विजय दर्डा का ब्लॉग: सबसे बड़े साहूकार चीन से कैसे निपटेगी दुनिया?

By विजय दर्डा | Published: July 27, 2020 06:32 AM2020-07-27T06:32:54+5:302020-07-27T06:32:54+5:30

कहीं से कर्ज नहीं मिलता उन्हें चीन बड़ी आसानी से कर्ज दे देता है. जिबूती, टोंगा, मालदीव, कॉन्गो, किर्गिस्तान, कंबोडिया, नाइजर, लाओस, जांबिया और मंगोलिया जैसे कई देश तो ऐसे हैं जिनके जीडीपी से 20 प्रतिशत ज्यादा तक का कर्ज चीन ने दिया

Vijay Darda's blog: How will the world deal with the biggest moneylender China? | विजय दर्डा का ब्लॉग: सबसे बड़े साहूकार चीन से कैसे निपटेगी दुनिया?

विजय दर्डा का ब्लॉग: सबसे बड़े साहूकार चीन से कैसे निपटेगी दुनिया?

Highlightsसाफ है कि चीन सस्ते ब्याज पर ऋण लेता है और महंगी दर पर उसे बांटता हैचीन इतना कर्ज बांट रहा है तो उसे पैसे की क्या जरूरत? इस विरोध के बावजूद वह कर्ज लेने में सफल रहा है.

पुराने जमाने में एक साहूकार होता था. वह खूब कर्ज बांटता था. जब कर्जदार रकम नहीं चुका पाता था तो साहूकार उसकी जमीन हड़प लेता था. चीन इन दिनों दुनिया भर में यही कर रहा है. दुनिया के दर्जनों देश उसके कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं और चीन न केवल उनकी प्राकृतिक संपदा पर कब्जा कर रहा है बल्कि अपनी डिफेंस लाइन को मजबूत करने के लिए अपने मिलिट्री बेस भी बना रहा है. पिछले साल वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मोनेटरी फंड ने दुनिया के देशों को चेतावनी भी जारी की थी.

हॉर्वर्ड बिजनेस रिव्यू का विश्लेषण कहता है कि चीन ने दुनिया के 150 देशों को 1.5 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज दे रखा है लेकिन जर्मनी की कील यूनिवर्सिटी की वल्र्ड इकोनॉमी पर जून 2019 में जारी रिपोर्ट कहती है कि चीन के कर्ज की राशि 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है. वास्तव में  सही आंकड़े पता कर पाना किसी के लिए भी बहुत कठिन है क्योंकि बैंक ऑफ चाइना और एक्जिम बैंक का आंकड़ा तो थोड़ा-बहुत सामने आ जाता है लेकिन वो आंकड़े कहीं सामने नहीं आते जो कर्ज चीन पिछले दरवाजे से दूसरे देशों को देता है. जानकारों का मानना है कि चीन ने वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ  से भी ज्यादा कर्ज बांट रखा है.

जिन्हें कहीं से कर्ज नहीं मिलता उन्हें चीन बड़ी आसानी से कर्ज दे देता है. जिबूती, टोंगा, मालदीव, कॉन्गो, किर्गिस्तान, कंबोडिया, नाइजर, लाओस, जांबिया और मंगोलिया जैसे कई देश तो ऐसे हैं जिनके जीडीपी से 20 प्रतिशत ज्यादा तक का कर्ज चीन ने दिया. चीन यह सब खैरात के लिए नहीं कर रहा है. नीयत कब्जे की है.
उदाहरण के लिए हम श्रीलंका का ही मामला देखें. वहां हम्बनटोटा बंदरगाह प्रोजेक्ट के लिए 2007 से 2014 के बीच श्रीलंका ने चीन से 1.26 अरब डॉलर का कर्ज पांच चरणों में लिया. चीनी कंपनी ने ही इसे बनाया. श्रीलंका कर्ज का भुगतान नहीं कर पाया और 2017 में उसे हम्बनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेट पोर्ट होल्डिंग्स  कंपनी को 99 साल के लिए  सौंपना पड़ा. साथ में 15 हजार एकड़ जमीन भी देनी पड़ी.

पाकिस्तान के ग्वादर में भी चीन यही करने वाला है. 46 अरब डॉलर की लागत वाले चीन-पाक  इकोनॉमिक कॉरिडोर पर 80 प्रतिशत राशि चीन खर्च कर रहा है. यह रास्ता ग्वादर पोर्ट तक जाता है. चीन-पाक समझौता भी ऐसा है कि  40 सालों तक ग्वादर पोर्ट की कमाई का 91 फीसदी हिस्सा चीन को मिलेगा और पाक के हिस्से केवल 9 फीसदी ही आएगा. इधर पाकिस्तान की कुल जीडीपी का 14 प्रतिशत से ज्यादा उस पर चीन का कर्ज है. आईएमएफ के आंकड़े बताते हैं कि 2022 तक पाकिस्तान को 6.7 अरब डॉलर चीन को चुकाने होंगे. जाहिर है पाकिस्तान ऐसा कर नहीं पाएगा और ग्वादर पोर्ट पूरी तरह चीन की झोली में चला जाएगा. इधर  मालदीव में भी चीन घुस चुका है. वहां जिन परियोजनाओं पर भारत काम कर रहा था उनमें से कई चीन की झोली में हैं. नेपाल को बड़ा कर्ज देने की घोषणा भी चीन कर चुका है. इस तरह से चीन ने भारत को चारों तरफ से घेर लिया है.

