Durga Puja 2019: बांग्ला सिनेमा का 102 साल पुराना इतिहास बता रही है सामुदायिक दुर्गा पूजा की ये थीम

By भाषा | Published: October 8, 2019 02:07 PM2019-10-08T14:07:37+5:302019-10-08T14:07:37+5:30

दक्षिणी कोलकाता में भवानीपुर सम्मिलानी सामुदायिक पूजा के आयोजकों ने पंडाल में 100 से अधिक बंगाली फिल्मों के पोस्टर और तस्वीरें लगायी हैं। कुछ पोस्टर और तस्वीरें तो 1950 के दशक की हैं।

Durga Puja 2019: 102 years old history of Bangla cinema is telling this theme of community Durga Puja Navratri | Durga Puja 2019: बांग्ला सिनेमा का 102 साल पुराना इतिहास बता रही है सामुदायिक दुर्गा पूजा की ये थीम

Durga Puja 2019: बांग्ला सिनेमा का 102 साल पुराना इतिहास बता रही है सामुदायिक दुर्गा पूजा की ये थीम

Highlightsइसके जरिए युवा पीढ़ी को बंगाली सिनेमा के समृद्ध इतिहास के बारे में बताना चाहते हैं।यह थीम बंगाली सिनेमा के 100 साल से अधिक पुराने इतिहास पर आधारित है।

कोलकाता में एक सामुदायिक दुर्गा पूजा की थीम बांग्ला सिनेमा का 102 साल पुराना इतिहास बता रही है। दक्षिणी कोलकाता में भवानीपुर सम्मिलानी सामुदायिक पूजा के आयोजकों ने पंडाल में 100 से अधिक बंगाली फिल्मों के पोस्टर और तस्वीरें लगायी हैं। कुछ पोस्टर और तस्वीरें तो 1950 के दशक की हैं।

पूजा समिति के संयुक्त सचिव कौशिक दत्त ने पीटीआई भाषा को बताया ‘‘हमारी थीम बंगाली सिनेमा के 100 साल से अधिक पुराने इतिहास पर आधारित है जिसके लिए हमने पिछले पांच दशकों में लोकप्रिय और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों के पोस्टर और तस्वीरें लगायी हैं।’’

पंडाल में प्रसिद्ध बंगाली फिल्में जैसे पाथेर पांचाली, अपूर संसार, सुबर्नरेखा, मेघे ढाका तारा, गोपीगायन बाघाबायन, सोनारकेला, गोत्रो, अकलेर सांधने, जय बाबा फेलुनाथ, गोत्रो, बेला शेषे, चोतुस्कोने और जतीश्वर आदि के पोस्टर और तस्वीरें लगायी गयी हैं।

सत्यजीत रे, मृणाल सेन, रित्विक घटक, तपन सिन्हा, बिमल रॉय, श्रीजीत मुखर्जी और कौशिक गांगुली जैसे मशहूर बंगाली निर्देशकों की तस्वीरों की एक फोटो प्रदर्शनी भी पंडाल में लगायी गयी है। पंडाल में सबसे ऊपर, सत्यजीत रे की फिल्म 'गोपीगायन बाघाबायन' में मुख्य पात्रों द्वारा पहने गए विशाल ‘‘नागरा’’ जूते की प्रतिकृतियां लगायी गई हैं।

दत्त ने कहा ‘‘हम अपनी युवा पीढ़ी को बंगाली सिनेमा के समृद्ध इतिहास के बारे में बताना चाहते हैं।'' उन्होंने बताया ‘‘यह थीम इंद्रनील घोष के दिमाग की उपज है और उन्होंने इस थीम को साकार करने के लिए पिछले तीन-चार महीनों में टॉलीगंज इलाके के कई स्टूडियो से ये पोस्टर और अन्य सामग्री एकत्र की। कलाकार मंच ने भी हमें विषय संबंधी सामग्री मुहैया करायी।’’

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