के एल सहगल पुण्यतिथि विशेष: सिनेमा जगत के पहले महानायक जिनका एक गाना आज भी लोगों की जुबान पर है चढ़ा

By मेघना वर्मा | Published: January 18, 2019 07:58 AM2019-01-18T07:58:22+5:302019-01-18T07:58:22+5:30

दीदी फिल्म के बाद सहगल 1940 में मुंबई आए और बॉलीवुड करियर की शुरूआत की। यहां आकर उन्हें कई बार निराशा हाथ लगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

death aniversary special of k l sahagal know more about his life and bollywood career | के एल सहगल पुण्यतिथि विशेष: सिनेमा जगत के पहले महानायक जिनका एक गाना आज भी लोगों की जुबान पर है चढ़ा

के एल सहगल पुण्यतिथि विशेष: सिनेमा जगत के पहले महानायक जिनका एक गाना आज भी लोगों की जुबान पर है चढ़ा

एक बंगला बने न्यारा...जिसपे झूमे चांद हमारा... 

90 के दशक में रविवार की सुबह दूरदर्शन पर रंगोली का कार्यक्रम देखा होगा तो के एल सहगल की आवाज में ये गीत जरूर सुना होगा। ब्लैक एंड व्हाइट फ्रेम पर पिक्चाराइज ये गाना लोगों के घर के सपनें और उससे जुड़े इमोशन को बखूबी दर्शाता है। इंडियन सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले कुंदन लाल सहगल यानी के एल सहगल को लोग आज भले ही ना जानते हों मगर उनकी गायकी की मिसाल लोग अभी तक देते हैं। 18 जनवरी को बॉलीवुड के इस पहले महानायक की पुण्यतिथि है। 200 से ज्यादा गाना गाने वाले सहगल महज 43 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया मगर इस छोटे से सफर में उनके सितारे हमेशा बुलंदियों में रहे। 

मां से मिली संगीत की प्रेरणा

के एल सहगल का जन्म सन् 1904 में जम्मू के तहसीलदार घराने में हुआ था। पिता अमरचंद तहसीलदार और उनकी मां केसर बाई हाउस वाइफ थीं जिन्हें संगीत से बड़ा लगाव था। सहगल साहब को संगीत की प्रेरणा उनकी मां से ही मिली थी। सहगल साहब बचपन से ही अपनी मां के साथ संगीत के सुर में रम गए। उन्होंने अपनी मां के साथ शास्त्रीय संगीत सीखा और उनका रूझान संगीत की ओर आ गया। 

चमड़े के कारोबारियों के साथ की नौकरी

अपनी शुरूआती पढ़ाई के बाद के एल सहगल ने स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद मुरादाबाद रेलेवे स्टेशन पर टाइमकीपर की नौकरी करते थे। मुरादाबाद से कानपुर आकर उन्होंने चमड़े के व्यापारियों के साथ नौकरी करनी शुरू की। कुछ समय बाद वह गजल की महफिलों के चमड़ा बाबू के नाम से फेमस हो गए। कानपुर से ही उन्होंने संगीत की तालीम ली। 

200 रूपये महीने की कि थी नौकरी

साल 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर के बी.एन.सरकार ने सहगल को 200 रुपये मासिक पर अपने यहां रखा लिया था। यहीं सहगल साहब की मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई। बतौर अभिनेता सहगल को वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फिल्म मोहब्बत के आंसू में अभिनय का मौका मिला। इसके बाद 1932 में सुबह का सितारा और जिंदा लाश फिल्म भी आई। लेकिन इस फिल्म से सहगल कुछ खास ना कर पाए। 1933 मे प्रदर्शित फिल्म  पुराण भगत की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो पाए थे। 1937 में सहगल को बांग्ला फिल्म दीदी से अपार सफलता मिली। 

शुरूआती दौर में निराशा लगी थी हाथ

दीदी फिल्म के बाद सहगल 1940 में मुंबई आए और बॉलीवुड करियर की शुरूआत की। यहां आकर उन्हें कई बार निराशा हाथ लगी लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने कई बॉलीवुड में अपनी एक अलग ही जगह बना ली। 1942 में सहगल की पहली बॉलीवुड फिल्म भक्त सूरदास आई। इसके बाद 1943 में तानसेन, 1944 में मेरी बहन, भँवरा आई। इसेक बाद तदबीर, कुरुक्षेत्र, शाहजहां, उमर खैय्याम और परवाना आई थी। 

अधिक शराब पीने की वजह से हुआ था निधन

बॉलीवुड के इस पहले महानायक 43 साल की उम्र में सहगल का निधन हो गया था। अत्याधिक शराब पीने की वजह से 1946 में वह बेहद बीमार हो गए। जिसके बाद वह नगर जालंधर चले आए। जहां 18 जनवरी 1947 को लीवर की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि सहगल को शराब की लत इस कदर थी कि उन्होंने अपने सारे गाने लगभग गाने शराब के नशे में गाए।    

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