US Election Results 2024: जीत डोनाल्ड ट्रम्प की और चर्चा व्लादिमीर पुतिन की?
By विजय दर्डा | Published: November 11, 2024 06:36 AM2024-11-11T06:36:15+5:302024-11-11T06:36:15+5:30
US Election Results 2024: मिशिगन, एरिजोना, जॉर्जिया तथा विस्कॉन्सिन समेत कई राज्यों के मतदान केंद्रों को उड़ाने की धमकी वाले ईमेल पुलिस को मिले.
US Election Results 2024: अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के बाद हम सब इस हिसाब-किताब में लगे हैं कि सत्ता में ट्रम्प के लौटने का हम पर क्या प्रभाव होगा? अमेरिका एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है इसलिए यह विश्लेषण स्वाभाविक भी है. ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भारत से उनके रिश्ते अच्छे रहे हैं लेकिन अभी मेरे मन को यह सवाल मथ रहा है कि अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने के आरोप रूस पर क्यों लगते हैं? कहा जा रहा है कि 5 नवंबर को जब वहां मतदान की प्रक्रिया चल रही थी.
उसी दौरान मिशिगन, एरिजोना, जॉर्जिया तथा विस्कॉन्सिन समेत कई राज्यों के मतदान केंद्रों को उड़ाने की धमकी वाले ईमेल पुलिस को मिले. चूंकि सभी ईमेल रूस से भेजे गए थे इसलिए आरोप लगना स्वाभाविक था लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे धमकी वाले फोन से क्या मतदाता प्रभावित हुए? यदि हां तो कैसे?
वैसे दो महीने पहले माइक्रोसॉफ्ट ने भी कहा था कि कुछ रूसी लोग कमला हैरिस के खिलाफ फर्जी वीडियो के माध्यम से अफवाह फैला रहे हैं कि हैरिस ने 2011 में एक लड़की को दुर्घटनाग्रस्त कर दिया था जिससे वह लकवाग्रस्त हो गई. जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था. इसी साल 4 सितंबर को अमेरिका के अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने रूस की सरकारी मीडिया आरटी पर एक अमेरिकी फर्म को रिश्वत देने का आरोप लगाया था. उनका कहना था कि आरटी ने ये रिश्वत रूस के एजेंडे को फैलाने के लिए दिया. रूस ने इनकार किया.
यह पहली बार नहीं है जब रूस पर अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगा हो. 2016 में यह आरोप लगा था कि हिलेरी क्लिंटन को कमजोर और ट्रम्प को सशक्त बनाने के लिए रूस ने ‘लाखता’ नाम का एक खुफिया ऑपरेशन चलाया था. आरोप था कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने सीधे तौर पर आदेश दिया था. अमेरिका ने इसकी बाकायदा जांच की थी.
2019 में इस पर करीब साढ़े चार सौ पेज की रिपोर्ट भी आई जिसमें डोनाल्ड ट्रम्प की टीम और रूसी अधिकारियों के बीच 200 बार से ज्यादा बातचीत की जांच का प्रसंग शामिल था. हालांकि रूसी साजिश या उसमें ट्रम्प के लोगों के शामिल होने के प्रमाण नहीं मिले थे. चलिए अब इस बात पर चर्चा करते हैं कि ट्रम्प की जीत से रूस को क्या फायदा होने वाला है.
दरअसल जो बाइडेन ने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए और यूक्रेन को करीब 60 अरब डॉलर की मदद दी जबकि ट्रम्प यह लगातार कहते रहे हैं कि रूसी हमले के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की जिम्मेदार हैं. अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद वे यूक्रेन की आर्थिक और सैन्य मदद बंद कर देंगे.
जेलेंस्की को दुनिया का सबसे बड़ा ‘सेल्समैन’ कहने से भी उन्होंने परहेज नहीं किया. रूस को जाहिर तौर पर ट्रम्प के रुख से मदद मिलेगी. विश्व राजनीति में यह आम धारणा है भी कि पुतिन और ट्रम्प एक-दूसरे को बहुत पसंद करते हैं. लेकिन यह सवाल अनुत्तरित ही रहने वाला है कि इस पूर्व जासूस ने क्या वाकई अमेरिका में खेला कर दिया?
जहां तक भारत का सवाल है तो ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के बावजूद भारत के साथ संबंध ठीक ही रहने वाले हैं क्योंकि जितनी भारत को अमेरिका की जरूरत है उससे ज्यादा अमेरिका को भारत की जरूरत है. ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में चीन की नकेल कसने की हर संभव कोशिश की थी क्योंकि चीन भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है.
अमेरिका की बादशाहत वाली कुर्सी पर कब्जा करने की उसकी नीयत किसी से छिपी नहीं है. चीन की नकेल कसने में भारत ही प्रबल भागीदार साबित हो सकता है. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रम्प के बीच एक समझदारी भरी दोस्ती है और ऐसी दोस्ती से फर्क तो निश्चय ही पड़ता है. इसके अलावा रूस के मोर्चे पर भी ट्रम्प भारत की मदद लेना जरूर चाहेंगे क्योंकि रूस के साथ भारत का पुराना रिश्ता है.
पुतिन ने ट्रम्प के जीत की बधाई के बाद यह कहकर संकेत भी दिए हैं कि वैश्विक महाशक्ति के रूप में भारत को भागीदारी का हक है. वैश्विक कारणों से पुतिन सीधे तौर पर ट्रम्प की बात नहीं सुनेंगे लेकिन नरेंद्र मोदी के मार्फत वे बातें सुन सकते हैं. रूस और अमेरिका में तनाव कम हो सकता है. यह स्थिति चीन को घेरने के लिए सबसे अच्छी होगी.
भारत के अंदरूनी मामलों में भी ट्रम्प का रवैया सहयोगात्मक ही रहा है. भारत की राजनीतिक आलोचना से वे नरम रहे हैं और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की उन्होंने खुलकर आलोचना की लेकिन अमेरिकी उत्पादों पर भारत में ज्यादा टैक्स को लेकर मुखर भी रहे हैं. हाउडी मोदी की गूंज अभी भी वो भूले नहीं हैं. उम्मीद करें कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका विकास की नई परिभाषा रचे.
भारत की तरह ही वह भी वसुधैव कुटुम्बकम की राह पर चले..! और हां, अमेरिकी संसद में फिर से चुने जाने के लिए भारतवंशी एमी बेरा, प्रमिला जयमाल, राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना और श्री थानेदार को बधाई. ..और बधाई सुहास सुब्रमण्यम को भी जिन्होंने वर्जीनिया और पूरे ईस्ट कोस्ट से विजयी होकर इतिहास रच दिया है. वहां से पहली बार कोई भारतवंशी जीता है.
और अंत में यह सवाल भी कि अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के 235 वर्षो में कोई महिला राष्ट्रपति क्यों नहीं बन पाई? राष्ट्रपति पहला चुनाव वहां 1788-89 में हुआ. विक्टोरिया वुडहुल से लेकर मार्गरेट स्मिथ, हिलेरी क्लिंटन और कमला हैरिस तक कई महिलाओं ने चुनाव लड़ा लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. कारण तो अमेरिकी मतदाता ही बता सकते हैं!