ब्लॉग: यूक्रेन-रूस की जंग खत्म कराएगा भारत?

By राजेश बादल | Published: August 21, 2024 12:15 PM2024-08-21T12:15:50+5:302024-08-21T12:15:54+5:30

यूक्रेन और भारत के बीच सिर्फ तीन-साढ़े तीन अरब डॉलर का कारोबार क्या दुर्बल संबंधों का सबूत नहीं है? इसके बावजूद भारत ने यूक्रेन को जंग के दरम्यान बड़ी संख्या में राहत सामग्री भेजी है। दूसरी ओर पाकिस्तान और यूक्रेन के बीच कारोबार का आंकड़ा इससे अधिक है।

Will India end the Ukraine-Russia war? | ब्लॉग: यूक्रेन-रूस की जंग खत्म कराएगा भारत?

ब्लॉग: यूक्रेन-रूस की जंग खत्म कराएगा भारत?

ढाई साल से अधिक समय से जारी रूस और यूक्रेन की जंग क्या निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है? यह सवाल भारत में और समंदर पार बैठे कूटनयिकों के जेहन में चल रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री अब 23 अगस्त को यूक्रेन जा रहे है। उनकी यात्रा के बारे में अधिकृत तौर पर बताया गया है कि जंग समाप्त करने की दिशा में बात हो सकती है। बीते सप्ताह यूक्रेन ने रूस पर बड़ा आक्रमण करके चौंकाया था।

निश्चित रूप से रूस इतने बड़े आक्रमण के लिए तैयार नहीं था और इस हमले ने उस पर दबाव बनाया है। यूक्रेन का दावा है कि उसने रूस के एक हजार किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। 82 से अधिक गांव और कुछ शहर उसके अधिकार में आ गए हैं। यूक्रेन का यह भी कहना है कि उसने तीन दिनों में दो बड़े पुल ध्वस्त कर दिए हैं। इन पुलों के माध्यम से रूसी सेना को साजो-सामान की आपूर्ति होती थी। इससे पहले कि जंग किसी भयानक मोड़ पर पहुंचे और दोनों देशों के लिए कोई अप्रिय स्थिति बने, अब वे बातचीत की टेबल पर आने के लिए तैयार हो सकते हैं। ऐसे संकेत हालिया दौर के घटनाक्रम दे रहे हैं।

बीते दिनों जब भारत के प्रधानमंत्री रूस गए थे तो यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अपनी नाखुशी जताई थी। जिस तरह से प्रधानमंत्री रूस के राष्ट्रपति से गले मिले और वहां का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त किया, उससे यूक्रेन खफा था और उसने अप्रसन्नता का इजहार किया था। उसे ऐसा करने का अधिकार है लेकिन पहले यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को अतीत के अध्याय अवश्य पलट लेने चाहिए। क्या जेलेंस्की को याद है कि जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था तो भारत पहला देश था, जिसने यूक्रेन को मान्यता दी थी और एशिया में पहला यूक्रेनी दूतावास भी भारत में ही खुला था। पर, यूक्रेन भारत की इस सदाशयता को भूल गया और जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भारत की सुरक्षा के लिए अनिवार्य दूसरा परमाणु परीक्षण किया तो वह संयुक्त राष्ट्र में भारत पर प्रतिबंध लगाने का समर्थन कर रहे देशों के साथ जाकर खड़ा हो गया।

इसके बाद उसने लगातार भारत को नाराज करने वाले कदम उठाए। उसने पाकिस्तान को टैंकों के इंजन बेचे, सैनिक साजोसामान और  हथियारों की सप्लाई लगातार जारी रखी। भारत के विरोध पर भी उसने ध्यान नहीं दिया। आज भी उसकी नीति कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का साथ देने की है। ऐसी स्थिति में भारत से वह किस आधार पर समर्थन की उम्मीद कर सकता है? क्या यूक्रेन को नहीं सोचना चाहिए कि चीन और पाकिस्तान से शत्रुतापूर्ण रिश्तों के होते हुए भारत रूस को भी कैसे नाराज कर सकता है? यूक्रेन और भारत के बीच सिर्फ तीन-साढ़े तीन अरब डॉलर का कारोबार क्या दुर्बल संबंधों का सबूत नहीं है? इसके बावजूद भारत ने यूक्रेन को जंग के दरम्यान बड़ी संख्या में राहत सामग्री भेजी है। दूसरी ओर पाकिस्तान और यूक्रेन के बीच कारोबार का आंकड़ा इससे अधिक है।

फिर भी एक बार हम इन समीकरणों को भूलकर मौजूदा हालात को देखें तो पाते हैं कि यूक्रेन और रूस अब जंग से ऊब चुके हैं। रूस जंग में जिस कामयाबी की उम्मीद कर रहा था, वह उसे नहीं मिली है। उधर यूक्रेन यूरोपीय देशों से जिस बड़े फौजी समर्थन की आशा कर रहा था, वह उसे हासिल नहीं हुआ है। पंद्रह साल से यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की अर्जी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।

दोनों देशों की सेनाएं अब थकने लगी हैं। बीते दिनों जब भारतीय प्रधानमंत्री रूस गए थे तो उन्होंने साफ कहा था कि जंग से शांति का रास्ता नहीं निकलता। शांति के लिए बातचीत का मार्ग ही श्रेष्ठ होता है। इसके बाद राष्ट्रपति पुतिन ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा था कि भारत जो प्रयास कर रहा है, उसके लिए वे आभारी हैं। पुतिन के इन शब्दों का अर्थ निकाला जाए तो कहा जा सकता है कि जंग जितनी लंबी चलेगी, रूस की मुश्किलें बढ़ेंगी।

इसलिए रूस के पास परदे के पीछे कूटनीतिक चर्चाओं के लिए भारत से उपयुक्त कोई दूसरा देश नहीं है। यह काम वह चीन को नहीं सौंप सकता, क्योंकि यूक्रेन को समर्थन दे रहा अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी चीन को मध्यस्थ के तौर पर कभी स्वीकार नहीं करेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी अपने बयान में कहा है कि भारत की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। कूटनीति और बातचीत से ही संघर्ष समाप्त हो सकता है। स्थाई शांति स्थापित हो सकती है।

भारतीय प्रधानमंत्री यूक्रेन से पहले पोलैंड जाएंगे. पोलैंड इस जंग में यूक्रेन का सबसे प्रबल समर्थक है। लेकिन अब इस जंग का असर उसकी आंतरिक सेहत पर भी पड़ रहा है इसलिए उसे भी बैकडोर बातचीत के लिए तैयार होना चाहिए। भारत का कोई प्रधानमंत्री 45 साल बाद पोलैंड जाएगा। इसी तरह यूक्रेन के जन्म से भारत के किसी प्रधानमंत्री ने यूक्रेन यात्रा नहीं की है। यदि इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री यूक्रेन जा रहा है तो उसके संदेश को समझने की जरूरत है। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब भारत पर रूस का साथ देने के आरोप लग रहे हैं।

पोलैंड के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। जब यह जंग शुरू हुई थी तो चार हजार भारतीय छात्रों को यूक्रेन से निकालने में पोलैंड ने भारत की सहायता की थी। भारत की परदे के पीछे की इस ऐतिहासिक पहल को और कुछ नाटो देशों का समर्थन मिल सकता है। अमेरिका के बारे में कुछ कहना फिलहाल अनिश्चित है। नाटो में शामिल कई देश रूस से अपने संबंध नहीं बिगाड़ना चाहेंगे। उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा से रूस और यूक्रेन बातचीत की मेज पर साथ आ जाएंगे।

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