विजय दर्डा का ब्लॉग: ट्रम्प ने अमेरिका की साख को मिट्टी में मिला दिया

By विजय दर्डा | Published: January 10, 2021 04:25 PM2021-01-10T16:25:30+5:302021-01-10T16:58:41+5:30

यूएस कैपिटल ने करीब 200 साल बाद उपद्रव का ऐसा नजारा देखा. इतिहास बताता है कि अगस्त 1814 में ब्रिटेन ने अमेरिका पर हमला किया था और अमेरिकी सेना की हार के बाद ब्रिटेन के सैनिकों ने यूएस कैपिटल में आग लगा दी थी. उसके बाद से अमेरिकी संसद पर कभी हमला नहीं हुआ.

vijay darda blog over Donald Trump has tarnished America image | विजय दर्डा का ब्लॉग: ट्रम्प ने अमेरिका की साख को मिट्टी में मिला दिया

डोनाल्ड ट्रम्प। (फाइल फोटो)

Highlightsडोनाल्ड ट्रम्प का रवैया हमेशा तानाशाही वाला रहा, अमेरिका को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। पिछले दिनों अमेरिका में जो कुछ भी हुआ वह लोकतंत्र के लिए भयावह और काला दिन था.विश्व पटल पर भी देखें तो ट्रम्प ने अमेरिका की नीतियों को तबाह कर दिया.

दुनिया के किसी भी देश में यदि अमेरिका की मर्जी के खिलाफ कोई निर्णय या घटना हो जाए तो वह लोकतंत्र का झंडा लेकर हो-हल्ला मचाने लग जाता है. वह ऐसा दावा करता है कि लोकतंत्र का उससे बड़ा रखवाला कोई नहीं है. कई देशों को उसने इसी के नाम पर तबाह भी किया है. धमकाता तो वह सबको रहता है. यहां तक कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की भी आलोचना की कि यहां लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं. तब मैंने अपने लिखा था कि हमारे लोग भले ही ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हों लेकिन समझदार ज्यादा हैं.  

हिंदुस्तान के लोगों को यह बात समझ में आती है कि कब किसे सत्ता में बिठाना है और कब किसे उतारना है. इसी समझदारी का परिणाम है कि हिंदुस्तान के अंदर सत्ता परिवर्तन हमेशा ही सुगम तरीके से हुआ है.अमेरिका में जो कुछ भी हुआ वह लोकतंत्र के लिए भयावह और काला दिन था. चुनाव परिणाम को जिस तरह से ट्रम्प मानने को तैयार नहीं थे, उससे आशंकाएं तो जन्म ले रही थीं कि उनके दिमाग में खुराफात पल रहा है. उन्होंने कह भी दिया था कि वे सत्ता नहीं छोड़ेंगे लेकिन ऐसी खुराफात कोई सोच भी नहीं सकता था कि वहां ट्रम्प के समर्थक संसद पर हमला करेंगे, कब्जा कर लेंगे.

बहरहाल सुरक्षाकर्मियों ने संसद को मुक्त तो करा लिया लेकिन लोकतंत्र पर काला धब्बा लग गया! बाइडेन की जीत पर मुहर लगाने के लिए यूएस कैपिटल में संसद की बैठक के दौरान जिस तरह से ट्रम्प समर्थकों ने हमला किया, उससे साफ लग रहा था कि सब कुछ पूर्व नियोजित था. ‘यूएस कैपिटल’ बिल्डिंग में ही दोनों सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट की बैठक होती है.

करीब 200 साल बाद आया उपद्रव का ऐसा नजारा

यूएस कैपिटल ने करीब 200 साल बाद उपद्रव का ऐसा नजारा देखा. इतिहास बताता है कि अगस्त 1814 में ब्रिटेन ने अमेरिका पर हमला किया था और अमेरिकी सेना की हार के बाद ब्रिटेन के सैनिकों ने यूएस कैपिटल में आग लगा दी थी. उसके बाद से अमेरिकी संसद पर कभी हमला नहीं हुआ. तो बड़ा सवाल है कि ट्रम्प के समर्थक इतनी संख्या में एकत्रित कहां से हुए? लगता तो यही है कि अमेकिा में इस वक्त भारी बेरोजगारी है और पैसे बांट कर ट्रम्प ने हमलावर जुटाए. सोशल मीडिया के माध्यम से ट्रम्प अपने समर्थकों को लगातार भड़काते रहे हैं.

