वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारते ट्रंप
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 27, 2020 12:19 PM2020-10-27T12:19:05+5:302020-10-27T12:19:05+5:30
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की तारीख करीब है. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के बेलगाम जुबान ही उनके लिए कई मुश्किलें पैदा करने जा रहे हैं. भारतीय मूल के वोटरों का मत भी ट्रंप की जेब से खिसकने लगा है.
अमेरिका दुनिया का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र है. वहां की जनता भी सुशिक्षित है लेकिन वह डोनाल्ड ट्रम्प जैसे आदमी को राष्ट्रपति चुन लेती है.
इसमें अमेरिका के आम मतदाता को हम दोषी नहीं ठहरा सकते. उसने तो ट्रम्प की प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन को 2016 में 30 लाख वोट ज्यादा दिए थे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति इन सीधे वोटों से नहीं चुना जाता है.
ये वोटर अपने-अपने क्षेत्न के प्रतिनिधि को चुनते हैं और फिर वे प्रतिनिधि मिलकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. वह प्रतिनिधि जितने वोटों से जीतता है, उतने वोट तो राष्ट्रपति के उम्मीदवार को मिल ही जाते हैं. उस क्षेत्र के वे वोट भी उस प्रतिनिधि को मिले हुए मान लिए जाते हैं, जो उसके विरुद्ध भी पड़ते हैं.
इस विचित्र प्रक्रिया के चलते ही ट्रम्प राष्ट्रपति बन गए. अब ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ में 538 प्रतिनिधि होते हैं. इनमें से जिसे 270 का समर्थन मिले वह जीत जाता है. पिछली बार ट्रम्प को जिताने में सबसे बड़ी भूमिका उन गोरे मतदाताओं की थी, जो कम पढ़े-लिखे और निम्न वर्ग के अमेरिकी लोग हैं.
ट्रम्प उन्हीं के सच्चे प्रतिनिधि हैं. उनके बोल-चाल भी उनके-जैसे ही हैं. इस बार ट्रम्प के विरुद्ध जो बिडेन राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हैं, उनके साथ उपराष्ट्रपति पद के लिए भारतीय मूल की कमला हैरिस खड़ी हैं. दोनों के जीतने की संभावनाएं प्रबल दिखाई दे रही हैं.
चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बिडेन को 72 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन है जबकि ट्रम्प को सिर्फ 22 प्रतिशत का है. इधर ट्रम्प के भारतीय मतदाता भी खिसक रहे हैं.
मोदी और ट्रम्प की परस्पर खुशामद के कारण ट्रम्प को ऐसा लगता था कि अमेरिका में भारतीय मूल के 19 लाख वोट उनकी जेब में हैं लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी ने कमला हैरिस को अपना उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर ट्रम्प कार्ड चल दिया है.
ट्रम्प के खिलाफ भारतीय मूल के मतदाताओं ने भी कमर कस ली है. इधर चुनाव के एक हफ्ते पहले ट्रम्प ने अपने विदेश और रक्षा मंत्री को भारत भेजकर अपने वोटरों को पटाने के लिए एक दांव मारा है लेकिन उनकी बेलगाम जुबान ने उस पर भी पानी फेर दिया है.
उन्होंने अपनी चुनाव-सभा में प्रदूषण पर अमेरिका की तारीफ करते हुए भारत के बारे में बोल दिया कि देखो, ‘‘भारत की तरफ देखो, वह कितना गंदा है. उसकी हवा कितनी गंदी है.’’ उनके ये शब्द अमेरिका के भारतीय मतदाताओं के कान में अंगारों की तरह गिरे हैं. ट्रम्प को सीखना चाहिए कि भाषण कैसे देना है और अपने पद की गरिमा बनाए रखने के लिए कब-कब चुप रहना है।