विजय दर्डा का ब्लॉग : पाकिस्तान में क्यों रुके हैं अमेरिकी सैनिक?

By विजय दर्डा | Published: September 6, 2021 12:04 PM2021-09-06T12:04:24+5:302021-09-06T12:12:20+5:30

इस्लामाबाद एयरपोर्ट और वहां के सर्वश्रेष्ठ सेरेना होटल की तस्वीरें वायरल होने लगीं जहां अमेरिकी सैनिक रुके हुए हैं. सवाल पूछे जाने लगे कि ये सैनिक यहां क्या कर रहे हैं?

why american soliders stay in pakistan after war over with taliban in afghanistan | विजय दर्डा का ब्लॉग : पाकिस्तान में क्यों रुके हैं अमेरिकी सैनिक?

फोटो सोर्स - सोशल मीडिया

Highlightsआखिर अमेरिकी सैनिक पाकिस्तान में क्या कर रहे हैं अफगानिस्तान पर नजर रखने के लिए अमेरिकी सेना ने पाकिस्तान में बनाया ठिकानाअफगानिस्तान स्थित अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की जमीन चाहिए

तय वक्त से पहले ही जब अमेरिकी सैनिकों ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी तो सबको यही लग रहा था कि वे अपने देश जा रहे हैं लेकिन कुछ ही घंटों में दुनिया को पता चल गया कि ये सैनिक इस्लामाबाद में लैंड हो गए हैं! इस्लामाबाद एयरपोर्ट और वहां के सर्वश्रेष्ठ सेरेना होटल की तस्वीरें वायरल होने लगीं जहां अमेरिकी सैनिक रुके हुए हैं. सवाल पूछे जाने लगे कि ये सैनिक यहां क्या कर रहे हैं? पहले तो पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री शेख रशीद ने साफ इनकार कर दिया लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि ये सैनिक तीन से चार हफ्तों के वीजा पर आए हैं. हालांकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि पाकिस्तान के आसमान में चिनूक हेलिकॉप्टर क्यों उड़ान भर रहे हैं?

शेख रशीद भले ही कह रहे हों कि अमेरिकी सैनिक ज्यादा वक्त पाकिस्तान में नहीं रुकेंगे लेकिन सवाल तो यह पैदा होता है कि अमेरिका लौटने के बजाय वे इस्लामाबाद पहुंचे ही क्यों? सवाल यह भी है कि वे अचानक पहुंचे या पहले से कुछ तय हो चुका था? पाकिस्तान कुछ भी कहे लेकिन यह बात तो करीब तीन महीने पहले ही लगभग तय हो चुकी थी कि अफगानिस्तान से निकल कर अमेरिका कहीं किसी पड़ोसी देश में अपना ठिकाना जरूर बनाएगा ताकि अफगानिस्तान पर नजर रखी जा सके. मैं आपको याद दिला दूं कि कमांडर ऑफ द सेंट्रल कमांड जनरल केनिथ मैसेंजर ने काफी पहले यह स्पष्ट रूप से कहा था कि अफगानिस्तान के पड़ोसियों से बात कर रहे हैं ताकि वहां रुक कर अफगानिस्तान की निगरानी की जा सके. उसी वक्त अमेरिका के एक्टिंग असिस्टेंट सेक्रेटरी (डिफेंस) डेविड हेलवी ने भी साफ कहा था कि हम अपनी फोर्स को रीे-लोकेट करेंगे ताकि इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों पर नजर रखी जा सके और वे अमेरिका पर हमला न कर पाएं. उसी वक्त चर्चा होने लगी थी कि अमेरिका अपना ठिकाना पाकिस्तान में बना सकता है!

वैसे अफगानिस्तान की सीमा पाकिस्तान के अलावा ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन से भी मिलती है. ईरान और चीन में ठिकाना बन नहीं सकता और तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान रूस के करीब भी हैं और वहां रूसी खुफिया एजेंसी का जाल भी फैला हुआ है. तो ठिकाना बनाने के लिए पाकिस्तान से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती है. पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की मंजूरी पहले ही अमेरिका को दे रखी है और यह बात बहुत पहले से कही जा रही है कि बलूचिस्तान के नसीराबाद में जिस एयरबेस को बनाने की बातें सामने आ रही हैं उसके लिए फंडिंग और कोई नहीं बल्कि अमेरिका कर रहा है. इस एयरबेस के माध्यम से अफगानिस्तान पर नजर रखने में अमेरिका को सहूलियत होगी. दरअसल अमेरिका ने भले ही अफगानिस्तान छोड़ दिया है, लेकिन उसके बड़े दुश्मन इस्लामिक स्टेट और अलकायदा वहां मौजूद हैं और उन पर हमले के लिए अमेरिका को पाकिस्तानी जमीन चाहिए ही!