अंडमान सागर में म्यांमार का एक कोको आइलैंड उसके कब्जे में जा चुका है. इंडियन नेवी पर नजर रखने के लिए 1994 में चीन ने एक जासूसी स्टेशन भी बना लिया और भारत आश्चर्यजनक रूप से कुछ भी नहीं कर पाया. चीन अब तो जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को भी घेरने में लगा हुआ है. कहीं धन की बदौलत तो कहीं सामरिक शक्ति की बदौलत!

कर्जदार बनाने की इस ‘डेब्ट-ट्रैप डिप्लोमेसी’ पर चीन ने इतनी धूर्तता के साथ काम शुरू किया कि दुनिया कुछ समझ ही नहीं पाई. 1950 और 1960 के दशक में उसने उन छोटे-छोटे देशों को कर्ज देना शुरू किया जहां कम्युनिस्ट सरकारें थीं. दुनिया को लगा कि कम्युनिज्म को बढ़ावा देने के लिए वह ऐसा कर रहा है. उसके बाद चीन ने मैन्युफैक्चरिंग में बादशाहत हासिल की और पूरी दुनिया को खुद पर डिपेंडेंट बना दिया. दुनिया भर से खूब कमाया और प्राकृतिक संपदा से भरपूर तथा अपने लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण अफ्रीकी देशों को कर्ज के रूप में बांटना शुरू किया. उन देशों में कुदरत ने जमीन के नीचे खजाना छिपा रखा है. वह सब अब चीन की मिल्कियत है. दुनिया जब तक कुछ समझ पाती तब तक चीन बहुत आगे निकल चुका था.

2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 में अफ्रीकी देशों पर चीन का 10 अरब डॉलर का कर्ज था जो 2016 में बढ़कर 30 अरब डॉलर हो गया. कर्ज बांटने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. कर्ज के कारण चीन के कब्जे में गए एक अफ्रीकी देश का हाल जानिए. जिबूती नाम के इस देश का क्षेत्रफल है केवल 23200 वर्ग किलोमीटर और आबादी दस लाख से भी कम है. लेकिन उस पर उसकी जीडीपी का 80 प्रतिशत कर्ज है. इसमें से 77 प्रतिशत कर्ज चीन ने दिया है. चीन ने 2017 में वहां 590 मिलियन डॉलर की लागत से अपना नेवी बेस बना लिया और जिबूती कुछ नहीं कर पाया. वहां चीनी लोगों को भी बसा दिया है. चीन यह काम कई देशों में कर रहा है. यदि कोई देश चीनियों को वापस जाने के लिए कहता है तो चीन आंखें दिखाने लगता है.

चीन की नीति को एक और उदाहरण से आप समझ सकते हैं. यूएन की ट्रेड एंड डेवलपमेंट रिपोर्ट कहती है कि 2018 में दुनिया भर के देशों ने विदेशों में अपना इन्वेस्टमेंट 2017 की तुलना में 13 प्रतिशत कम किया लेकिन उसी दौरान चीन ने 4 प्रतिशत ज्यादा इन्वेस्टमेंट किया. कमाल की बात यह है कि जो चीन इतना ज्यादा पैसा कर्ज के रूप में दूसरे देशों को दे रहा है वह खुद वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ से कर्ज ले रहा है. 2019 में उसने वर्ल्ड बैंक से कम ब्याज दर पर 1.3 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया था. उसके पहले 2017 में 2.4 बिलियन डॉलर का कर्ज प्राप्त किया था. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लगातार कहते रहे हैं कि जब चीन इतना कर्ज बांट रहा है तो उसे पैसे की क्या जरूरत? इस विरोध के बावजूद वह कर्ज लेने में सफल रहा है.

साफ है कि चीन सस्ते ब्याज पर ऋण लेता है और महंगी दर पर उसे बांटता है. इधर आंतरिक विवाद से खुद को सुरक्षित करने के लिए बुद्धिज्म, क्रिश्चियनिटी और इस्लाम धर्म को मानने वालों पर चीन ने सख्त पाबंदियां लगा दी हैं. हालत यह है कि कोई इस्लामिक देश भी कुछ नहीं बोल रहा है. जाहिर सी बात है कि मौजूदा हालात में चीन की चालबाजियों से पूरी दुनिया इस तरह घिर गई है कि उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल काम लग रहा है. इसके लिए पूरी दुनिया को एकजुटता दिखानी होगी और पूरी शक्ति और सख्ती के साथ ड्रैगन की नकेल कसनी होगी.

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