Birth Anniversary : दादा साहब फाल्के, सिनेमा जगत के वो फिल्ममेकर जिन्होंने इंडस्ट्री को दी पहली फिल्म
By मेघना वर्मा | Published: April 30, 2019 07:34 AM2019-04-30T07:34:06+5:302019-04-30T07:34:06+5:30
दादा साहब दोस्त से चंद रुपये लेकर लंदन गए और वहां से फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखीं। उससे जुड़े सभी सामान खरीद कर वो वापिस बंबई आ गए। दादा साहब के फिल्मी योगदान के लिए उन्हीं के नाम पर दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी शुरु किया गया।
भारतीय सिनेमा के जगत के जनक कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के की आज 149वीं पुण्यतिथी है। सिनेमा जगत को पहली फिल्म राजा हरीशचन्द्र फिल्म देने वाले दादा साहब का जन्म 30 अप्रैल 1870 को नासिक के त्रयम्बकेश्वर में हुआ था। उनकी जिंदगी में उन्हें फिल्म बनाने की प्रेरणा तब मिली जब उन्होंने 1919 में फिल्म द लाइफ ऑफ क्राइस्ट में भीड़ में खड़े होकर कई फिल्में देख डाली और ठाना की वो फिल्म का निर्माण ही करेंगे।
दादा साहब अपनी जिंदगी की तलास के लिए नासिक से मुंबई आ गए। कला के क्षेत्र में रुचि रखने वाले दादा साहब 1885 में जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। उसके बाद कुछ समय तक बड़ौदा के मशहूर कलाभवन में भी कला की शिक्षा ली। इसके बाद एक नाटक की कंपनी में बतौर चित्रकार काम करने लगे।
साल 1912 में दादा साहब दोस्त से चंद रुये लेकर लंदन गए और वहां से फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखीं। उससे जुड़े सभी सामान खरीद कर वो वापिस बंबई आ गए। फाल्के फिल्म कंपनी की स्थापना करने के बाद उन्होंने सिनेमा जगत को उसकी फिल्म राजा हरिश्चन्द्र देने की ठान ली। जिसे बनाने में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा।
दादा साहब फाल्के एक ऐसे डायरेक्टर बने जो भारत को बेहतरीन काम के रूप में हरीशचन्द्र देना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने अलावा और किसी पर भरोसा नहीं किया। फिल्म में लेखन, छायांकन संपादन और चित्रांकन सब का जिम्मा खुद ही उठाया और तो और फिल्म वितरण का काम भी उन्होंने ही किया। उनकी पत्नी ने फिल्म में उनकी बहुत मदद की।
दादा साहब ने ही इंडस्ट्री को दी पहली अभिनेत्री
राजा हरीश्चन्द्र की सफलता के बाद वो नासिक वापिस लौट आए। इसके बाद उन्होंने मोहिनी भस्मासुर बनाई। ये फिल्म सिनेमा जगत के लिए इस लिए भी ज्यादा महत्व रखती है क्योंकि इसी फिल्म से इंडस्ट्री को दुर्गा गोखले और कमला गोखले जैसी अभिनेत्रियां मिलीं।
दादा साहब के फिल्मी योगदान के लिए उन्हीं के नाम पर दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी शुरु किया गया। दादा साहब ने अपने तीन दशक के करियर में 100 से भी ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया। 1937 में गंगावतारम उनके करियर की आखिरी फिल्म साबित हुई। ये फिल्म पूरी तरह से असफल रही जिससे दादा साहब को गहरा सदमा पहुंचा। फिल्मी दुनिया से दूरी बना लेने वाले दादा साहब 16 फरवरी 1944 को दुनिया से विदा हो गए।