ट्रम्प की पार्टी के कई सांसदों ने तो ट्रम्प पर खुलकर आरोप भी लगाए हैं. रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर मिट रोमनी ने हिंसा की निंदा करते हुए कहा भी कि ‘मैं शर्मिदा हूं कि राष्ट्रपति ने दंगाइयों को संसद में घुसने के लिए भड़काया. मैं अपनी पार्टी के सहयोगियों से यही उम्मीद करता हूं कि वे लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे आएं.’ लेकिन सवाल यह है कि ट्रम्प का अब विरोध करने वाले पहले कहां थे? बहरहाल, अब तो यह मांग भी तेज हो गई है कि 20 जनवरी को सत्ता हस्तांतरण के पहले ही ट्रम्प को पद से हटा दिया जाए. सबकी नजरें अमेरिका पर लगी हुई हैं कि वह ट्रम्प को क्या सजा देता है. इधर ट्रम्प राष्ट्रपति के पास ‘माफ करने के अधिकार’ का उपयोग करके खुद को ही माफ करने के चक्कर में हैं.

सोशल मीडिया पर लगातार झूठ बोलते रहे ट्रम्प

अपने पहले चुनाव के समय से लेकर राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल और उसके बाद के चुनाव में ट्रम्प लगातार झूठ बोलते रहे. सोशल मीडिया पर उन्होंने लगातार झूठ का पुलिंदा पेश किया. ट्विटर ने उनके कई ट्वीट्स या तो ब्लॉक किए या फिर गलत या भ्रामक कंटेंट की चेतावनी जारी की. कई ट्वीट्स पर ऐसी पाबंदी लगी दी कि कोई यूजर न उसे लाइक कर पाए और न ही री-ट्वीट कर पाए. और अंत में तो ट्विटर ने ट्रम्प के पर्सनल अकाउंट को हमेशा के लिए ही सस्पेंड कर दिया.फेसबुक और इंस्टाग्राम ने भी कई पाबंदियां लगाईं. फैक्ट चेक का बॉक्स भी लगाया. ट्रम्प की लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस को अमेरिकी मीडिया की ओर से बैन किए जाने की कहानी तो आपको पता ही है. मीडिया ने साफ कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प गलत जानकारियां दे रहे हैं इसलिए उनके प्रसारण को रोका गया.

अमेरिका की नीतियों को तबाह करने में ट्रम्प का हाथ

विश्व पटल पर भी देखें तो ट्रम्प ने अमेरिका की नीतियों को तबाह कर दिया. जो उसके दोस्त थे या दोस्त बनने की राह पर थे, उन्हें भी खुद से दूर कर दिया. कोरोना के समय भारत को धमकी तक दे दी कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन यदि नहीं दिया तो खामियाजा भुगतना होगा.  वास्तव में इस आदमी का  रवैया पूरी तरह तानाशाहीपूर्ण रहा है. अफगानिस्तान, ईरान ओैर चीन के मामले में उनकी नीतियां पूरी तरह असफल रहीं. देश के भीतर भी वे एक असफल राष्ट्रपति साबित हुए लेकिन इन सब दोषों को दूर करने के लिए उन्होंने अमेरिका फस्र्ट का नारा देकर झूठे राष्ट्रवाद की एक लहर चलाने की कोशिश की और उन्हें लग रहा था कि वे इसमें काफी हद तक सफल हो चुके हैं. राष्ट्रवाद की राजनीति करने वाले नेताओं को इस तरह का भ्रम होना स्वाभाविक भी है.

वे अपने वैचारिक परकोटे से बाहर नहीं निकल पाते. बाहर की दुनिया को नहीं समझ पाते. ऐसे लोग यह नहीं समझ पाते कि देश को लेकर एक वर्ग हमेशा सतर्क रहता है. अमेरिका में भी यही हुआ. बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था जो ट्रम्प की वास्तविकता को समझ रहा था कि वे अमेरिका को गलत राह पर ले जा रहे हैं इसलिए चुनाव में उनकी पराजय हो गई. झूठे राष्ट्रवादी इसे पचाने को अब भी तैयार नहीं हैं. इसीलिए वे उपद्रव पर उतर आए. 

पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी अमेरिकी लोकतंत्र पर कस रहे तंज

अब ट्रम्प कह रहे हैं कि बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित नहीं रहेंगे. यह परंपरा का कितना बड़ा अपमान है.  ट्रम्प के इस तरह के बयान सुनकर मुङो तो हंसी आ रही है. इस आदमी ने सारी स्थितियों को मजाक बनाकर रख दिया. अब देखिए न,  पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी अमेरिकी लोकतंत्र पर तंज कस रहे हैं!और हां, आश्चर्य है कि अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियां ट्रम्प समर्थकों के प्लान को समझने में नाकाम रहीं अन्यथा इस तरह की घटना होती ही नहीं!

बहरहाल अमेरिकी लोकतंत्र पर जो भयावह कलंक लग गया है उसे मिटा पाने में अमेरिका को बहुत वक्त लगेगा. ट्रम्प ने अमेरिका की इज्जत मिट्टी में मिला दी. ऐसी तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी! अमेरिका पूरी दुनिया में लोकतंत्र की हिमायत करता फिरता है लेकिन उसके ही राष्ट्रपति के समर्थकों ने अपने देश में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दीं. अपनी ही संसद पर हमला कर दिया! सवाल है कि ट्रम्प के इतने समर्थक जुटे कैसे?
 

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