वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: पाकिस्तान के सिंध में आजादी की उठती मांग
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 21, 2021 12:17 PM2021-01-21T12:17:12+5:302021-01-21T12:19:00+5:30
अंग्रेजों ने सिंध को जबर्दस्ती पाकिस्तान में मिला लिया और अब पाकिस्तान सिंध के द्वीपों, बंदरगाहों और सामरिक क्षेत्नों को चीन के हवाले करता जा रहा है. सिंधी आंदोलनकारियों का मानना है कि जैसे 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ है, वैसे सिंध भी आजाद होकर रहेगा.
पाकिस्तान में सिंध की आजादी और अलगाव का आंदोलन फिर तेज हो गया है. जीए सिंध आंदोलन के नेता गुलाम मुर्तजा सईद के 117 वें जन्म दिन पर सिंध के कई जिलों में जबर्दस्त प्रदर्शन हुए.
इन प्रदर्शनों में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के पोस्टर भी लहराए गए. जीए सिंध मुत्तहिदा महाज के नेता शफी अहमद बरफत ने कहा है कि सिंध की संस्कृति, इतिहास और परंपरा पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है और अभी तक बरकरार है लेकिन इस सिंधी राष्ट्रवाद पर पंजाबी राष्ट्रवाद हावी है.
अंग्रेजों ने सिंध को जबर्दस्ती पाकिस्तान में मिला लिया और अब पाकिस्तान सिंध के द्वीपों, बंदरगाहों और सामरिक क्षेत्नों को चीन के हवाले करता जा रहा है. सिंधी आंदोलनकारियों का मानना है कि जैसे 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ है, वैसे सिंध भी आजाद होकर रहेगा.
भारतीय होने के नाते हम सभी यह सोचते हैं कि पाकिस्तान के टुकड़े हो जाएं तो भारत से ज्यादा खुश कौन होगा? छोटा और कमजोर पाकिस्तान फिर भारत से लड़ने से बाज आएगा.
इसीलिए भारत के कई नेता पाकिस्तान से सिंध को ही नहीं, पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान को भी तोड़कर अलग राष्ट्र बनाने की वकालत करते हैं.
अफगानिस्तान के प्रधानमंत्नी सरकार दाउद खान तो पख्तून आंदोलन के इतने कट्टर समर्थक थे कि उन्होंने अपने कार्यकाल में तीन बार पाकिस्तान के साथ युद्ध-जैसा ही छेड़ दिया था.
सिंधी अलगाव के सबसे बड़े नेता गुलाम मुर्तजा सईद से मेरी कई मुलाकातें हुईं. वे प्रधानमंत्नी नरसिंह राव के जमाने में भारत भी आए. वे लगभग 20 दिन दिल्ली में रहे. वे देश के कई बड़े नेताओं से मिलते रहे.
जी.एम. सईद सिंधियों की दुर्दशा का अत्यधिक मार्मिक चित्नण करते थे. उसके कई तथ्य मेरे अनुभव में भी थे. मैं स्वयं कराची और सिंध के कुछ इलाकों में जाता रहा हूं और सिंधी शोषण का विरोधी हूं. लेकिन मैं यह मानता हूं कि यदि दूरदृष्टि से देखा जाए और पूरे दक्षिण एशिया का भला सोचा जाए तो इस विशाल क्षेत्न में किसी भी नए देश का उदय होना लाभदायक नहीं है.
सब इलाकों में नागरिकों को पूर्ण आजादी और समानता मिलनी चाहिए लेकिन उनका अलगाव उनके अपने लिए भी काफी नुकसानदेह है. बांग्लादेश की तुलना इससे नहीं की जा सकती.