शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल ने कहा- 'रियलिटी शो बंद होने के तीन महीने बाद कलाकार कहां जाता है पता भी नहीं चलता'
By भाषा | Published: January 24, 2020 08:10 PM2020-01-24T20:10:58+5:302020-01-24T20:10:58+5:30
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कंसर्ट में हम देखते हैं कि आवाज को बेहद तेज करने पर जोर रहता है। हमारी आवाजें तेज होती जा रही है, जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं है।
प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल ने कहा कि यह सही है कि संगीत के टीवी रियलिटी शो ने कई बेहतरीन प्रतिभाएं दी हैं, लेकिन शो खत्म होने के तीन महीने बाद कलाकार कहां गुम हो जाता है यह पता ही नहीं चलता। साथ ही उन्होंने कहा कि हम संगीत को सिर्फ फिल्म संगीत के नजरिये से देखते हैं, जबकि संगीत हमारे देश के कोने-कोने में है।
जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएल) के दूसरे दिन अपनी किताब ‘‘लुकिंग फॉर मिस सरगम’’ पर आधारित सत्र में सुधा सदानंद से बातचीत के दौरान उन्होंने यह बात कही। मुद्गल ने कहा कि वह संगीत के 'रियल्टी शोज़' को बुरा नहीं मानतीं। ऐसी प्रतियोगिताएं दूर-दराज में छिपी हुई प्रतिभाओं को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने में बेहद उपयोगी साबित हुई हैं। मगर एक बार 'रियल्टी शो' ख़त्म होने के तीन महीने बाद उन विजेता कलाकारों की क्या स्थिति रहती है, यह जानना महत्वपूर्ण है।
कॉपीराइट के विषय पर मुद्गल ने कहा कि यह बहुत जटिल विषय है और हमें इसके बारे में कुछ बताया ही नहीं जाता। कॉपीराइट को हमारी संगीत की शिक्षा का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। आज के समय में यह जरूरी है।
उन्होंने कहा क यदि हम कहीं से कोई गीत लेकर उसे अपने तरीके से भी गा रहे है तो हमें कम से कम यह बताना चाहिए कि यह मूल रूप से कहां से आया है। मुद्गल ने कहा, ‘‘पुरानी चीज को नए स्वरूप में लाने को लेकर मुझे कोई समस्या नहीं है। अगर यह सही नहीं होगी तो सिर्फ इतना होगा कि मैं इसे दोबारा नहीं सुनूंगी। ’’
संगीत में तकनीक के बढ़ रहे प्रयोग को उन्होंने सही माना, लेकिन साथ ही कहा इस पर बहुत हद तक निर्भरता ठीक नहीं है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कंसर्ट में हम देखते हैं कि आवाज को बेहद तेज करने पर जोर रहता है। हमारी आवाजें तेज होती जा रही है, जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं है।
अपनी किताब ‘‘लुकिंग फॉर मिस सरगम’’ को लेकर उन्होंने कहा कि इस किताब की सारी कहानियां 'संगीत' विषय के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमती,बल्कि संगीत के सुर-ताल के बीच ही बुनी गई हैं। इसकी वजह बिलकुल स्पष्ट भी है। संगीत उनका अपना विषय है। सुर, लय, ताल के अलावा मंच के परे एक कलाकार की ज़िन्दगी में ख़ुशी, दुःख, अवसाद, निराशा, प्रतिस्पर्धा, जीत, हार और उपलब्धि के बारे में उन्हें बखूबी पता है।