वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अमेरिका-ईरान के बीच तनाव
By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 24, 2019 02:28 PM2019-06-24T14:28:24+5:302019-06-24T14:28:24+5:30
ट्रम्प का यह कहना कि अमेरिकी सेना ईरान पर हमला बोलती, उसके दस मिनट पहले उन्होंने उसे इसलिए रोक दिया कि उस हमले से 150 ईरानियों की मौत हो जाती, यह बात बहुत हास्यास्पद है.
फारस की खाड़ी में पिछले कुछ दिनों से वैसे ही भयानक दृश्य दिखाई पड़ रहे हैं, जैसे 1962 में क्यूबा के समुद्र तट पर दिखाई पड़ रहे थे. जैसे अमेरिका ने क्यूबा पर हमले की तैयारी कर ली थी, वैसे ही डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका ने ईरान पर हमले की तैयारी कर रखी है.
उस समय यदि सोवियत संघ अमेरिका के मुकाबले खड़ा नहीं होता तो क्यूबा धराशायी हो जाता. लेकिन आज न तो शीतयुद्ध का माहौल है और न ही अमेरिका के मुकाबले कोई सोवियत संघ-जैसी महाशक्ति है. इसीलिए डर लगता है कि ट्रम्प जैसा तुनकमिजाज राष्ट्रपति कहीं ईरान पर बम-वर्षा न कर बैठे.
ट्रम्प ने ईरान के साथ हुए परमाणु-समझौते को रद्द कर दिया है और जिन राष्ट्रों ने उस समझौते को संपन्न करने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, उनकी राय को दरकिनार करके वे मनमर्जी कर रहे हैं. ट्रम्प का यह संदेह कुछ हद तक सही हो सकता है कि ईरान परमाणु-समझौते में यह वादा करने के बावजूद कि वह परमाणु बम नहीं बनाएगा, छुप-छुपकर बम बना रहा है.
लेकिन इस संभावना को रोकने के कई कानूनी तरीके हैं. उन्हें अपनाने के बजाय ट्रम्प ने धमकियों का रास्ता अपना रखा है. पहले उन्होंने ईरान पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए और फिर भारत-जैसे राष्ट्रों पर दबाव डालकर उन्होंने ईरान से कच्चे तेल की खरीददारी रुकवा दी है. अब फारस की खाड़ी में तनाव पैदा कर वे इस राष्ट्र के घुटने टिकवाना चाहते हैं. लेकिन अमेरिकी ड्रोन को गिराकर ईरान ने ट्रम्प को यह बता दिया है कि वे ईरान को ब्लैकमेल नहीं कर सकते.
ट्रम्प का यह कहना कि अमेरिकी सेना ईरान पर हमला बोलती, उसके दस मिनट पहले उन्होंने उसे इसलिए रोक दिया कि उस हमले से 150 ईरानियों की मौत हो जाती, यह बात बहुत हास्यास्पद है. क्या ट्रम्प सचमुच इतने दयालु हैं? क्या अमेरिका का चित्त इतना अहिंसक है? अमेरिका की तो स्थापना का मूल ही हिंसा में है. ट्रम्प को चाहिए कि वे अपनी दादागीरी छोड़ें, अपने बड़बोलेपन पर लगाम लगाएं, अपने यूरोपीय साथी राष्ट्रों की सुनें और ईरान से सार्थक संवाद कायम करें.