आखिर द. कोरिया के साथ कदमताल क्यों?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 14, 2018 08:20 AM2018-07-14T08:20:10+5:302018-07-14T08:20:10+5:30
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन की इस भारत-यात्ना के दौरान दोनों देशों के संबंधों के अधिक घनिष्ठ होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
लेखक- वेदप्रताप वैदिक
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन की इस भारत-यात्ना के दौरान दोनों देशों के संबंधों के अधिक घनिष्ठ होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। ये संभावनाएं सिर्फ व्यापार के क्षेत्न में ही नहीं बढ़ी हैं बल्कि राजनीतिक और सामरिक क्षेत्नों में भी कई नए संकल्प हुए हैं। नोएडा में मोबाइल फोन के बहुत बड़े कारखाने का शिलान्यास तो हो ही गया है। अब संकल्प यह भी है कि कुछ वर्षो में 20 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 50 बिलियन डॉलर का हो जाए।
भारत में लगभग 600 छोटी-मोटी कोरियाई कंपनियां सक्रिय हैं, फिर भी व्यापार इतना कम क्यों है? ऐसा इसलिए भी है कि भारत जो सामान्य व्यापारिक सुविधाएं चाहता है, उन्हें देने में भी दक्षिण कोरिया कोताही बरत रहा है। इस बार 11 समझौतों पर दस्तखत हुए हैं। अब कोरिया के साथ वज्र नामक तोपों का निर्माण भी होगा और दोनों राष्ट्र मिलकर अफगानिस्तान में कुछ संयुक्त कारखाने भी लगाएंगे। दक्षिण कोरिया और भारत में नजदीकी का एक कारण चीन भी है। चीन ने उत्तर कोरिया की पीठ ठोंककर द। कोरिया को सदा परेशान करने की कोशिश की है।
इसके अलावा उ। कोरिया ने ए।क्यू। खान के जरिए परमाणु शस्त्न-निर्माण की सामग्रियां पाकिस्तान को दी थीं। इसीलिए भारत ने इस परमाणु-फैलाव का जिक्र किया और द। कोरिया ने चीन सागर में चीनी दादागीरी का जिक्र किया। दोनों देशों ने चीन और पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन अपने-अपने जख्म खोलकर दिखाए।
भारत ने उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच अभी-अभी उभरे सद्भाव की सराहना की तो दक्षिण कोरिया ने भारत को परमाणु सप्लायर्स ग्रुप का सदस्य बनाने का समर्थन किया। इस समय भारत को द। कोरिया की जितनी जरूरत है, उससे ज्यादा उसे भारत की जरूरत है, क्योंकि उसकी अर्थ-व्यवस्था की गति धीमी पड़ती जा रही है।