फिल्म बनाई 'बजरंग बली' और उसमें मेरे पिता को हनुमानजी का रोल दिया. फिल्म सुपरहिट रही 'जय संतोषी मां' जितनी और मेरे पिताजी घर-घर में पवनपुत्र हनुमान के रूप में ही पहचाने जाने लगे.''
11 साल बाद रामायण सीरियल आया. ''रामानंद सागरजी को हम पापाजी कहते हैं. उन्होंने यह सीरियल बनाने का बीड़ा उठाया. दीपिका चिखलिया सीताजी के लिए पहली पसंद थीं, लेकिन अरुण गोविल श्रीराम के रोल के लिए पहली पसंद नहीं थे.
पापाजी को एक रात सपना आया जिसमें उन्होंने मेरे पिताजी को हनुमान के रूप में देखा. पिताजी को बुलाकर तत्काल वह रोल दे दिया. पापाजी को कोई मना नहीं कर सकता था. बरसों कुश्तियां लड़ने के कारण पिताजी के घुटने कमजोर हो चले थे. उनकी उम्र भी 60 हो चुकी थी, लेकिन पिताजी को हनुमान की भूमिका निभानी ही पड़ी.'' रामायण ने दारासिंह की हनुमान की भूमिका को अमर बना डाला. दारासिंह ने इसके बाद बी.आर. चोपड़ा के महाभारत सीरियल में भी हनुमान की भूमिका निभाई थी.
विंदु पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ''पिताजी जब तक जिंदा थे, वही हनुमान का रोल करते थे. उनके निधन के बाद यह जिम्मेदारी मुझे मिली. मुझे 1996 में जय वीर हनुमान सीरियल में हनुमान की भूमिका ऑफर की गई. मैं पहले पिताजी के कारण प्रसिद्ध भूमिका करने से हिचकिचा रहा था, लेकिन फिर मैंने चुनौती को स्वीकार लिया. मुझे दिल्ली की रामलीला में हर साल हनुमान की भूमिका निभाने के लिए बुलाया जाता है.
हनुमानजी की मेरी सर्वश्रेष्ठ भूमिका तेलुगू फिल्म में थी, जिसे महान बापू ने डायरेक्ट किया था.'' विंदु को इस बात की खुशी है कि 'रामायण' सीरियल ने सागर परिवार को दोबारा आर्थिक तौर पर मजबूत कर दिया. इस सीरियल से जुड़ा हर एक व्यक्ति कामयाब हुआ.
(सुभाष के. झा )