पुण्यतिथि विशेष: आखिर कैसे पिता की घड़ी बेचकर सपने साकार करने वाले राजेंद्र कुमार कैसे बनें 'जुबली कुमार', पढ़ें फिल्मी सफर
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: July 12, 2018 05:38 AM2018-07-12T05:38:38+5:302018-07-12T05:38:38+5:30
अभिनेता राजेंद्र कुमार एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों की सिल्वर जुबली की लाइन ही लगा दी थी, जिस कारण से उनको जुबली कुमार भी कहा जाता था।
बॉलीवुड के बीते हुए जमाने के कई ऐसे अभिनेता हुए हैं जिन्होंने अपने फिल्मी कैरियर के दौरान खूब कामयाबी और शोहरत कमाई थी। अभिनेता राजेंद्र कुमार एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों की सिल्वर जुबली की लाइन ही लगा दी थी, जिस कारण से उनको जुबली कुमार भी कहा जाता था। राजेंद्र कुमार ने महज 69 साल में 12 जुलाई को दुनिया को अलविदा कह दिया था।
करियर की शुरुआत
राजेन्द्र कुमार ने बॉलीवुज में अपने गम पर एक से एक बेहतरीन फिल्में दी हैं। लेकिन शुरुआती दिनों में उनको कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। बचपन से राजेंद्र कुमार अभिनेता बनना चाहते थे। जब वह मुंबई आए तो उनके पास मात्र पचास रूपए थे,जो उन्होंने अपने पिता से मिली घडी बेचकर हासिल किए थे। घडी बेचने से उन्हें 63 रूपए मिले थे। जिसमें से 13 रूपये से उन्होंने फ्रंटियर मेल का टिकट खरीदा था ।
150 रूपए का वेतन
गीतकार राजेन्द्र कृष्ण की मदद से राजेन्द्र कुमार को 150 रूपए मासिक वेतन पर निर्माता-निर्देशक एच.एस. रवेल के सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इसके बाद उनको 1950 आई फिल्म जोगन में पहली बार काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में दिलीप कुमार लीड रोल में थे।इस फिल्म के बाद राजेंद्र कुमार जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इनमें से कुछ फिल्में पर्दे पर असफल भी हुईं।
सफलता लगी हाथ
वर्ष 1957 में नरगिस पर आधारित में उनको छोटो सा रोल मिला लेकिन ये रोल उनके करियर को बदल ले गया। सभी उनके काम की जमकर तारीफ की। इसके बाद धीरे धीरे 1963 मे प्रदर्शित फिल्म मेरे महबूब की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राजेन्द्र कुमार ने कभी पीछे पलट के नहीं देखा। लीड रोल में तारीफ मिलने के बाद भी उन्होंने साल 1964 में प्रदर्शित फिल्म संगम में राजकपूर के सहनायक की भूमिका स्वीकार कर लिया और एक बार फिर वह फैंस के दिलों में घर गए थे।
जुबली कुमार पड़ा नाम
वर्ष 1963 से 1966 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में राजेन्द्र कुमार की लगातार छह फिल्में हिट रहीं और कोई भी फिल्म फ्लाप नहीं हुईं। कहते हैं ये वो दौर था जब मुम्बई के सभी दस सिनेमाघरों में उनकी ही फिल्में लगी और सभी फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनायी। यह सिलसिला काफी लंबे समय तक चलता रहा। बस इसी के बाद फैंस ने उनका नाम जुबली कुमार रख दिया।
यूं खत्म हुआ स्टारटम
राजेश खन्ना के सिनेमा में आने के बाद धीरे धीरे राजेंद्र कुमार का करियर खत्म हो गया था। हांलाकि 1981 राजेन्द्र कुमार के सिने करियर का अहम पडाव साबित हुआ। अपने पुत्र कुमार गौरव को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने केलिए उन्होंने लव स्टोरी का निर्माण और निर्देशन किया। जिसने बाक्स आफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की। कहते हैं जब उनके करियर को गर्त मिली तो उन्होंने अपना लकी बंगला तक बेंच दिया था जिसको खुद राजेश खन्ना ने खरीदा था।
दुनिया को कहा अलविदा
राजेन्द्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए 1969 में उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया था। राजेन्द्र कुमार 12 जुलाई 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। राजेन्द्र कुमार ने अपने करियर में लगभग 85 फिल्मों में काम किया। कुछ है-तलाख, संतान, धूल का फूल, पतंग, धर्मपुत्र, घराना, हमराही, आई मिलन की बेला, बिन फेरे हम तेरे, फूल आज भी फैंस के दिलों में जिंदा है।