सामान्य समझ से देखें तो लोगों को लग सकता है कि पाकिस्तान तो चीन की तरफ जा रहा है तो फिर वह अमेरिका को अपनी धरती के इस्तेमाल की इजाजत क्यों देगा? देखिए, सबसे बड़ी बात कि कूटनीति में कोई स्थायी दोस्त और कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता. सबके अपने हित होते हैं और उसी के अनुरूप निर्णय लिए जाते हैं. इसके साथ ही कमजोर आदमी का उपयोग हर कोई करना चाहता है और कमजोर आदमी सबकी शादी में जाता है. जाहिर है कि पाकिस्तान कमजोर है तो वह चीन की बारात में भी जाएगा और अमेरिका की बारात में भी जाएगा!

यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान ने अमेरिकी फौज के लिए अपने दरवाजे खोले हैं. जनरल अयूब खां ने 1959 में पेशावर एयरबेस के उपयोग की अनुमति अमेरिका को दी थी जिसका उपयोग सोवियत यूनियन की जासूसी के लिए किया गया. जनरल मुशर्रफ ने पांच एयरबेस के उपयोग की सुविधा अमेरिका को दे रखी थी जहां से वह अफगानिस्तान में ऑपरेट कर रहा था. 2010 में यह खुलासा भी हुआ था कि अमेरिकी एलीट फोर्स की एक टुकड़ी गुपचुप तरीके से पाकिस्तान में थी. सीआईए का वहां जाल फैला हुआ है. इस पाकिस्तानी सहयोग के कारण ही अमेरिका ओसामा बिन लादेन को मार पाया.

मौजूदा वक्त में पाकिस्तानी नेता भले ही चीन का गुणगान कर रहे हों लेकिन हकीकत यही है कि पाकिस्तानी आर्मी के जनरल हमेशा ही अमेरिका परस्त रहे हैं. कहा जाता है कि पाकिस्तानी जनरलों की दौलत अमेरिका में है और उनके बच्चे पश्चिमी देशों में पढ़ते हैं. उन्हें पता है कि चीन के साथ वे चालबाजी नहीं कर सकते क्योंकि चीन खुद ही बड़ा चालबाज है. अमेरिका मुफ्त में बहुत कुछ दे सकता है लेकिन चीन यदि कुछ देगा तो कुछ गिरवी भी रखवा लेगा. अब चीन-पाक के कॉरिडोर को ही देखिए, करीब दो साल से काम रुका पड़ा है क्योंकि चीन को अभी फायदा नजर नहीं आ रहा है. अफगानिस्तान में उसकी पैठ हो जाए तो काम फिर से शुरू हो जाएगा लेकिन अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि अफगानिस्तान में चीनी घुसपैठ हो. इसलिए वह पाकिस्तान को अपनी मुट्ठी में रखने की हर संभव कोशिश करेगा ही! पाकिस्तान इस वक्त कंगाली की हालत में है. उसे पैसा चाहिए और अमेरिका के लालच दिखाने के कारण वह गोद में गिरने में वक्त भी नहीं लगाएगा! पाकिस्तान पर पुराना कर्ज इतना है कि वह अमेरिका को लौटा नहीं पा रहा है. नया कर्ज भी चाहिए. ऐसी स्थिति में अमेरिका भी व्यवहार निभाएगा ही! मौजूदा हालात में अमेरिका इंसेंटिव दे सकता है. संभव है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने 300 मिलियन डॉलर की जो सहायता रोक दी थी वह फिर शुरू हो जाए!

और हां, अफगानिस्तान से निकलने के बाद अमेरिका की इतनी थू-थू हो चुकी है कि वह इस इलाके में अपनी सैन्य टुकड़ी को रखकर और इस्लामिक स्टेट पर हमला करके अपनी साख को थोड़ा-बहुत बचाने की कोशिश करना जरूर चाहेगा. यदि उसकी फौज पाकिस्तान में रहेगी तो वह कह सकता है कि हमने अफगानिस्तान छोड़ा है, मैदान नहीं छोड़ा है!

जहां तक भारत का सवाल है तो हमें वही वेट एंड वाच वाली रणनीति पर ही चलने की जरूरत है. अफगानिस्तान में सरकार बनाने के लिए तालिबान, हक्कानी गुट और दूसरों में भीषण तकरार चल रही है. हालात इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि अभी कुछ भी कहना मुश्किल है कि आने वाले वक्त में ऊंट किस करवट बैठेगा..!

Web Title: why american soliders stay in pakistan after war over with taliban in afghanistan

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