वीजा प्रतिबंधों का भारत पर सबसे अधिक पड़ता दिखाई दे रहा है दुष्प्रभाव 

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: June 22, 2018 04:02 AM2018-06-22T04:02:57+5:302018-06-22T04:02:57+5:30

ब्रिटिश सरकार ने देश की आव्रजन नीति में बदलाव से संबंधित प्रस्तावों को 16 जून को संसद में पेश किया। इसके तहत 25 देशों की एक विस्तारित सूची की घोषणा की है, जिनके छात्रों को टियर-4 वीजा श्रेणी में ढील दी जाएगी।

Visa restrictions for Indians America Britain Australia New Zealand | वीजा प्रतिबंधों का भारत पर सबसे अधिक पड़ता दिखाई दे रहा है दुष्प्रभाव 

वीजा प्रतिबंधों का भारत पर सबसे अधिक पड़ता दिखाई दे रहा है दुष्प्रभाव 

जयंतीलाल भंडारी

 इन दिनों अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित दुनिया के कुछ विकसित देशों में वीजा प्रतिबंधों के माध्यम से प्रतिभा प्रवाह पर नियंत्रण लगाने के चिंताजनक कदम उठाए जा रहे हैं। इन वीजा प्रतिबंधों का भारत पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ता दिख रहा है। हाल ही में 16 जून को ब्रिटिश सरकार ने छात्रों के लिए आसान वीजा नियम वाले देशों की सूची से भारत को अलग कर भारतीय छात्रों के लिए वीजा नियमों को सख्त कर दिया है। 

ब्रिटिश सरकार ने देश की आव्रजन नीति में बदलाव से संबंधित प्रस्तावों को 16 जून को संसद में पेश किया। इसके तहत 25 देशों की एक विस्तारित सूची की घोषणा की है, जिनके छात्रों को टियर-4 वीजा श्रेणी में ढील दी जाएगी। लेकिन नई सूची में भारत को शामिल नहीं किया गया है। मतलब ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में किसी पाठ्यक्रम के लिए आवेदन करने वाले भारतीय छात्रों को अपेक्षाकृत अधिक कड़ी जांच और दस्तावेजी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। 

ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में वीजा आवेदन प्रक्रिया को आसान बनाने की प्रक्रिया से भारत को बाहर रखने का जो निर्णय लिया है उसका ब्रिटेन सहित भारत में विरोध हो रहा है। इसी तरह से अमेरिका भी एक के बाद एक जिस तरह वीजा प्रस्तावों को कठोर बना रहा है उसका सबसे अधिक प्रभाव भारत पर पड़ रहा है। 

16 जून को अमेरिका के विख्यात शोध संस्थान केटो इंस्टीट्यूट ने अमेरिका में ग्रीन कार्ड के लिए इंतजार की अवधि के बारे में अपनी गणना के आधार पर यह अनुमान व्यक्त किया है कि उच्च डिग्रीधारी भारतीयों को अमेरिका में ग्रीन कार्ड के लिए 150 साल से अधिक इंतजार करना पड़ेगा। यह अनुमान अमेरिका के नागरिकता और आव्रजन सेवा विभाग (यूएससीआईएस) द्वारा हाल ही में जारी आवेदनों की संख्या पर आधारित है। इसमें 2017 में जारी किए गए ग्रीन कार्ड की संख्या को भी ध्यान में रखा गया है। इसके अनुसार 20 अप्रैल, 2018 तक 6,32,219 भारतीय आव्रजक तथा उनके पति/पत्नी तथा अल्पवयस्क बच्चे ग्रीन कार्ड के इंतजार में थे। गौरतलब है कि ग्रीन कार्ड से अमेरिका की स्थायी नागरिकता मिलती है। 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि विगत 25 मई को अमेरिकी सरकार ने एच-4 वीजाधारकों के वर्क परमिट खत्म करने संबंधी अपनी तैयारियों से अमेरिकी कोर्ट को अवगत कराया। ट्रम्प प्रशासन ने कहा कि कुछ श्रेणियों में एच-4 वीजाधारकों के वर्क परमिट खत्म करने की तैयारी अंतिम चरण में है। निश्चित रूप से ट्रम्प सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा। एच-4 वीजा के तहत अमेरिका में काम करने की अनुमति पाने वाले 93 फीसदी लोग भारतीय हैं। गौरतलब है कि 2015 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में एच-1बी वीजा रखने वाले व्यक्ति के जीवनसाथी को कार्य परमिट देने का फैसला हुआ था। यह फैसला इस आधार पर हुआ था कि एच 1बी वीजाधारक उच्च गुणवत्ता वाले पेशेवर के साथ उसका जीवनसाथी भी अमेरिका में रहकर कार्य कर सकता है। इससे सर्वाधिक फायदा भारतीय पेशेवरों को हुआ। 

यह कोई छोटी बात नहीं है कि अमेरिका में भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करने वाले इस वीजा प्रतिबंध प्रस्ताव के विरोध में मई  2018 की शुरुआत से ही जोरदार अभियान चलाया जा रहा है। 18 मई को भारतीय मूल की अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल के नेतृत्व में रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेटिक पार्टी के 130 सांसदों ने गृह सुरक्षा मंत्री क्रिस्टेन नीलसन को पत्र लिखकर ट्रम्प प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह एच 1-बी वीजाधारक प्रवासियों के जीवनसाथी को दिए जाने वाले वर्क परमिट को जारी रखें। 

हम आशा करें कि अमेरिका, ब्रिटेन सहित विकसित देशों में भारतीय विद्यार्थियों एवं भारतीय कुशल पेशेवरों के प्रवाह पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों के विरुद्ध विदेशों में कार्यरत उद्योग कारोबार की आवाज और डब्ल्यूटीओ में भारत की आवाज का विकसित देशों के शासन- प्रशासन पर असर पड़ेगा और यह देश कठोर वीजा प्रतिबंधों के प्रस्तावों से पीछे हटेंगे। 

Web Title: Visa restrictions for Indians America Britain Australia New Zealand

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